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– हरिवंश – जनरल (सेवानिवृत) वीके सिंह को पहली बार सुना. न किसी की आलोचना, न मर्यादा का उल्लंघन. बिल्कुल संयमित. लोगों को देश के हालात बताते हुए एक क्षण के लिए भी वह अपनी गरिमा और मर्यादा को नहीं भूले कि वह सेना के सर्वोच्च पद पर रहे हैं, उनसे देश एक गंभीर मर्यादा […]

– हरिवंश –
जनरल (सेवानिवृत) वीके सिंह को पहली बार सुना. न किसी की आलोचना, न मर्यादा का उल्लंघन. बिल्कुल संयमित. लोगों को देश के हालात बताते हुए एक क्षण के लिए भी वह अपनी गरिमा और मर्यादा को नहीं भूले कि वह सेना के सर्वोच्च पद पर रहे हैं, उनसे देश एक गंभीर मर्यादा की अपेक्षा करता है. सरकार, नौकरशाही या बड़े पदों पर बैठे लोगों के बारे में एक बेजा या गलत या अमर्यादित शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. आज जब राजनीति में लोग मर्यादा भूल गये हैं, तब अपनी बात में एक अनुशासन और लक्ष्मण रेखा का पालन, धारा से हट कर लगा.
चार दिनों पहले राबर्ट वाड्रा के प्रसंग पर एक मशहूर टीवी चैनल पर बहस थी. अरविंद केजरीवाल के एक साथी मनीष सिसोदिया ने एक तीखा सवाल पूछा, तो कांग्रेस के एक बड़े प्रवक्ता उलझ गये कि आपने या अरविंद केजरीवाल ने इतने लाख पैसे लिये हैं या आपकी संस्था ने लिये हैं. राष्ट्रीय स्तर पर बहस का यह स्तर हो गया है. यह राष्ट्रीय मर्यादा की सड़ांध है.
इसी बीच देश के हालात के बारे में गंभीर तथ्य सुनना, मर्यादा के साथ सुनना, अच्छा लगा. सुखद लगा. उनके भाषण के कुछ तथ्य याद रह गये हैं, जिन पर सार्वजनिक चर्चा होनी चाहिए.
मसलन उन्होंने कहा कि देश के विकास कार्यो में रोजाना 3600 करोड़ खर्च हो रहे हैं, पर कितना धरातल पर उतर रहा है, यह हम नागरिकों को पता करना चाहिए? उनका कहना था कि चीन के मुकाबले, हमारी खेती की जमीन अधिक है, पर हमारी उत्पादकता 40 फीसदी कम है.
उनके अनुसार सालाना हम 60 करोड़ 50 लाख टन सब्जी उपजाते हैं, 5 करोड़ 50 लाख टन फल. पर हममें कृषि उत्पाद के संरक्षण का शऊर, लियाकत नहीं. इसलिए सब्जी और फल उत्पादों में से हर साल 40 फीसदी नष्ट होता है. सड़ जाता है. अगर हम इसका बचाव कर पाते, तो सबको खिलाते या निर्यात करते और काफी विदेशी मुद्रा-धन कमाते. बिजली पर उन्होंने कहा कि 40 फीसदी हमारा संचरण-वितरण नुकसान (ट्रांसमिशन-डिस्ट्रीब्यूशन लॉस) है. हमारे श्रम कानून ऐसे जटिल हैं कि चीन जैसे अनेक देश अपने श्रम कानूनों में बदलाव कर अपने सस्ते सामानों के बल दुनिया के बाजार में छा गये.
हमारे उद्यमी, सक्षम, कुशल, योग्य और जानकार हैं, होनहार और काबिल हैं, पर डरावने श्रम कानूनों के कारण उनकी लागत बढ़ जाती है. इसलिए हम दुनिया के बाजार में फिसड्डी हैं. हमारे देश में नौकरी करने की उम्र के लगभग 30 करोड़ युवा बेरोजगार हैं. हमारी जनसंख्या का कुल 2.5 फीसदी हिस्सा या लोग (लगभग सवा दो करोड़) सरकारी नौकरियों में हैं.
पर इन्हें भ्रष्टाचार, लूट और गलत काम करने पर संविधान की धारा 311 का संरक्षण देकर बचाया जाता है. भारत में सिर्फ 60 लाख टूरिस्ट आते हैं, जबकि चीन के मकाऊ में नौ करोड़ टूरिस्ट सालाना आते हैं. हमारे देश में दस हजार म्युनिसिपल अस्पताल हैं, पर इनके जो हालात हैं, हम जानते हैं. मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट) में हम दुनिया में सबसे नीचे हैं. लोकतंत्र सूचकांक में हम 40वें नंबर पर हैं. पर दुनिया में भ्रष्टाचार के स्थान पर हम 90वें स्थान पर हैं. पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक सूचकांक और भ्रष्टाचार सूचकांक के बीच एक रिश्ता होता है, एक और तीन का अनुपात.
सिर्फ भारत में यह 40:90 का अनुपात है. इसका आशय साफ है कि हमारे प्रजातंत्र में कहीं गहरी कमी है. इसलिए हम नीचे हैं. हमारा लोकतंत्र आम आदमी तक पहुंचा ही नहीं. भारत में बिना टेस्ट के ड्राइविंग लाइसेंस मिलते हैं. अब हमारे शहरों में फोन करिए, होटल के लोग आधे घंटे में पिज्जा घर पहुंचा देते हैं, पर बीमार पड़ने पर अस्पताल पहुंचने के लिए घर पर एंबुलेंस नहीं पहुंचती. अनेक परीक्षाओं में इंटरेंस टेस्ट (आइआइटी, आइआइएम, यूजीसी वगैरह) कराने में सरकार लगभग तीन हजार करोड़ खर्च करती है.
भारी तादाद में बच्चे बैठते हैं. वे लगभग 15 हजार करोड़ खर्च करते हैं. इनमें से एक फीसदी बच्चे, 15 आइआइटी और 30 मैनेजमेंट संस्थानों में पहुंच पाते हैं. भारत में 530 विश्वविद्यालय हैं, जबकि चीन में 1100 हैं. बड़ी संख्या में भारतीय छात्र पढ़ने के लिए विदेश भागते हैं. अच्छे संस्थानों की खोज में. उन पर लगभग 50 हजार करोड़ सालाना खर्च होता है.
अगर देश के इन छात्रों को भारत में ही पढ़ने की सुविधा मिल जाये, तो यह 50 हजार करोड़ देश की विदेशी पूंजी हर साल बचती. इससे देश में हर साल 20 नये आइआइटी और 30 नये आइआइएम बनाये जा सकते थे. बिना किसी का नाम लिये उन्होंने कहा, आज हमारी सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है.
हमने अपने मुल्क को घोटालों का गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ स्कैम्स) बना लिया है. उन्होंने एक विशेषज्ञ का हवाला दिया कि उनके आकलन के अनुसार, पिछले कुछेक वर्षो के घोटालों को छोड़ दें, तो 1992 से लेकर अब तक 73 लाख करोड़ की लूट हो चुकी है. जनरल (सेवानिवृत्त) सिंह ने पहले सीवीसी (मुख्य सर्तकता आयुक्त), एन. विट्ठल के विचार बताये. उसके अनुसार भ्रष्टाचार के लिए पांच लोग जिम्मेवार हैं.
नेता, बाबू, लाला (व्यापारी), झोला (एनजीओ) और दादा (गुंडा). इनके सामने खड़े होकर बोलने का साहस करना होगा. उन्होंने कहा, हमने घुटनों के बल बैठ कर यह सब स्वीकार कर लिया है. दरअसल, यह सब एक आजाद नागरिक के लिए आत्मसम्मान से सौदेबाजी है.
पूर्व सेना प्रमुख के अनुसार भारत में आज क्लेपटोक्रेसी है, डेमोक्रेसी नहीं. क्लेपटोक्रेसी यानी चोरों का राज्य, चोरों के द्वारा, चोरों के लिए. श्री सिंह के अनुसार वालमार्ट, न्यूयॉर्क में बंद किया जा रहा है. सैन फ्रांसिसको में उसे बंद करने का आंदोलन चल रहा है, पर हम उसे भारत न्योत रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश के हर किसान को अगर सोलर पावर पंप (सौर ऊर्जा यंत्र) मुफ्त दे दें, तो इसमें कुल पांच-छह हजार करोड़ खर्च होंगे. इससे बिजली की किल्लत खत्म हो जायेगी.
किसानों को मुफ्त मोबाइल के बदले सोलर पंप क्यों नहीं दिये जाते? भारत में किसानों की हालत यह है कि हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या करता है. भारत के कुछ हिस्सों में अफ्रीका के सबसे गरीब मुल्क से भी अधिक कुपोषण है. गरीब-अमीर में फर्क लगातार बढ़ रहा है. भारत की अर्थनीति का फायदा, पूरी जनसंख्या के आठ-नौ फीसदी लोगों तक ही पहुंचता है. पहले 1990 में देश के 50 जिलों में उग्रवाद था, अब फैल कर 270 जिलों तक पहुंच गया है. नेता, बिजनेस क्लास में ट्रेवल करते हैं.
भारत में पेट्रोल की कीमत में से अगर कस्टम, वैट या अन्य कर हटा दिये जायें, तो यह 45 रुपये के लगभग होगा. यह डीलर फायदा वगैरह लेकर है. पर पेट्रोल बिक रहा है, लगभग 68 रुपये प्रति लीटर. बांग्लादेश में भी पेट्रोल, भारत से सस्ता है. हमने जनता पर इतना कर लगा दिया है कि जनता कर्ज के बोझ से तबाह है. उन्होंने सेंट्रल ग्रिड के बिजली गुल होने के प्रसंग की भी चर्चा की. कहा कि यह ग्रिड बनाने में हमने पश्चिमी देशों की नकल की. यह फिरंगी मोह था.
विकेंद्रीकृत पावर ग्रिड बनते, तो यह हालात न होते. इस तरह देश से जुड़े अनेक बेचैन करनेवाले तथ्य बताने के बाद उन्होंने कहा कि एक नागरिक या एक भारतीय को आज क्या करना चाहिए? उन्होंने फौज की अपनी बात दुहराई. कहा, जब हम फौज में जाते हैं, तो सबसे पहले जान देने का बांड भरते हैं. आदेश मिलने पर हम, देश के किसी भी काम के लिए, कहीं भी जान दे सकते हैं.
क्योंकि हमारे लिए देश सबसे पहले है. राष्ट्र पहले है. राष्ट्रीयता, धर्म, जाति, क्षेत्र, संप्रदाय से ऊपर. सेना की यह शक्ति जनता के बीच से ही बनती है. अगर भारत की सेना अच्छा कर सकती है, तो भारत के लोग क्यों नहीं? इसलिए हर भारतीय को सोचना होगा कि मेरा देश, मेरे स्वार्थ से आगे है. यह पूरा देश सोचे, तो भारत फिर सोने की चिड़िया बन जायेगा. उन्होंने सावधान किया कि देश नारेबाजी से नहीं चलता. तपस्या से बदलाव होते हैं. एक समूह होकर हम देश बनाने का संकल्प लें, तब हालात बदलते हैं.
जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह की बात सुनने के बाद देश के मशहूर अर्थशास्त्री और ब्लैकमनी पर किताब लिखनेवाले, प्रो अरुण कुमार का स्मरण हुआ. उनके अनुसार आजादी के बाद, प्रो निकोलस कैल्डर ने भारत में ब्लैकमनी की समस्या पर अध्ययन किया. उनके आकलन के अनुसार 1955-56 में भारत में कालाधन, जीडीपी के 4-5 फीसदी होने का अनुमान था.
इसके बाद यह बेतहाशा बढ़ता रहा. 1995-96 में यह जीडीपी का 40 फीसदी हो गया. मौजूदा समय में कुछ अनुमानों के अनुसार यह 50 फीसदी तक पहुंच गया है. उदारीकरण ने कैसे भ्रष्टाचार को बढ़ाया है. इसके बारे में प्रो अरुण कुमार एक तथ्य बताते हैं. 1947 के बाद भारत का जो कालाधन, विदेशी बैंकों में जमा हुआ, उसका 68 फीसदी हिस्सा 1991 के बाद देश से बाहर गया. ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट से इस तथ्य की पुष्टि होती है.
इसी रिपोर्ट के अनुसार 1991 के सुधारों से पहले विदेशी बैंकों में जानेवाले भारतीय कालाधन में सालाना वृद्धि दर औसतन 9.1 फीसदी थी. 1991 के आर्थिक सुधार के बाद वह बढ़ कर 16.4 फीसदी हो गयी. इसी रिपोर्ट के अनुसार 2002-08 के बीच औसतन हर साल 16 अरब डॉलर अवैध कालाधन देश से बाहर भेजा गया. सार्वजनिक संपदा की लूट से भी कालेधन की बड़े पैमाने पर कमाई हो रही है. अनुमान है कि इस कमाई का 72 फीसदी हिस्सा विदेशों में पहुंच जाता है. शेष 28 ही फीसदी देश में ही रह जाता है.
इसी ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट के मुताबिक 1948 से 2008 तक भारतीयों की विदेशी बैंकों में करीब 20 लाख करोड़ की ब्लैकमनी जमा है. ये सारे तथ्य किसी मामूली इंसान के नहीं हैं. अर्थशास्त्री के रूप में दुनिया में अपनी पहचान रखनेवाले व्यक्ति द्वारा दिये गये ये तथ्य हैं.इतने तथ्य जान लेने के बाद भी कभी हम खुद से ऊपर उठ कर देश के बारे में, समाज के बारे में या राज्य के बारे में सोचेंगे?
दिनांक 14.10.2012
Prabhat Khabar Digital Desk
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