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भारत-पाक के एनएसए की गुपचुप मुलाकात के क्या हैं मायने?

नयी दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की अचानक से हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद एक बार फिर से जग उठी है. थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में भारत के (एनएसए) अजित डोभाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नसीर जंजुआ ने शांति और सुरक्षा तथा नियंत्रण […]

नयी दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की अचानक से हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद एक बार फिर से जग उठी है. थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में भारत के (एनएसए) अजित डोभाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नसीर जंजुआ ने शांति और सुरक्षा तथा नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर शांति सहित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की. इसके तुरंत बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पाकिस्तान दौरे की घोषणा कर दी .

चार महीने पहले भारत और पाकिस्तान के बीच एनएसए स्तर की वार्ता रद्द होने के बाद आखिर अचानक से क्या हो गया कि दोनों देशों के बीच बेपटरी हो चुकी वार्ता वापस रास्ते पर लौट आयी. रूसी शहर उफा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के बीच सहमति बनी थी.वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सहमति बनी थी और इसके लिए दोनों देशों के विदेश सचिव के नाम से बयान भी जारी किया गया था.लेकिन सहमति के बावजूद वार्ता रद्द हो गयी.
हालांकि पिछले सप्ताह पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान नरेन्द्र मोदी और नवाज शरीफ की अनौपचारिक मुलाकात से वार्ता की उम्मीदें बढ़ गयी. कई विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के रिश्तों में इतने तेजी से हो रहे बदलाव से यह बिलकुल साफ है कि पर्दे के पीछे बातचीत जारी थी. पिछले एनएसए वार्ता रद्द होने से सबक लेते हुए दोनों देशों ने एनएसए स्तर की वार्ता की भनक मीडिया को भी लगने नहीं दिया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र अपने भाषणों में लगातार दक्षिण एशिया को यूरोपियन यूनियन से सीख लेने की बात कहते हैं. सार्क देशों के मजबूत व्यापारिकसंबंध की वकालत करने वाले पीएम मोदी इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि जब तक भारत और पाक के संबंध नहीं सुधरेंगे, दक्षिण एशियाई देशों के बीच संबंध आपस में मजबूत नहीं हो सकते. दक्षिण एशियाई देशों में शामिल देशों में भारत और पाकिस्तान बेहद अहम राष्ट्र माने जाते हैं.
इस संदर्भ में भारत के राष्ट्रपत्ति प्रणब मुखर्जी भी कह चुके हैं सार्क देशों के बीच संबंध मजबूत होने चाहिए. मुखर्जी ने यूरोपीय संघ का हवाला देते हुए कहा था कि यूरोप की शक्तिशाली ताकतें सदियों युद्ध में शामिल रहीं लेकिन एक साझा यूनियन, संसद और मुद्रा के लिए एक साथ आयीं. उन्होंने कहा था कि पिछले 30 वर्षों में हमने कई तंत्र और संस्थाएं यूरोपीय संघ के मॉडल पर बनाई हैं. हालांकि, यह व्यापक तौर पर स्वीकृत है कि दक्षेस की पूर्ण क्षमताओं को साकार किया जाना बाकी है.
दरअसल पाकिस्तान की सरकार कई फैसले खुद नहीं ले पाती.उसके फैसलों पर वहां की सेना व खुफिया एजेंसी आइएसआइ की स्पष्ट छाप दिखती है. और, सच कहा जाये तो यही पाकिस्तान व भारत के बीच होने वाली पहल को प्रभावित करती हैं. ऐसे में वार्ता का जो नया सिलसिला शुरू हुआ है, वह कितना फलितार्थ होगा यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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