25.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

अपशब्द तो नहीं गाय, गुजरात, हिंदू और हिंदुत्व

-प्रेम कुमार- ‘एन आर्गुमेंटेटिव इंडियन’ चर्चा में है. इसलिए नहीं कि इस डॉक्यूमेंट्री में नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इंटरव्यू हैं, जिन्होंने ऐसा कुछ अनोखा कह दिया हो, जिस पर चर्चा हो. चर्चा उस फैसले की हो रही है जिसमें CBFC ने इस डॉक्यूमेंट्री से चार शब्दों […]

-प्रेम कुमार-

‘एन आर्गुमेंटेटिव इंडियन’ चर्चा में है. इसलिए नहीं कि इस डॉक्यूमेंट्री में नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इंटरव्यू हैं, जिन्होंने ऐसा कुछ अनोखा कह दिया हो, जिस पर चर्चा हो. चर्चा उस फैसले की हो रही है जिसमें CBFC ने इस डॉक्यूमेंट्री से चार शब्दों को‘म्यूट’ करने का निर्देश दिया है. ये शब्द हैं- गाय, गुजरात, हिंदू और हिंदुत्व.

अपशब्दों पर रोक के लिए होता है ‘बीप’ या ‘म्यूट’ का इस्तेमाल
जो लोग फिल्म समेत विजुअल मीडिया में काम करते हैं, वे जानते हैं कि ‘बीप’ का इस्तेमाल तब होता है, जब कोई अपशब्द को जनता के बीच सीधे जाने से रोकना होता है. इसी तरह ‘म्यूट’ का भी इस्तेमाल अपशब्दों पर रोक के लिए होता है. ऐसे में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की ओर से गाय, गुजरात, हिंदू और हिंदुत्व शब्दों पर ‘बीप’ या ‘म्यूट’ के इस्तेमाल ने ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ये शब्द अपशब्द हैं?
क्या ये है पॉपुलरिटी के लिए विवाद?
फ़िल्म से जुड़े हर विवाद पर प्राय: यही कहा जाता है कि पॉपुलेरटी के लिए सेंसर बोर्ड के फैसले पर सवाल उठाये जा रहे हैं. जानबूझ कर ऐसे दृश्य और संवाद डाले जाते हैं या ऐसे विषय चुने जाते हैं जिस पर विवाद खड़ा हो और सेंसर बोर्ड कैंची चलाये. जितना विवाद होगा, जितनी सेंसरशिप होगी, फिल्म को उतना प्रचार मिलेगा. लेकिन, ‘एन ऑर्गुमेंटेटिव इंडियन’ से जुड़े ताजा विवाद में इस बार ऐसा कहना इतना आसान नहीं है.
पवित्र और सम्मान का प्रतीक हैं गाय-हिंदू-हिंदुत्व-गुजरात
जिन चार शब्दों को ‘म्यूट’ करने का सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म निर्माता सुमन घोष को निर्देश दिया है, वे शब्द न उत्तेजक हैं, न गाली हैं और न ये शब्द किसी का दिल दुखाने वाले ही लगते हैं. जरा गौर कीजिए ‘गाय’शब्द तो पवित्र माना जाता है. हिंदू या हिंदुत्व शब्द भी सम्मान का प्रतीक रहे हैं और, गुजरात- यह तो एक सूबे का नाम है, वहां की जनता का सम्मान है. गांधी से लेकर पटेल और मोदी का जन्म स्थान है! इन शब्दों पर ‘बीप’ लगाने या ‘म्यूट’ करने की सलाह आश्चर्यजनक है!

शब्दों के संदर्भ पर क्यों नहीं चली कैंची?
ऐसा नहीं है कि इस आश्चर्य में कोई हास्य, व्यंग्य, परिहास, उपहास, शरारत या अबोध होने का भाव है. दरअसल किसी न किसी वाक्य के साथ जुड़कर ये शब्द ऐसा संकेत दे रहे होंगे, जो सेंसर बोर्ड के चेयरमेन पहलाज निहलानी को महसूस करा रहा होगा कि इन शब्दों के इस्तेमाल से एक समुदाय का या सरकार का अनादर हो रहा हो. अगर ऐसा है तो कैंची उस पूरी बात पर चलनी चाहिए थी. ये चारों शब्द तो पवित्र हैं, उनके साथ ‘आपत्तिजनक’ की टैगिंग क्यों की जा रही है?

आज़ादी सिर्फ पहलाज निहलानी को चाहिए?
पहलाज निहलानी को यह अधिकार है कि वे FTII के प्रदर्शनकारी छात्रों को देशद्रोही कह दें, ‘हर-हर मोदी घर-घर मोदी’ नाम से वीडियो निकालें और हिंदू भावनाओं का राजनीतिक दोहन करें, उन्हें यह हक है कि अपनी फिल्मों में द्विअर्थी संवाद और गीत का इस्तेमाल करें, पहलाज निहलानी सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए ‘मेरा देश महान’ जैसी चाटुकार यू ट्यूब फिल्में बना सकते हैं, उसके छोटे वर्जन को ‘प्रेम रतन धन पायो’ फिल्म के प्रदर्शन के दौरान ब्रेक पर चलवा सकते हैं. ऐसी तमाम हरकतों पर मानो पहलाज निहलानी ने पेटेंट करा रखा हो. लेकिन दूसरों के लिए वे सेंसरशिप का गोला-बारूद साथ लिए चलते हैं.
आदेश ने उलटा है पहलाज का निर्देश
किन शब्दों से भावनाएं भड़कती हैं, क्षेत्रीय सेंटीमेंट प्रभावित होता है, फिल्मों में गालियां कितनी होनी चाहिए, इंटरकोर्स शब्द फिल्म में होना चाहिए या नहीं, पीके जैसी फिल्म नहीं बननी चाहिए- इस तरह के खयालात का पहलाज निहलानी खुलकर इजहार करते रहे हैं. ‘उड़ता पंजाब’ पर 89 कट लगाने वाले पहलाज निहलानी के आदेश को अदालत ने उलट दिया था, तो ‘मेरा भारत महान’ वाली हरकत के लिए खुद केंद्रईय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उनसे नाराजगी जाहिर की थी. उड़ता पंजाब के 89 कट लीक होने पर भी पहलाज निहलानी पर सवाल उठ चुके हैं.
किसी विचारधारा से प्रेरित होकर काम कर रहे हैं पहलाज?
अपनी राजनीतिक विचारधारा के प्रदर्शन की आजादी जिस तरह से खुद पहलाज निहलानी अपने लिए चाहते रहे हैं, वही आज़ादी वे दूसरों से छीनने की कोशिश करते दिख रहे हैं. हद तो तब हो गयी, जब पहलाज ने अपनी निंदा करने वालों को सलाह दे डाली कि वे बिना आवाज़ वाली फिल्में बनाएं ताकि उन्हें ‘म्यूट’ करने का आदेश ही न देना पड़े. उन्होंने कहा कि वे विवादों से तंग आ गये हैं. उनकी झल्लाहट समझी जा सकती है, लेकिन वे लोग कहां जाकर झल्लाएं जिनकी मेहनत पर वे गैरवाजिब तरीके से कैंची चलाते आए हैं. फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने तो पहलाज पर एक विचारधारा से प्रभावित होकर काम करने का खुला आरोप लगाया है. उनके हिसाब से तो केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड का काम सेंसरशिप है ही नहीं.
समाधान निकालना होगा, विवादों को रोकना होगा
सेंसर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं के बीच जारी इस विवाद का समाधान कैसे निकले, किस तरह इन विवादों से बचा जाए- उस पर कोई तरीका ढूंढ़ने की जरूरत है. फिल्म के प्रदर्शन से पहले उसे विवाद में लाने की जो परंपरा बन गयी है उस पर भी रोक जरूरी है. वहीं, राजनीतिक शरणागति की वजह से अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई आंच न आए, इसका समाधान खोजना उससे कहीं ज्यादा जरूरी है. हर बात का समाधान अदालत निकाले, यह नहीं होना चाहिए. और, एक बार जब अदालत ऐसे मामलों में प्रतिकूल फैसला कर दे, या टिप्पणी कर दे तो संबंधित व्यक्ति को भी यह सोचना होगा कि वह अपने पद पर बने रहें या नहीं. चलिए पहलाज निहलानी ने एक विवाद के बहाने ही सेंसरशिप पर विचार करने का सुनहरा मौका तो दे ही दिया है.
(21 साल से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय, [email protected])

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel