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भगत सिंह और लेनिन

II रविभूषण II वरिष्ठ साहित्यकार [email protected] भगत सिंह (28 सितंबर, 1907- 23 मार्च, 1931)ने सदैव पढ़ने, आलोचना करने और सोचने के बाद इतिहास की सहायता से अपने विचार बनाने की बात कही थी. उनके अध्ययन का सिलसिला छात्र-जीवन से ही जारी था. निरंतर अध्ययन और चिंतन के द्वारा उन्होंने क्रांतिकारी विचार और सिद्धांत प्रस्तुत किये, […]

II रविभूषण II
वरिष्ठ साहित्यकार
भगत सिंह (28 सितंबर, 1907- 23 मार्च, 1931)ने सदैव पढ़ने, आलोचना करने और सोचने के बाद इतिहास की सहायता से अपने विचार बनाने की बात कही थी. उनके अध्ययन का सिलसिला छात्र-जीवन से ही जारी था. निरंतर अध्ययन और चिंतन के द्वारा उन्होंने क्रांतिकारी विचार और सिद्धांत प्रस्तुत किये, भारतीय क्रांति की सैद्धांतिकी रची. वर्ष 1924-27 में उन्होंने क्रांतिकारियों से संबंधित पुस्तकों का गंभीर अध्ययन किया था. लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित द्वारकादास पुस्तकालय में सोवियत संघ और कम्युनिज्म से संबंधित सभी पुस्तकें उन्होंने पढ़ी थीं.
वे सोवियत संघ राज्य को अपने आदर्श के निकट मानते थे. लेनिन की ‘स्टेट एंड रिवोल्यूशन’ उनकी प्रिय पुस्तकों में थी. उनके जीवनी-लेखक गोपाल टैगोर ने ‘भगत सिंह- दि मैन एंड हिज आइडियाज’ में लिखा है कि मृत्यु से कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा लेनिन की जीवनी पढ़कर समाप्त करने की बतायी थी. जेल में उन्होंने दो सौ पृष्ठों के नोट्स पूंजीवाद, समाजवाद, राज्य की उत्पत्ति, साम्यवाद, धर्म, समाजशास्त्र, फ्रांसीसी क्रांति, मार्क्सवाद, परिवार, सरकारी संरचना, कम्युनिस्ट इंटरनेशनल आदि पर लिये थे.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में लेनिन (22 अप्रैल, 1870- 21 जनवरी, 1924) क्रांतिकारियों के आदर्श थे. सावरकर 1906 में लंदन में कानून की शिक्षा प्राप्त करने गये थे.
श्यामजी कृष्ण वर्मा के ‘इंडिया हाउस’ में वे तीन वर्ष तक रहे थे. लेनिन इंडिया हाउस चार बार गये थे. यहीं सावरकर की भेंट लेनिन से हुई थी. वे लेनिन के विचारों से प्रभावित हुए थे और उन्होंने रूस में जार के शासन को बदलने की लेनिन की प्रणाली की सराहना की थी. रूस की अक्तूबर क्रांति के बाद भारत का स्वतंत्रता आंदोलन एक नये चरण में प्रवेश करता है. गांधी ने इस क्रांति का मूल्यांकन करते हुए राष्ट्र की प्रगति में ‘विकास’ और ‘क्रांति’ दोनों की भूमिका देखी थी. तिलक ने अपने पत्र ‘केसरी’ में लिखा था कि लेनिन शांति के पक्ष में है. वे केवल उत्पीड़ित के लिए न्याय चाहते हैं. जनता और सेना के बीच लेनिन की लोकप्रियता की बात तिलक ने कही थी.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेनिन का गहरा संबंध था. उन्होंने राजा महेंद्र प्रताप सिंह (अफगानिस्तान में गठित भारत की पहली निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति) को रूसी क्रांति के बाद रूस आमंत्रित किया था.
लेनिन ने तिलक की प्रशंसा की थी. तिलक को ‘राष्ट्रदोह’ के सिलसिले में जब छह वर्ष की सजा सुनायी गयी थी, लेनिन ने इसका विरोध करते हुए ब्रिटिशों को ‘कमीना’ (जैकाॅल) और तिलक को ‘भारतीय डेमोक्रेट’ कहा था. तिलक ने अपनी पत्रिका ‘केसरी’ का एक संपादकीय ‘दि रशियन लीडर लेनिन’ शीर्षक से लिखा था.
लेनिन ने नेहरू, लोहिया, जय प्रकाश नारायण, सुभाष चंद्र बोस सहित अनेक भारतीय नेताओं को प्रभावित-प्रेरित किया. इकबाल, हसरत मोहानी, सुब्रमण्यम भारती, प्रेमचंद, निराला, सभी उनसे प्रभावित थे.
गया प्रसाद कटियार के साथ ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की एक टीम रूस गयी थी. भगत सिंह भी रूस जाने के इच्छुक थे. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में जिनकी कोई भूमिका नहीं थी, वे इस आंदोलन में रूसी क्रांति की भूमिका को नहीं समझ सकते.
लाहौर षड्यंत्र केस के सभी अभियुक्तों ने मजिस्ट्रेट के सामने (21 जनवरी, 1930) ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिंदाबाद’ और ‘लेनिन का नाम अमर रहेगा’ के नारे लगाये थे. भगत सिंह से उनके वकील प्राणनाथ मेहता ने उन्हें फांसी दिये जाने (23 मार्च, 1931) के कुछ घंटे पहले भेंट की थी.
भगत सिंह ने उनसे ‘रिवोल्यूशनरी लेनिन’ पुस्तक के बारे में पूछा था कि वे इसे लाये हैं या नहीं. फांसी दिये जाने के पूर्व वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे. जेल अफसर से उन्होंने यह कहा था- ‘एक क्रांतिकारी की दूसरे क्रांतिकारी से मुलाकात खत्म होने दो.’
गुप्तचर ब्यूरो के गुप्त विवरण ‘टेररिज्म इन इंडिया’ (1927-1936) में यह कहा गया है कि भगत सिंह ने ‘उस समय के अग्रणी राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में गांधी को भी मात दे दी थी.’
भगत सिंह और उनके साथियों ने सोवियत संघ को रूसी क्रांति की वंदना को तार भेजा था. 21 जनवरी को उन्होंने ‘लेनिन दिवस’ के रूप में स्मरण करने को कहा था. लेनिन दिवस के अवसर पर लाहौर षड्यंत्र केस के विचाराधीन कैदी अपनी गर्दनों में लाल रूमाल बांधकर अदालत में आये थे.
भगत सिंह ने उस समय मजिस्ट्रेट को तीसरी इंटरनेशनल, मास्को के अध्यक्ष के नाम प्रेषित करने के लिए तार दिया था. वर्ष 1981 में ‘मेन स्ट्रीम’ (4 अप्रैल) में चिन्मोहन सेहनवीस ने एक लेख लिखा- ‘इम्पैक्ट ऑफ लेनिन ऑन भगत सिंह’ज लाईफ’.
गांधी की हत्या के बाद उनकी विचारधारा का अंत नहीं हुआ. बामियान (अफगानिस्तान) में तालिबानों द्वारा बुद्ध की प्रतिमा तोड़ देने के बाद बौद्ध-दर्शन समाप्त नहीं हुआ. त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति ढाह देने के बाद भी त्रिपुरा में ही नहीं, भारत में भी मार्क्सवादी विचारधारा का अंत नहीं होगा.
मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्टालिन, माओत्सेतुंग, गांधी व्यक्ति ही नहीं, विचार भी हैं. विचारधारा कभी नष्ट नहीं होती. भगत सिंह और लेनिन की विचारधारा कभी नहीं मिट सकती. भगत सिंह के यहां विचार महत्वपूर्ण थे. क्रांतियां असफल हो सकती हैं, सरकारें बदल सकती हैं, पर विचारधाराओं को नष्ट नहीं किया जा सकता.
Prabhat Khabar Digital Desk
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