
सबसे बड़ी यात्रा-अनुष्ठान में शिवभक्तों के लिए अपूर्व सौगात

हर-हर महादेव
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने, सदावसन्तं गिरिजासमेतंसुरासुराराधित्पाद्य्पद्मं श्री बैद्यनाथंतमहंनमामि ||
ऐतिहासिक कांवर यात्रा
सावन महीने में कांवर यात्रा ऐतिहासिक है. सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल भरकर देवघर के बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. मान्यता है कि इस यात्रा की शुरुआत मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने की थी. उत्तरवाहिनी सुल्तानगंज से गंगा का जल भरकर पैदल चलकर बाबा बैद्यनाथ की पूजा-अर्चना की थी, तभी से यह परंपरा बनी हुई है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो नर-नारी कंधे पर कांवर रखकर अपनी यात्रा पूरी करते हैं, उन्हें अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है.
कांवरियों के लिए विशेष नियम
- 1.संकल्प मंत्रोच्चारण के साथ कांवर में गंगा जल भरे.
- 2.कांवर रखने और उठाने के पहले मंत्रोच्चारण एवं प्रणाम करें.
- 3.कांवर हमेशा अपने से उंचे स्थान पर रखे तथा इससे दूरी पर बैठे. कांवर को माथे के उपर से पार ना करें.
- 4.कांवर से कम से कम 12 हाथ की दूरी पर धूम्रपान, 24 हाथ की दूरी पर लघुशंका तथा सैकड़ों हाथ की दूरी पर ही शौच करें.
- 5.विश्राम, खान-पान, शौच आदि के उपरांत स्नान कर ही पुन: कांवर उठावें.
- 6.तेल-साबुन, चमड़े का सामान, जूता-चप्पल तथा शीशे के सामानों का उपयोग न करें.
- 7.कांवर तथा खुद को कुत्ते के स्पर्श से बचावे.
- 8.ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करें तथा भोग विलास से कोसों दूर रहे.
- 9.धार्मिक भावनाओं में रुचि बनाये रखें तथा तन मन धन से बोल बम का जाप करते रहे. ईश्वर में लीन रहे.
- 10.परस्पर परोपकार और सहयोग की भावना बनाये रखें. सत्य एवं मृदुभाषी बने रहें एवं छल-कपट को पास न फटकने दें…
सुलभ जलार्पण के लिए कांवरिया रूट लाइन

कहां से कितने किलोमीटर
- सुल्तानगंज से असरगंज -11
- कुमरसार से जिलेबिया – 11
- कांवरिया से इनारावरण -08
- कलकतिया से दर्शनिया – 06
- असरगंज से मनिया मोड़ – 12
- जिलेबिया से सूईया – 12
- ईनारावरण से गोड़ियारी -08
- दर्शनिया से बाबाधाम- 01
- मनिया मोड़ से कुमारसार – 6
- सूईया से कांवरिया – 13
- गोड़ियारी से कलकतिया – 08
- कुल- 96 (नये कच्चे कांवरिया पथ के निर्माण से दूरी 09 किमी कम हो गयी है. )

देवाधिदेव महादेव की उपासना से भक्तों को मिलती है सदैव आध्यात्मिक अनुभूति
जगत में मानव की अवधारणा और ईष्टदेव की उपासना की परंपरा कोई आर्वाचीन नहीं है. भारतीय वांड.मय के आख्यायनों में विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं के पूजन की परंपरा का उल्लेख मिलता है. सर्वप्राचीन एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरी उतरी ग्रंथ -ऋग्वेद आज भी जगत में सर्वमान्य है, सर्वग्राह्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है. ऋग्वेद की ऋचाओं को मंत्र की संज्ञा दी गयी है, जिसके वाचन से आध्यात्मिकता की अकाट्य अनुभूति होती है. पौराणिक ऋषियों व मनीषियों की कठिन तप के पश्चात मंत्रों की अवधारणा जगत में हुई है, जो सर्वजन के लिए हितकारी है. आस्था की सरिता आदिकाल से बहती आ रही है, जिसका निर्वहण भक्तगण करते आ रहे हैं. कहने का तात्पर्य है कि साधकों की महती साधना का जीता जागता प्रमाण आध्यात्मिक दर्शन है. ऋग्वेद में मरूतों के पितर रूद्र का उल्लेख आया है, जो देवाधिदेव महादेव के रुप में पूजन करते आ रहे हैं. इसके बीज ऋग्वेद के रुद्र सूक्त में व्याप्त है
श्रेष्ठो जातस्य रूद्र श्रियासि, तवस्तमस्तसां
बज्रवाहो |
पर्षिण: परमंहंस: स्वस्ति विश्वा, अभीती रपसो
युयोधि ||
अर्थात हे रुद्र, उत्पन्न हुए इस जगत में तुम अपने एश्वर्य से श्रेष्ठ हो, बज्र को हाथ में धारण करने वाले हो.रूद्र तुम बलशाली व्यक्तियों में सबसे अधिक बलशाली हो.हमें तुम अपने पाप के पार कल्याण पूर्वक पार करा दो और पाप के सभी आगमनों को हमसे अलग कर दो. वैसे तो रुद्र को मरुतों के पिता की संज्ञा के तौर पर आख्यायित की गयी है- आ ते पित: मरुताम. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शिव की पूजा अनादि काल से चली आ रही है और जो भी भक्त तन और मन से पूजते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सृष्टि की गति को अनवरत प्रवाहमान करने के लिए शिव की पूजा पर विशेष जोर दिया गया है.
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शिवस्य पूजया तद्वत पष्यत्यस्य वपुर्जगत। सर्वाभयप्रदानं च सर्वानग्रहणं तथा सर्वोपकारकरणं शिवस्याराधनं विदु: ||
शिव पुराण के वायवीस संहिता में उल्लेख है कि शिव की उपासना हम क्यों करते हैं और इसका फलाफल क्या मिलता है. मनुष्य अपने जीवन काल में किसी न किसी आराध्य देव की पूजा कर अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं. शिव धर्म के बिना मानवों के कल्याण की परिकल्पना की ही नहीं जा सकती है. चराचर इहलोक में सत्यम शिवम सुंदरम् की पूजा सबसे अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि इसने पूजन में वाह्याडंबर का दीदार नहीं होता है और बहुत ही सरल तरीके से साधना कर मन को तृप्त करने में सुकूुन मिला करता है. शिव के पंचधर्म में तप, कर्म, जप, ध्यान और ज्ञान आता है.
तप: कर्म जपो ध्यानं ज्ञानां चेति समासत: । -शिवपुराण , वायवीय सहिंता.
सात्विक अहार, उपवास, ब्रह्मचर्य आदि से प्राणियों का शरीर शुद्ध एवं सात्विक हो जाता है. सही तप का यह श्रेष्ठ प्रतिफल है. कीर्तन, भजन, पूजन व अर्चन कर्म है तथा एकाग्रचितता अखंड शिव का स्मरण जप है. साधकों के मन को अन्य विषयों से हटाकर शिव रुप में सन्निहित करना ध्यान है. तत्वज्ञान के अनुसार आचरण ही ज्ञान है. वास्तविकता में साकार मूर्ति का चिंतन ध्यान है, साधना है. इहलोक के मानवों का सर्वहिकारी देव महादेव है, इसे हम इनकार नहीं कर सकते हैं. निराकार होते हुए भी साकार हैं. शिव की महिमा की उल्लेख स्कंद पुराण में आया है-
सागरो यदि शषु्येत क्षीयते हिमवानपि | मेरुमन्दरशैलाश्च श्रीशैलो विन्ध्य एव च || चलन्येत कदाचिद्वै निश्चलं हि शिवव्रतम |
अर्थात सागर भी सूख जाये, हिमालय पहाड़ का भी क्षय हो जाये, मंदार पर्वत भी विचलित हो जाये, पर शिव व्रत कभी निष्फल नहीं हो सकता है. इस फल आस्थावान मानवों को अवश्यय मिलता है. तभी तो देवाधिदेव आदिदेव महादेव की पूजा में आदि काल से वर्तमान काल तक कमी नहीं आयी है. आज के समय में भी शिव की पूजा जगत के विभिन्न देशों में प्रवाहमान है. सच्चे मन से जो भी भक्त शिव को जलार्पण करते हैं, अनंत फल की प्राप्ति होती है.
यह भी जानें श्रद्धालु
बिजली विभाग के आवश्यक नंबर
- कार्यपालक अभियंता, देवघर 9431135855
- सहायक अभियंता, देवघर 9431135865
- सहायक अभियंता, जसीडीह 8789974231
- जेइ (विद्युत) कास्टर टाउन 9430721220
- मुख्य नियंत्रण कक्ष, विद्युत प्रमंडल,
कार्यालय: 7463972204 व
7479940525 - पावर सबस्टेशन डाबर ग्राम 9471397775
- पावर सबस्टेशन देवघर कॉलेज 8580194416
- पावर सबस्टेशन बैजनाथपुर 8540091787
- पावर सबस्टेशन सत्संग 9973926734
- पावर सबस्टेशन नंदन पहाड 8986702164
- पावर सबस्टेशन मोहनपुर 8084950662
- पावर सबस्टेशन जमरो 7782944243
- पावर सबस्टेशन रोहिणी 9608975160
- पावर सबस्टेशन देवीपुर 8863083866
- पावर सबस्टेशन सकरीगली9341666833
- पावर सबस्टेशन मानिकपुर6206199972
- पावर सबस्टेशन घसको 9341672610
- पावर सबस्टेशन असनपुर 9470988369
हर रविवार सुबह 11:00 बजे से सोमवार रात 12:00 बजे तक भारी वाहनों की हाेगी नो-इंट्री
- दुमका की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन मोहनपुर थानांतर्गत घोरमारा टीओपी-3 तीरनगर के पीछे रोकी जायेगी, वैकल्पिक मार्ग बायें सारवां होते हुये निकल सकेंगे
- गिरीडीह की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन देवीपुर थानांतर्गत चौधरीडीह टीओपी-11 के पास रोकी जायेगी
- चकाई/जमुई की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन जसीडीह थानांतर्गत मानिकपुर मोड से 100 मीटर पीछे रोकी जायेगी
- भागलपुर /गोड्डा की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन मोहनपुर थानांतर्गत भगवानपुर मोड़ के पास रोकी जायेगी
- सारवां/सारठ की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन कुंडा थानांतर्गत कर्णकोल मोड़ से 100 मीटर पीछे
- सुलतानगंज की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन दर्दमारा बॉर्डर से 100 मीटर पीछे
- मधुपुर की ओर से आने वाली सभी भारी वाहन कुंडा थाना के एयरपोर्ट मोड़ के पास रोके जायेंगे
पुलिस विभाग के महत्वपूर्ण यह भी जानें श्रद् मोबाइल नंबर
- एसपी अजीत पीटर डुंगडुंग 9470591079
- डीएसपी मुख्यालय वेंकटेश प्रसाद 9470591068
- डीएसपी सीसीआर लक्ष्मण प्रसाद 9431137632
- डीएसपी साइबर राजा मित्रा 9798302117
- एसडीपीओ, देवघर अशोक कुमार9470591066
- मधुपुर एसडीपीओ सत्येंद्र प्रसाद 9470591067
- सारठ एसडीपीओ, रंजीत कुमार लकड़ा 9798302235
- नगर इंस्पेक्टर9470591062
- सदर इंस्पेक्टर9470591063
- सारवां इंस्पेक्टर 9431137633
- मधुपुर इंस्पेक्टर9470591064
- पालोजोरी इंस्पेक्टर9470591065
- नगर थाना प्रभारी9470591051
- यातायात थाना प्रभारी देवघर9693170832
- कुंडा थाना प्रभाारी9470591051
- मोहनपुर थाना प्रभारी 9470591053
- सोनारायठाढ़ी थाना प्रभारी 9470591055
- जसीडीह थाना प्रभारी 9470591052
- बाबा मंदिर थाना प्रभारी 9431137947
- साइबर थाना प्रभारी 9798302205
- रिखिया थाना प्रभारी 9798302115
- देवीपुर थाना प्रभारी 9431137631
- सारवां थाना प्रभारी 9470591054
- मधुपुर थाना प्रभारी 9470591056
- करौ थाना प्रभारी 9470591057
- मारगोगुंडा थाना प्रभारी 9798302132
- बुढ़ैई थाना प्रभारी9798302213
- पाथरौल थाना प्रभारी 9798302105
- पालोजोरी थाना प्रभारी 9470591059
- सारठ थाना प्रभारी 9470591058
- चितरा थाना प्रभारी 9470591060
- खागा थाना प्रभारी9798302085
- पथरड्डा ओपी प्रभारी 9798302219

प्रयाग में सूतजी से मुनियों का तुरंत पापनाश करनेवाले साधन के विषय में प्रश
आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभाव- मार्यं तमीशमजरामरमात्मदेवम्। पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं, सम्भावये मनसि शङ्करमम्बिकेशम् ॥ जो आदि और अन्त में (तथा मध्य में भी) नित्य मंगलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं, जिनके पांच मुख हैं और खेल-ही-खेल में- अनायास जगत् की रचना, पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिका पति भगवान् शंकर का मैं मन-ही-मन चिंतन करता हूं. व्यासजी कहते हैं- जो धर्म का महान् क्षेत्र है और जहां गंगा-यमुना का संगम हुआ है, उस परम पुण्यमय प्रयाग में, जो ब्रह्मलोक का मार्ग है, सत्यव्रत में तत्पर रहनेवाले महा तेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियों ने एक विशाल ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया. उस ज्ञान यज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिक शिरोमणि व्यास शिष्य महामुनि सूत जी वहां मुनियों का दर्शन करने के लिये आये. सूतजी को आते वे सब मुनि उस समय हर्ष से खिल उठे और अत्यंत प्रसन्न चित्त से उन्होंने उनका विधिवत स्वागत सत्कार किया. तत्पश्चात् उन प्रसन्न महात्माओं ने उनकी विधिवत स्तुति करके विनयपूर्वक हाथ जोड़कर उनसे इस प्रकार कहा- ”सर्वज्ञ विद्वान् रोमहर्षणजी ! आपका भाग्य बड़ा भारी है, इसी से आपने व्यास जी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिए ही संपूर्ण पुराणविद्या प्राप्त की. इसलिए आप आश्चर्यस्वरूप कथाओं के भंडार हैं-ठीक उसी तरह, जैसे रत्नाकर समुद्र बड़े-बड़े सारभूत रत्नों का आगार हैं. तीनों लोकों में भूत, वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोई वस्तु है, वह आपसे अज्ञात नहीं है. आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिए यहां पधार गये हैं और इसी व्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले हैं; क्योंकि आपका आगमन निरर्थक नहीं हो सकता. हमने पहले भी आप से शुभाशुभ तत्त्व का पूरा-पूरा वर्णन सुना है; किंतु उससे तृप्ति नहीं होती, हमें उसे सुनने की बारंबार इच्छा होती है. उत्तम बुद्धिवाले सूतजी ! इस समय हमें एक ही बात सुननी है. यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनीय होने पर भी आप उस विषय का वर्णन करें. घोर कलियुग आने पर मनुष्य पुण्य कर्म से दूर रहेंगे, दुराचार में फंस जायंगे और सब के सब सत्य-भाषण से मुंह फेर लेंगे, दूसरों की निंदा में तत्पर होंगे. पराये धन को हड़प लेने की इच्छा करेंगे. उनका मन परायी स्त्रियों में आसक्त होगा तथा वे दूसरे प्राणियों की हिंसा किया करेंगे. अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे. मूढ़, नास्तिक और पशु बुद्धि रखनेवाले होंगे, माता-पिता से द्वेष रखेंगे. ब्राह्मण लोभ रूपी ग्राह के ग्रास बन जायेंगे. वेद बेचकर जीविका चलायेंगे. धन का उपार्जन करने के लिए ही विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे. अपनी जाति के कर्म छोड़ देंगे. प्रायः दूसरों को ठगेंगे, तीनों काल की संध्योपासना से दूर रहेंगे और ब्रह्मज्ञान से शून्य होंगे. समस्त क्षत्रिय भी स्वधर्म का त्याग करनेवाले होंगे. कुसंगी, पापी और व्यभिचारी होंगे. उनमें शौर्य का अभाव होगा. वे कुत्सित चौर्य कर्म से जीविका चलायेंगे, शूद्रों का-सा बर्ताव करेंगे और उनका चित्त काम का किंकर बना रहेगा. वैश्य संस्कार-भ्रष्ट, स्वधर्मत्यागी, कुमार्गी, धनोपार्जन-परायण तथा नाप-तौल में अपनी कुत्सित वृत्तिका परिचय देनेवाले होंगे. इसी तरह शूद्र ब्राह्मणों के आचार में तत्पर होंगे, उनकी आकृति उज्ज्वल होगी अर्थात् वे अपना कर्म-धर्म छोड़कर उज्ज्वल वेश-भूषा से विभूषित हो व्यर्थ घूमेंगे. वे स्वभावतः ही अपने धर्म का त्याग करनेवाले होंगे. उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे. वे कुटिल और द्विजनिन्दक होंगे. यदि धनी हुए तो कुकर्म में लग जायेंगे. विद्वान् हुए तो वाद-विवाद करनेवाले होंगे. अपने को कुलीन मानकर चारों वर्णां के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करेंगे, समस्त वर्णों को अपने संपर्क से भ्रष्ट करेंगे. वे लोग अपनी अधिकार-सीमा से बाहर जाकर द्विजोचित सत्कर्मों का अनुष्ठान करनेवाले होंगे. कलियुग की स्त्रियां प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और पति का अपमान करनेवाली होंगी. सास-ससुर से द्रोह करेंगी. किसी से भय नहीं मानेंगी. मलिन भोजन करेंगी. कुत्सित हाव-भाव में तत्पर होंगी. उनका शील स्वभाव बहुत बुरा होगा और वे अपने पति की सेवा से सदा ही विमुख रहेंगी. सूतजी ! इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गयी है, जिन्होंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है, ऐसे लोगों को इहलोक और परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी- इसी चिंता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है. परोपकार के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है. अतः जिस छोटे-से उपाय से इन सबके पापों का तत्काल नाश हो जाये, उसे इस समय कृपापूर्वक बताइये; क्योंकि आप समस्त सिद्धांतों के ज्ञाता हैं. व्यासजी कहते हैं- उन भावितात्मा मुनियों की यह बात सुनकर सूतजी मन-ही-मन भगवान शंकर का स्मरण करके उनसे इस प्रकार बोले- सूतजी कहते हैं – साधु महात्माओं ! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है. आपका यह प्रश्न तीनों लोकों का हित करनेवाला है. मैं गुरुदेव व्यास का स्मरण करके आपलोगों के स्नेहवश इस विषय का वर्णन करूंगा. आप आदर पूर्वक सुनें. सबसे उत्तम जो शिवपुराण है, वह वेदांत का सारसर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोता का समस्त पापराशियों से उद्धार करनेवाला है. इतना ही नहीं, वह परलोक में परमार्थ वस्तु को देनेवाला है, कलिकी कल्मषराशिका विनाश करनेवाला है. उसमें भगवान् शिव के उत्तम यश का वर्णन है. ब्राह्मणो ! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों को देनेवाला वह पुराण सदा ही अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि या विस्तार को प्राप्त हो रहा है. विप्रवरो ! उस सर्वोत्तम शिवपुराण के अध्ययन मात्र से वे कलियुग के पापासक्त जीव श्रेष्ठतम गति को प्राप्त हो जायंगे. कलियुग के महान् उत्पात तभी तक जगत में निर्भय होकर विचरेंगे, जब तक यहां शिवपुराण का उदय नहीं होगा. इसे वेद के तुल्य माना गया है. इस वेदकल्प पुराण का सबसे पहले भगवान् शिव ने ही प्रणयन किया था. विद्येश्वरसंहिता, रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता, एकादशरुद्रसंहिता, कैलास संहिता, शतरुद्रसंहिता, कोटिरुद्रसंहिता, सहस्त्र-कोटिरुद्रसंहिता, वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता – इस प्रकार इस पुराण के बारह भेद या खंड हैं. ये बारह संहिताएं अत्यन्त पुण्यमयी मानी गयी हैं. ब्राह्मणो ! अब मैं उनके श्लोकों की संख्या बता रहा हूं. आपलोग वह सब आदरपूर्वक सुनें. विद्येश्वरसंहिता में दस हजार श्लोक हैं. रुद्रसंहिता, विनायक-संहिता, उमासंहिता और मातृसंहिता इनमें से प्रत्येक में आठ-आठ हजार श्लोक हैं. ब्राह्मणो ! एकादशरुद्रसंहिता में तेरह हजार, कैलास संहिता में छह हजार, शतरुद्रसंहिता में तीन हजार, कोटिरुद्रसंहिता में नौ हजार, सहस्त्रकोटिरुद्र संहिता में 11 हजार, वायवीय संहिता में चार हजार तथा धर्मसंहिता में बारह हजार श्लोक हैं. इस प्रकार मूल शिवपुराण की श्लोक संख्या एक लाख है. परंतु व्यासजी ने उसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है. पुराणों की क्रम संख्या के विचार से इस शिवपुराण का स्थान चौथा है. इसमें सात संहिताएं हैं. पूर्वकाल में भगवान् शिव ने श्लोक- संख्या की दृष्टि से सौ करोड़ श्लोकों का एक ही पुराण ग्रन्थ ग्रथित किया था. सृष्टि के आदि में निर्मित हुआ वह पुराण-साहित्य अत्यन्त विस्तृत था. फिर द्वापर आदि युगों में द्वैपायन (व्यास) आदि महर्षियों ने जब पुराण का अठारह भागों में विभाजन कर दिया, उस समय सम्पूर्ण पुराणों का संक्षिप्त स्वरूप केवल चार लाख श्लोकों का रह गया. उस समय उन्होंने शिवपुराण का चौबीस हजार श्लोकों में प्रतिपादन किया. यही इसके श्लोकों की संख्या है. यह वेदतुल्य पुराण सात संहिताओं में बंटा हुआ है. इसकी पहली संहिता का नाम विद्येश्वरसंहिता है, दूसरी रुद्र संहिता समझनी चाहिये, तीसरी का नाम शतरुद्रसंहिता, चौथी का कोटिरुद्र संहिता, पांचवीं का उमा संहिता, छठी का कैलास संहिता और सातवीं का नाम वायवीय संहिता है. इन सात संहिताओं से युक्त दिव्य शिवपुराण वेद के तुल्य प्रामाणिक तथा सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है. यह निर्मल शिवपुराण भगवान् शिव के द्वारा ही प्रतिपादित है. इसे शैवशिरोमणि भगवान् व्यास ने संक्षेप.से संकलित किया है. यह समस्त जीव समुदाय के लिए उपकारक, त्रिविध तापों का नाश करनेवाला, तुलना-रहित एवं सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान करनेवाला है. इसमें वेदान्त-विज्ञानमय, प्रधान तथा निष्कपट (निष्काम) धर्म का प्रतिपादन किया गया है. यह पुराण ईर्ष्या रहित अन्तःकरण वाले विद्वानों के लिए जानने की वस्तु है. इसमें श्रेष्ठ मंत्र-समूहों का संकलन है तथा धर्म, अर्थ और काम- इस त्रिवर्ग की प्राप्ति के साधन का भी वर्णन है. यह उत्तम शिवपुराण समस्त पुराणों में श्रेष्ठ है. वेद-वेदान्त में वेद्य रूप से विलसित परम वस्तु -परमात्मा का इसमें गान किया गया है. जो बड़े आदर से इसे पढ़ता और सुनता है, वह भगवान् शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त कर लेता है.
(साभार : श्रीशिवमहापुराण, विद्येश्वरसंहिता) क्रमश :

देवघर के व्यावसायिक वाहन, स्कूल बस मैक्सी व ऑटो का यातायात प्लान
- देवघर क्लब ग्राउंड से बासुकिनाथ के लिये मेला विशेष परमिट वाले व्यवसायिक बसें रामजानकी मंदिर, नौलखा मंदिर मोड़ से बायें, शहीद आश्रम मोड़, बैजनाथपुर चौक, चौपा मोड़ से बायें, मोहनपुर बाजार, सरैयाहाट, हंसडीहा, नोनीहाट होते हुये बासुकिनाथधाम जायेगी. इन बसों में यात्री को 100 रुपये किराया लगेगा
- बासुकीनाथ से खुलने वाले मेला विशेष परमिट व्यवसायिक बसें घोरमारा, तीरनगर, हिण्डोलावरण से बायें तपोवन, उजाला चौक, पुराना कुंडा थाना मोड़, नौलखा मंदिर मोड़, रामजानकी मंदिर होते हुए क्लब ग्राउंड आयेगी. इन बसों में यात्रियों का किराया 70 रुपये लगेगा
आइएसबीटी से खुलनेवाली बसों की रूटलाइन
- भागलपुर, हंसडीहा, गोड्डा, दुमका से आने वाली बसें मोहनपुर बाजार, चौपा मोड़ से बायें हिंडोलावरण से दाये तपोवन होते हुए उजाला चौक से पुराना कुंडा मोड़ होते हुए हथगढ़ मोड़ से दायें देवसंघ मोड़, कोरियासा मोड़, रोहिणी बाजार होते हुए रोहिणी शहीद द्वार से बाये जसीडीह, चकाई मोड़, टाभाघाट मोड़ से दाये कुमैठा स्टेडियम होते हुए देवपुरा, कोठिया होकर आइएसबीटी पहुंचेगी
- आइएसबीटी से भागलपुर, हंसडीहा, गोड्डा, दुमका जाने वाली बसें कोठिया मोड़ से दायें कनभाटिया मोड़, दुम्मा के रास्ते रिखिया आश्रम से बायें, टीओपी-08 रिखिया से दाये माउंट लिटेरा स्कूल होकर मोहनपुर बाजार होते हुए गंतव्य की ओर जायेगी
- गिरिडीह, रांची की ओर से आने वाली बसें रोहिणी परमेश्वर चौक, शहीद द्वार से बाएं जसीडीह, चकाई मोड़, टाभाघाट मोड़ से दाएं कुमैठा स्टेडियम होते हुए देवपुरा, कोठिया होकर आइएसबीटी पहुंचेगी
- आइएसबीटी से गिरीडीह, रांची की ओर से जाने वाली बसें कोठिया मोड़ से दाएं कनभाटिया मोड़, दुम्मा के रास्ते रिखिया आश्रम से बाएं टीओपी-08 से दाएं माउंट लिटेरा स्कूल से सीधे मोहनपुर बाजार से दायें चौपा मोड़, हिंडोलावरण से दायें तपोवन, उजाला चौक से पुराना कुंडा थाना मोड़ होकर हथगढ़ मोड़ से दायें देवसंघ, कोरियासा मोड़ होकर गंतव्य की ओर जायेगी
- सारठ-सारवां से आइएसबीटी आने वाली बसें हथगढ़ मोड़ से दाये देवसंघ होकर कोरियासा मोड़, रोहिणी बाजार होते हुए शहीद द्वार से बाये जसीडीह, चकाई मोड़, टाभाघाट मोड़ से दाएं कुमैठा स्टेडियम होते हुए देवपुरा, कोठिया होकर आइएसबीटी पहुंचेगी
- आइएसबीटी से सारवां, सारठ के लिये कोठिया मोड़ से दायें कनभाटिया मोड़, दुम्मा के रास्ते रिखिया आश्रम से बाएं, टीओपी-08 से दाएं माउंट लिटेरा स्कूल से सीधे मोहनपुर बाजार से दाएं चौपा मोड़, हिंडोलावरण से दाएं तपोवन, उजाला चौक से पुराना कुंडा थाना मोड होकर गंतव्य की ओर जायेगी
- बिहार, सुल्तानगंज की ओर से दर्दमारा बार्डर, देवपुरा, कोठिया होते हुए आइएसबीटी आयेगी
- आइएसबीटी से कोठिया, देवपुरा, दर्दमारा बार्डर होते हुए अपने गंतव्य की ओर सुल्तानगंज जायेगी
- बिहार, चकाई, जमुई से आने वाली बसें मानिकपुर मोड़ से बायें दर्दमारा बार्डर, देवपुरा, कोठिया होते हुए आइएसबीटी आयेगी
- आइएसबीटी से बिहार, चकाई, जमुई की ओर जाने वाली बसें कोठिया, देवपुरा मोड़ से बायें कुमैठा स्टैडियम मोड़, टाभाघाट मोड़ से दायें मानिकपुर मोड़ होते हुये गंतव्य की ओर जायेगी
- देवघर शहर में वन-वे ऑटो/टोटो रूट: परमिट के अनुरुप 16 किमी रुट पर ही चलेंगे
- मीना बाजार (फव्वारा चौक), मंदिर मोड से शहीद आश्रम मोड़ तक का मार्ग जाने हेतु वन-वे होगा
- बैजनाथपुर मोड़ से आने वाली सभी ऑटो व टोटो शहीद आश्रम मोड़ से बाये नौलखा मंदिर मोड़, कुंडा होते हुए अपने गंतव्य की ओर जायेंगे
- एलआइसी मोड़, मस्जिद मोड़, थाना मोड़ से दायें, बिग बाजार मोड़ तक का रास्ता वन-वे होगा. जसीडीह-देवघर रूट के ऑटो व टोटो थाना मोड से दायें, बिग बाजार, साइबर थाना होकर एलआइसी मोड़ से निकलकर जसीडीह की ओर जायेगी
- मीना बाजार (फव्वारा चौक) की ओर से आने वाले ऑटो व टोटो बजरंगी चौक से बायें जैन मंदिर तक का रास्ता वन-वे होगा, जो राज रेडियो, वीआइपी चौक, आंबेडकर चौक होते हुए अपने गंतव्य की ओर जायेगी -मोहनपुर, देवघर रूट के ऑटो चौपा मोड से बाये हिंडोलावरण से दाये तपोवन होकर उजाला चौक से बाये पुराना कुंडा थाना मोड से दाएं कुंडा थाना होते हुए सारवां मोड़ से बाये केकेएन स्टेडियम, फव्वारा चौक, मंदिर मोड़, शहीद आश्रम, बैजनाथपुर से सीधे चौपा मोड होते हुए अपने गंतव्य की ओर जायेगी
- सारवां-सारठ से देवघर आने वाले ऑटो कुंडा के रास्ते सारवां मोड़ से बाएं केकेएन स्टेडियम होकर फव्वारा चौक होते हुए पुनः वापस कुंडा होते हुये अपने गंतव्य की ओर जायेंगे
- देवीपुर एम्स की ओर से आने वाली ऑटो/मैक्सी कोरियासा से सीधे शंख मोड़ से दाएं सुभाष चौक, बाजला चौक से दाएं देवसंघ, कोरियासा मोड़ होते हुए पुनः वापस उसी रास्ते लौटेगी
- कोठिया पार्किंग स्थल, सरसा पार्किंग स्थल, परित्राण मेडिकल कॉलेज मैदान पार्किंग स्थल, भलुआ मैदान पार्किंग स्थल की ओर से आने वाले ऑटो व टोटो श्रद्धालुओं को लेकर गिधनी मोड़, साईं मंदिर होकर आइएसबीटी पहुंचेगी और उसी रास्ते लौटेगी
भारत में प्रमुख शिवस्थान अर्थात ज्योतिर्लिंग बारह हैं. ये तेजस्वी रूप में प्रकट हुए. इनमें बाबा बैद्यनाथ नौवें हैं. ज्योतिर्लिंग का अर्थ व्यापक ब्रह्मात्मलिंग अथवा व्यापक प्रकाश लिंग है. तैत्तिरीय उपनिषद् में ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार एवं पंचमहाभूत, इन 12 तत्त्वों को बारह ज्योतिर्लिंग माना गया है. इस पुस्तिका में हर दिन एक ज्योतिर्लिंग की महत्ता की जानकारीदी जा रही है. आज पढ़ें प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे में.

प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के प्रादुर्भाव की कथा और उसकी महिमा
तदनंतर कपिला नगरी के कालेश्वर, रामेश्वर आदि की महिमा बताते हुए सूत जी ने समुद्र के तट पर स्थित गोकर्ण क्षेत्र के शिवलिंगों की महिमा का वर्णन किया. फिर महाबल नामक शिवलिंग का अद्भुत माहात्म्य सुनाकर अन्य बहुत-से शिवलिंगों की विचित्र माहात्म्य-कथा का वर्णन करने के पश्चात् ऋषियों के पूछने पर वे ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करने लगे. सूतजी बोले- ब्राह्मणो ! मैंने सद्गुरु से जो कुछ सुना है, वह ज्योतिर्लिंगों का माहात्म्य तथा उनके प्राकट्य का प्रसंग अपनी बुद्धि के अनुसार संक्षेप से ही सुनाऊंगा. तुम सब लोग सुनो. मुने ! ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है; अतः पहले उन्हीं के माहात्म्य को सावधान होकर सुनो. मुनीश्वरों ! महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था. चंद्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्ष कन्याएं विशेष शोभा पाने लगीं तथा चंद्रमा भी उन्हें पत्नी के रूप में पाकर निरंतर सुशोभित होने लगे. उन सब पत्नियों में भी जो रोहिणी नामकी पत्नी थी, एकमात्र वही चंद्रमा को जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई. इससे दूसरी स्त्रियों को बड़ा दुःख हुआ. वे सब अपने पिता की शरण में गयीं. वहां जाकर उन्होंने जो भी दुःख था, उसे पिता को निवेदन किया. द्विजो ! वह सब सुनकर दक्ष भी दुःखी हो गये और चंद्रमा के पास आकर शान्तिपूर्वक बोले. दक्ष ने कहा-कलानिधे ! तुम निर्मल कुल में उत्पन्न हुए हों तुम्हारे आश्रय में रहनेवाली जितनी स्त्रियां हैं, उन सबके प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिक भाव क्यों है ? तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्यार क्यों करते हो ? अब तक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमतापूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसे नरक देनेवाला बताया गया है. सूतजी कहते हैं-महर्षियों ! अपने दामाद चंद्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गयें उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा. पर चंद्रमा ने प्रबल भावी से विवश होकर उनकी बात नहीं मानी. वे रोहिणी में इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे. इस बात को सुनकर दक्ष दुःखी हो फिर स्वयं आकर चंद्रमा को उत्तम नीति से समझाने तथा न्यायोचित बर्ताव के लिये प्रार्थना करने लगे. दक्ष बोले-चंद्रमा ! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूं. फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी. इसलिये आज शाप देता हूं कि तुम्हें क्षय का रोग हो जाये. सूतजी कहते हैं-दक्ष के इतना कहते ही क्षण भर में चंद्रमा क्षय रोगसे ग्रस्त हो गये. उनके क्षीण होते ही उस समय सब ओर महान् हाहाकार मच गया. सब देवता और ऋषि कहने लगे कि ”हाय ! हाय ! अब क्या करना चाहिये, चंद्रमा कैसे ठीक होंगे?” मुने ! इस प्रकार दुःख में पड़कर वे सब लोग विह्वल हो गये. चंद्रमा ने इन्द्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियों को अपनी अवस्था सूचित की. तब इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्माजी की शरण में गये. उनकी बात सुनकर ब्रह्माजीने कहा- देवताओं ! जो हुआ, सो हुआ। अब वह निश्चय ही पलट नहीं सकतां अतः उसके निवारण के लिए मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बताता हूं. आदरपूर्वक सुनो. चंद्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जायें और वहां मृत्युंजय मन्त्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान् शिव की आराधना करें. अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके वहां चंद्रदेव नित्य तपस्या करें. इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षयरहित कर देंगे. तब देवताओं तथा ऋषियों के कहने से ब्रह्माजी की आज्ञा के अनुसार चंद्रमा ने वहां छह महीने तक निरन्तर तपस्या की, मृत्युंजय-मन्त्र से भगवान् वृषभ ध्वज का पूजन किया. दस करोड़ मन्त्र का जप और मृत्युंजय का ध्यान करते हुए चंद्रमा वहां स्थिरचित्त होकर लगातार खड़े रहे. उन्हें तपस्या करते देख भक्त वत्सल भगवान् शंकर प्रसन्न हो उनके सामने प्रकट हो गये और अपने भक्त चंद्रमा से बोले. शंकर जी ने कहा-चंद्रदेव ! तुम्हारा कल्याण हो; तुम्हारे मन में जो अभीष्ट हो, वह वर मांगो ! मैं प्रसन्न हूं. तुम्हें सम्पूर्ण उत्तम वर प्रदान करूंगा. चंद्रमा बोले- देवेश्वर ! यदि आप प्रसन्न हैं, तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है; तथापि प्रभो ! शंकर ! आप मेरे शरीर के इस क्षय रोग का निवारण कीजिये. मुझसे जो अपराध बन गया हो, उसे क्षमा कीजिये. शिवजी ने कहा- चंद्रदेव! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्ष में फिर वह निरंतर बढ़ती रहे. तदनन्तर चंद्रमा ने भक्ति भाव से भगवान् शंकर की स्तुति की. इससे पहले निराकार होते हुए भी वे भगवान् शिव फिर साकार हो गये. देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के माहात्म्य को बढ़ाने तथा चंद्रमा के यश का विस्तार करने के लिये भगवान् शंकर उन्हीं के नाम पर वहां सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए. ब्राह्मणो ! सोमनाथ का पूजन करने से वे उपासक के क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों का नाश कर देते हैं. ये चंद्रमा धन्य हैं, कृतकृत्य हैं, जिनके नाम से तीनों लोकों के स्वामी साक्षात् भगवान् शंकर भूतल को पवित्र करते हुए प्रभास क्षेत्र में विद्यमान हैं. वहीं सम्पूर्ण देवताओं ने सोमकुंड की भी स्थापना की है, जिसमें शिव और ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है. चंद्रकुंड इस भूतल पर पापनाशन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है. जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है. क्षय आदि जो असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुंड में छह मास तक स्नान करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं. मनुष्य जिस फल के उद्देश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, उस फल को सर्वथा प्राप्त कर लेता है- इसमें संशय नहीं है. चंद्रमा नीरोग होकर अपना पुराना कार्य संभालने लगे. इस प्रकार मैंने सोमनाथ की उत्पत्ति का सारा प्रसंग सुना दिया. मुनीश्वरों ! इस तरह सोमेश्वर लिंग का प्रादुर्भाव हुआ है, जो मनुष्य सोमनाथ के प्रादुर्भाव की इस कथा को सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह सम्पूर्ण अभीष्ट को पाता और सब पापों से मुक्त हो जाता है.