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विकास दर के परिदृश्य पर चुनौतियां

डॉ जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री [email protected] इन दिनों पूरी दुनिया की निगाहें वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत द्वारा सर्वाधिक विकास दर के स्तर को बनाये रखने की चुनौतियों की ओर लगी हुई हैं. हाल ही में 9 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यद्यपि वित्त वर्ष 2018-19 […]

डॉ जयंतीलाल भंडारी

अर्थशास्त्री

[email protected]

इन दिनों पूरी दुनिया की निगाहें वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत द्वारा सर्वाधिक विकास दर के स्तर को बनाये रखने की चुनौतियों की ओर लगी हुई हैं.

हाल ही में 9 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यद्यपि वित्त वर्ष 2018-19 में भारत की विकास दर 7.3 फीसदी पर बरकरार रहेगी और भारत चीन को पीछे रखते हुए सबसे अधिक विकास दर वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. लेकिन आगामी वर्ष 2019-20 में भारत को विकास दर बनाये रखने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे.

भारत को डॉलर की कमाई बढ़ाना होगी तथा महंगे होते कच्चे तेल की चिंताओं से बचना होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रेड वॉर के बीच अमेरिका की तरफ से लगाये गये प्रतिबंधों से चीन की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी.

ऐसे में भारत को चीन की ओर से आयात बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखना होगा. इसी तरह विगत पांच अक्तूबर को अमेरिका की ख्यात वैश्विक संस्था यूएस ग्रेन्स काउंसिल ने कहा है कि डॉलर की बढ़ती कीमत और कच्चे तेल का बढ़ता हुआ महंगा आयात भारत के चालू खाते घाटे को लगातार बढ़ा रहा है और यह स्थिति भारत की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का सबब बन रही है.

निश्चित रूप से यह कोई छोटी बात नहीं है कि जहां दुनिया के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाएं डॉलर की मजबूती, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार के दुष्परिणामों से ढहते हुए दिखायी दे रही हैं, तब भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू बचत और रिकाॅर्ड खाद्यान्न उत्पादन के कारण मजबूती से टिकी हुई है. जिस तरह 2008 में वैश्विक मंदी के बीच घरेलू बचत और कृषि उत्पादन के चलते भारत पर मंदी का बहुत कम असर हुआ था. उसी तरह वर्ष 2018-19 में फिर घरेलू बचत और भरपूर खाद्यान्न उत्पादन भारतीय अर्थव्यवस्था की शक्ति बनते हुए दिख रहे हैं.

लेकिन, अब जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होते हुए 75 के स्तर पर पहुंच गया है और विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है, तब जरूरी है कि विकास दर बनाये रखने के रणनीतक कदम उठाये जायें.

निसंदेह कच्चे तेल की बढ़ती वैश्विक कीमतें भारत के आम आदमी से लेकर संपूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं. एचपीसीएल, बीपीसीएल और इंडियन ऑयल जैसी सरकारी तेल कंपनियों की आमदनी घटने का परि²दृश्य सामने है. सरकार का कहना है कि वर्ष 2018-19 में तेल से सरकार को मिलनेवाले राजस्व में 10,500 करोड़ का घाटा होगा, लेकिन सरकार वित्तीय घाटे को 3.3 प्रतिशत पर बनाये रख सकेगी.

वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज का कहना है कि भारत में तेल विपणन कंपनियों के द्वारा और अधिक कीमतों में कटौती कर तेल के दाम कम करने का घरेलू तेल उद्योग पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और भारतीय तेल कंपनियों की रेटिंग नकारात्मक हो सकती है.

वैश्विक अर्थ-विशेषज्ञों का कहना है कि महंगे होते कच्चे तेल के मद्देनजर और डॉलर की बढ़ती हुई चिंताओं से बचने के लिए भारत को ईरान के साथ ही रूस और वेनेजुएला से भी रुपये में कारोबार की संभावनाओं को साकार करना होगा.

ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध आगामी चार नवंबर से प्रभावी होगा, जिसके बाद दुनिया के जो देश ईरान से कच्चा तेल मंगायेंगे, उन पर अमेरिका प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करेगा.

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने नवंबर 2018 में ईरान से 12.5 लाख टन कच्चा तेल आयात करने के लिए समझौता किया है. हालांकि, भारत और ईरान चार नवंबर के बाद से रुपये में कारोबार करने पर विचार कर रहे हैं.

सरकार ने देश को डॉलर के संकट से बचाने, गैरजरूरी आयात पर लगाम लगाने और चालू खाते के घाटे को पाटने के लिए गत 26 सितंबर को 19 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाया है, जो एक उपयोगी कदम था. अर्थ-विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि अमेरिका में चीन के कई सामानों के आयात पर पाबंदी लग गयी है, अत: अमेरिका में क्रिसमस और छुट्टिïयों के लिए चीन में जो सामान बन रहा है, अगर उसे अमेरिकी बाजार में कम मात्रा में भेजा गया, तो उसके भारतीय बाजार में आने की आशंका बढ़ जायेगी.

पिछले पांच साल में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर व्यापार घाटा दोगुना हो गया है. अतएव, इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर आयात शुल्क लगाया जाना चाहिए. धातुओं पर भी आयात शुल्क बढ़ाने पर विचार होना चाहिए. चूंकि देश में बड़ी मात्रा में लौह अयस्क है, ऐसे में सरकार को लौह अयस्क के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए.

निश्चित रूप से देश की विकास दर बढ़ाने के लिए जहां गैरजरूरी आयात नियंत्रित किये जाने जरूरी हैं, वहीं चीन और अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न बाजारों में निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं को साकार करना होगा.

दुनियाभर में भारत से खाद्य निर्यात की नयी संभावनाएं बढ़ानी चाहिए. इस साल देश में 6.8 करोड़ टन गेहूं और चावल का भंडार जरूरी बफर स्टॉक से करीब दोगुना है.

ऐसे में, खाद्यान्न निर्यात से डॉलर की कमाई बढ़ायी जा सकती है. निश्चित रूप से भारत द्वारा दुनिया की सर्वाधिक विकास दर का चेहरा बनाये रखने के लिए विशेष रणनीतिक कदम आगे बढ़ाये जाने होंगे. रणनीतिक कदमों से ही आगामी वर्ष 2019-20 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट के बीच भी भारत विकास दर को संभाले रख सकेगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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