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प्राइवेट सेक्टर के लिए एक बड़ी चुनौती महिलाओं की ऊंचे पदों पर संख्या बढ़ाने के साथ यह भी है कि वे अपने कैरियर को बीच में न छोड़ें. इससे उन पर निवेश किया गया वक्त व धन बरबाद होता है और देश की जीडीपी पर भी इसका असर पड़ता है. डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी […]

प्राइवेट सेक्टर के लिए एक बड़ी चुनौती महिलाओं की ऊंचे पदों पर संख्या बढ़ाने के साथ यह भी है कि वे अपने कैरियर को बीच में न छोड़ें. इससे उन पर निवेश किया गया वक्त व धन बरबाद होता है और देश की जीडीपी पर भी इसका असर पड़ता है.
डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहम योजना है. फेसबुक के सीइओ मार्क जुकरबर्ग ने अपनी हाल की भारत-यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी को बताया कि कैसे फेसबुक इस योजना को विस्तार देने में मददगार साबित हो सकता है. इस बीच एक महत्वपूर्ण खबर यह है कि अपने मुल्क में आइटी सेक्टर के प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करनेवाली महिलाओं की संख्या एक तिहाई को पार कर गयी है.
इस आंकड़े का लैंगिक विविधता के नजरिये से अलग महत्व तो है ही, पर इसके साथ ही कैरियर के प्रति सचेत युवा महिलाओं को उत्साहजनक माहौल प्रदान करना भी है. किसी भी देश के आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण संकेतकों में एक संकेत है- वहां के कार्यबल में औरतों की भागीदारी. टाटा ग्रुप की टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) में महिलाओं का आंकड़ा एक लाख को पार कर गया है और इस दृष्टि से टीसीएस भारत में प्राइवेट सेक्टर में सबसे ज्यादा महिलाओं को काम देनेवाली कंपनी बन गयी है. आइबीएम में एक लाख तीस हजार महिलाएं हैं और पुरुषों की संख्या तीन लाख है. इनफोसिस व विप्रो में महिलाओं की संख्या 54,537 और 45,276 है और पुरुषों की संख्या 1,61,284 व 1,47,452 है.
आइटी सेक्टर के जानकारों का कहना है कि भारत में इस सेक्टर में महिला टैलेंट की कमी नहीं है, पर कंपनियों का फोकस लैंगिक विविधता की ओर होना चाहिए. महिला-पुरुष अनुपात में जो असंतुलन है, उसे नीतियों द्वारा दूर करने की दिशा में तेजी से अग्रसर होने का वक्त है. ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि बीएसइ की चोटी की 100 कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या बहुत कम है.
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, कम्युनिटी बिजनेस एंड क्रेनफील्ड स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की ‘विमेन ऑन कॉरपोरेट बोर्डस इन इंडिया’ नामक इस रपट के अनुसार कनाडा व अमेरिका में ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर 15 प्रतिशत महिलाएं हैं. ब्रिटेन में यह संख्या करीब 12 प्रतिशत है. हांगकांग व ऑस्ट्रेलिया भी हमसे आगे हैं.
दरअसल, दुनिया में तेज गति से उभरती अर्थव्यवस्था वाले भारत में इस मुद्दे पर खुल कर बहस होनी चाहिए. यह ध्यान में रखना होगा कि शिक्षित महिलाएं इस देश की गतिशील अर्थव्यवस्था के मुख्य ईंजनों में एक हैं. व्हाइट कॉलर की यह नयी पौध पेशेवर रूझान के साथ शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेती है और उसी रूझान व तेवरों के साथ ही जॉब मार्केट में उतरती है. हावर्ड बिजनेस रिव्यू में छपे एक शोध के मुताबिक भारत में 85 प्रतिशत महिलाएं महत्वाकांक्षी हैं, जबकि चीन में 65 प्रतिशत. भारत की 76 प्रतिशत महिलाएं खुद को नौकरी में टॉप पर देखने की आंकाक्षा रखती हैं. हैरत होती है उस फासले को देख कर, जो ऐसी आकांक्षा पालनेवाली महिलाओं व जमीनी हकीकत के बीच पसरा हुआ है.
शादी के बाद से ही ऐसी अभिलाषा दम घुटने लगती है, क्योंकि आधी से अधिक शादीशुदा महिलाओं पर ससुरालवाले नौकरी छोड़ने का दबाव बनाते हैं. एक बच्चे को जन्म देने के बाद भी नौकरी न छोड़नेवाली 52 प्रतिशत महिलाओं को अलोचना सहनी पड़ी. इधर कैरियर में बाधा बनता घरेलू माहौल, तो उधर 45 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं मानती हैं कि कार्यालयों में उनके साथ होनेवाले पक्षपात की वजह उनका औरत होना है. जब शिक्षित महिलाएं देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अपना कैरियर, बच्चों व सांस्कृतिक दबावों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, तो कंपनियों को चाहिए कि इन महिलाओं को ऊंचे पदों पर पहुंचने में मदद करें.
इंडिया इंक का जोर बिजनेस कंपनियों में अधिक से अधिक महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर है. उसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि महिलाएं हर स्थिति में बेहतर प्रोफेशनल बन कर सामने आती हैं. सरकारी नौकरियों में भी उच्च पदों पर बहुत कम महिलाएं हैं. हाल में जारी दिल्ली आर्थिक जनगणना रिपोर्ट 2013 के अनुसार कामकाजी महिलाओं का राष्ट्रीय औसत 25.56 प्रतिशत है, पर दिल्ली में यह आंकड़ा 12.19 प्रतिशत है.
यूपीए सरकार ने सरकारी नौकिरयों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के मकसद से एक मुहिम भी छेड़ी थी. इसके तहत केंद्र सरकार के किसी भी मंत्रलय, स्वायत्त संस्थान या संबंद्ध एजेंसियों द्वारा कराई जानेवाली सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षा, साक्षात्कार के लिए महिलाओं को शुल्क से छूट प्रदान की गयी है. प्राइवेट सेक्टर के लिए एक बड़ी चुनौती महिलाओं की ऊंचे पदों पर संख्या बढ़ाने के साथ यह भी है कि वे अपने कैरियर को बीच में न छोड़ें.
इससे उन पर निवेश किया गया वक्त व धन बरबाद होता है और देश की जीडीपी पर भी इसका असर पड़ता है. निर्णय लेनेवाले पदों पर महिलाओं को पहुंचने के मौके मिलते हैं, तो ऐसे में कंपनी व सरकार की नीतियां व परिवार का प्रगतिशील नजरिया अहम हो जाता है.
अलका आर्य
महिला मामलों की लेखिका
Prabhat Khabar Digital Desk
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