23.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

आखिर चाहते क्या हैं तालिबान?

पाकिस्तान के पेशावर में तालिबान आतंकियों द्वारा मासूमों की निर्मम हत्या से मानवता कराह उठी. खून पेशावर में बहा, लेकिन आंसू पूरी दुनिया ने बहाया. दुनिया का कोई भी धर्म ऐसी हत्या की इजाजत नहीं देता, लेकिन जिन धर्माध तालिबानियों ने इस क्रूरतम वारदात को अंजाम दिया है, वे खुद को इसलाम का सच्चा पैरोकार […]

पाकिस्तान के पेशावर में तालिबान आतंकियों द्वारा मासूमों की निर्मम हत्या से मानवता कराह उठी. खून पेशावर में बहा, लेकिन आंसू पूरी दुनिया ने बहाया. दुनिया का कोई भी धर्म ऐसी हत्या की इजाजत नहीं देता, लेकिन जिन धर्माध तालिबानियों ने इस क्रूरतम वारदात को अंजाम दिया है, वे खुद को इसलाम का सच्चा पैरोकार मानने का दंभ भरते हैं. ऐसे में यह सवाल हर किसी के जेहन में है कि आखिर चाहते क्या हैं तालिबान? इसी सवाल के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल कर रहा है आज का समय.

आकार पटेल

वरिष्ठ पत्रकार

पेशावर में मासूमों की निर्मम हत्या के बाद यह सवाल हर किसी के जेहन में है तालिबान असल में चाहते क्या हैं और उनसे लड़ना पाकिस्तान के लिए क्यों आसान नहीं है? दुनियाभर के विश्लेषकों की इससे संबंधित रिपोर्टो और तालिबान प्रवक्ताओं की दलीलों से दो बातें स्पष्ट हैं. पहली- तालिबान जो वस्तुत: चाहते हैं, वह है शरिया संहिता. और दूसरी- कि वे कोई जंगली या पृथक समूह नहीं हैं, बल्कि ठीक-ठाक वित्तीय आधार वाले लोग हैं. सवाल है कि क्यों वे ये मांग करते हैं. इसका जवाब पाकिस्तान के कानून में है.

पेशावर में मासूमों की निर्मम हत्या के बाद यह सवाल हर किसी के जेहन में है तालिबान असल में चाहते क्या हैं और उनसे लड़ना पाकिस्तान के लिए क्यों आसान नहीं है?

एसोसिएटेड प्रेस ने 17 दिसंबर को एक आलेख प्रकाशित किया था- ‘पेशावर आतंकी हमला : क्या चाहते हैं पाकिस्तानी तालिबान?’ इस सवाल के जवाब में रिपोर्ट में कहा गया- ‘तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार को अपदस्थ करने और कठोर इसलामी कानून लागू करने की शपथ ली है.’

न्यूज चैनल ‘सीएनएन’ पर लॉरा स्मिथ-स्पार्क और टिम लिस्टर ने अपनी रिपोर्ट ‘क्या करना चाहते हैं तालिबान?’ में बताया कि ‘जब घेराबंदी खत्म हुई, तो पाकिस्तान चकराया हुआ था और दुनिया जानना चाह रही थी कि किसने ऐसा निर्मम कुकृत्य किया होगा? और उन्हें इससे क्या हासिल होने की उम्मीद रही होगी? पेशावर में सेना द्वारा संचालित स्कूल में हुए नरसंहार के लिए जिम्मेवार समूह की पहचान अब कोई रहस्य नहीं है. आतंकी हमला करने का दावा सबसे पहले तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने किया, जो एक अरसे से पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए है, क्योंकि वे सत्ता को बेदखल कर शरिया संहिता लाना चाहते हैं.’

अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ में जेम्स रश ने ‘तालिबान कौन हैं और क्या चाहते है?’ में लिखा- ‘पाकिस्तानी तालिबान सरकार गिराने और कठोर इसलामी राज्य की स्थापना के मकसद के लिए लड़ते आ रहे हैं. कबीलाई इलाकों में आतंकवादियों के विरुद्ध चलाये गये एक बड़े अभियान के बाद इस समूह ने हमलों को अंजाम देने की कसम खायी थी.’

यही सवाल अरसे से अन्य अंगरेजी प्रेस भी पूछता आ रहा है. 2010 में ‘द नेशनल’ के लिए अपनी रिपोर्ट में हमीदा गफूर ने अफगानी तालिबान के बारे में यही सवाल उठाया था- ‘तालिबान कौन हैं और वे क्या चाहते हैं?’ उधर, तालिबान के एक आंख वाले सरगना मुल्ला उमर के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने पिछले साल सीएनएन के साथ एक साक्षात्कार में कहा था, ‘हम शुरू से ही अपने देश से विदेशी ताकतों को हटाने, अफगानिस्तान में इसलामी सरकार के गठन और शरिया संहिता लागू करने की मांग करते आ रहे हैं और एक बार फिर कह रहे हैं.’

आर्थर ब्राइट ने 2012 में क्रिश्चियन साइंस मॉनीटर में ‘तालिबान कौन हैं और वे क्या चाहते हैं?’ शीर्षक लेख में तालिबान के वित्तीय स्नेतों के बारे में एक विशेषज्ञ को यह कहते हुए उद्धृत किया था- ‘समझा जाता है तालिबान के कोष का एक बड़ा हिस्सा अरब के खाड़ी देशों में रहने वाले व्यक्तियों से मिलता है. उग्रवादी धन जुटाने के समय के तौर पर मुसलिम तीर्थ मक्का के हज का उपयोग भी कर सकते हैं. खाड़ी के उग्रवादियों के साथ गंठजोड़ कुछ गुटों पर अलकायदा का प्रभाव बढ़ाने के लिए जिम्मेवार हो सकते हैं.’

इनसे दो बातें स्पष्ट हैं. पहली- तालिबान जो वस्तुत: चाहते हैं, वह है शरिया संहिता. और दूसरी- कि वे कोई जंगली या पृथक समूह नहीं हैं, बल्कि ठीक-ठाक वित्तीय आधार वाले लोग हैं. सवाल है कि क्यों वे ये मांग करते हैं. इसका जवाब पाकिस्तान के कानून में है.

पाकिस्तानी संविधान का अनुच्छेद 227 (इसलामिक प्रोविजंस, पार्ट 9) कहता है- ‘1. इस भाग के सभी मौजूदा कानूनों को इसलाम के आदेशों, जैसा कि पवित्र कुरान और सुन्नत में निर्धारित है, के अनुरूप बनाया जायेगा. तथा ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया जायेगा, जो इसलाम के आदेशों के प्रतिकूल हो.’

यह प्रतिबद्धता स्पष्ट और असंदिग्ध है. यह जिन्ना के उत्तराधिकारी लियाकत अली खान के अधीन 1949 में गठित संविधान सभा के एक वादे से आता है. उद्देश्यों की प्रस्तावना का पाठ कहता है- ‘संपूर्ण ब्रrांड पर अकेले सर्वशक्तिमान अल्लाह की संप्रभुता है. तथा पाकिस्तान की जनता द्वारा सत्ता का उपयोग उनके द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर किया जायेगा. यह एक पवित्र विश्वास है.’ ‘जबकि पाकिस्तान की जनता की इच्छा एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने की है, जिसमें राष्ट्र अपनी शक्तियों तथा अधिकारों इस्तेमाल जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के जरिये करेगा, जिसमें लोकतंत्र के सिद्धांतों- स्वतंत्रता, समानता, सहिष्णुता तथा सामाजिक न्याय, जैसा कि इसलाम द्वारा निरूपित किया गया है- का पूरी तरह अनुपालन किया जायेगा. इसके तहत मुसलमान निजी तथा सामूहिक दायरे में, पवित्र कुरान तथा सुन्नत में निर्दिष्ट इसलाम की शिक्षाओं तथा जरूरतों के मुताबिक, अपने जीवन को व्यवस्थित करने में समर्थ बनाये जायेंगे.’

इसके बावजूद, पाकिस्तान के अधिकतर कानून लगभग वैसे ही हैं, जैसे कि धर्मनिरपेक्ष भारत के हैं. इनमें अधिकतर प्रावधान घुमा-फिराकर वही हैं, जिन्हें ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान 19वीं सदी के मध्य में मैकाले ने लिखा था. 1980 में राष्ट्रपति जियाउल हक ने कुछ इसलामी कानून लागू किये थे. इनमें शराब के साथ पकड़े जाने पर कोड़े मारने तथा बलात्कार और मृत्यु पर मुआवजे आदि को लेकर कानून शामिल थे. लेकिन, इनमें से कई कानून किताब में तो हैं, पर हकीकत में उनका पालन नहीं किया जाता, क्योंकि पाकिस्तानी राष्ट्र समय को पीछे ले जाने को लेकर अनिच्छुक रहा है.

विश्लेषक खालिद अहमद पाकिस्तान को ‘एक आधा-अधूरा इस्लामीकृत देश’ कहते हैं. मतलब कि पूरी तरह शरिया कानून लागू करने का वादा अटक गया है और साफगोई के अभाव का फायदा तालिबान उठा रहे हैं.

इसीलिए बहुत से विश्लेषक इस सवाल का जवाब खोजने में अपना सिर नोच रहे हैं कि ‘क्या तालिबान सचमुच पाकिस्तानी संविधान को लागू कराना चाहते हैं?’ और यही वजह है, जिसके कारण तालिबान से लड़ना मुश्किल है, क्योंकि वे कहते हैं कि वे कानून के सवाल को लेकर सही हैं. ऐसे में उनके विरुद्ध तब तक कोई भी लड़ाई कामयाब नहीं होगी, या ठीक से शुरू भी नहीं की जा सकती, जब तक कि पाकिस्तान के संविधान तथा उसके वादों को लेकर बने भ्रम का निराकरण नहीं हो जाता.

भारतीय मीडिया मुंबई हमला (26/11) मामले में मुख्य आरोपित लश्कर-ए-तैयबा के जकी उर रहमान लखवी को जमानत मिलते ही पाकिस्तानी सेना पर चोट करने में जुट गया. पेशावर हमले के बाद पाकिस्तानी वेबसाइटों पर भारतीयों की कई टिप्पणियाें में वही लाइन ली गयी, जिसका पात्र पाकिस्तान अपनी नीतियों के कारण रहा है.

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि ‘मेरे देश में जो लोग कहते हैं कि पाकिस्तान इसी का पात्र है, उनसे कहना चाहता हूं कि ईश्वर के लिए राज्य और नागरिक समाज के बीच भेद करना सीखें. कोई भी निदरेष भारतीय या पाकिस्तानी अपनी जान गंवाने का हकदार नहीं था. न तो 26/11 को और न ही 16/12 को. हां, आतंकवादियों और आजादी के लड़ाकों के बीच बनावटी भेदभाव बंद होना चाहिए. हां, पाकिस्तानी सेना को आतंक प्रायोजित करने और उसके साथ संघर्ष करने के अपने दोहरेपन को सुधारने की जरूरत है. और हां, हमें भी दोषारोपण के खेल के लिए पुरानी त्रसदियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.’

मेरे विचार से यह सेना अथवा सरकार की चिंता का विषय नहीं है. इस बदलाव की शुरुआत नागरिक समाज से होनी चाहिए. यही कारण है कि तालिबान से पाकिस्तान की लड़ाई मुश्किल है.

(अनुवाद : कुमार विजय)

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel