24.5 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

पढें, यूनान के सबक

यूरोपीय संघ में यूनान के बने रहने या दिवालिया होने की आशंकाओं के बीच भारत समेत दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट और यूरो के मूल्य में भारी कमी आयी है. कुछ ही दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने चेतावनी दी थी कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा निर्यात पर बल देकर अपने पड़ोसी […]

यूरोपीय संघ में यूनान के बने रहने या दिवालिया होने की आशंकाओं के बीच भारत समेत दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट और यूरो के मूल्य में भारी कमी आयी है. कुछ ही दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने चेतावनी दी थी कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा निर्यात पर बल देकर अपने पड़ोसी देशों को गरीब बनाने की रणनीति वैश्विक महामंदी का एक कारण बन सकती है.

हालांकि, रिजर्व बैंक ने बाद में स्पष्टीकरण दिया है कि महामंदी के कई कारण हो सकते हैं और राजन उनमें से सिर्फ एक का उल्लेख कर रहे थे तथा उनकी चेतावनी का यह मतलब नहीं है कि मंदी का संकट निकट भविष्य में उत्पन्न हो सकता है.

राजन समेत अनेक विशेषज्ञ मानते हैं कि यूरो क्षेत्र में मंदी और अनिश्चितताओं के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करनेवाली बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि का रुझान है. लेकिन यूनान के मौजूदा संकट के नकारात्मक प्रभाव की व्यापकता की पृष्ठभूमि में विभिन्न देशों की सरकारों और केंद्रीय बैंकों के सामने हाथ पर हाथ धरे रहने का विकल्प नहीं है.

कुल वैश्विक उत्पादन में यूनान का हिस्सा 0.5 फीसदी से भी कम है और इस महीने के आखिर तक उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 1.6 बिलियन यूरो चुकाना है. अगले महीने की 13 तारीख को उसे 350 मिलियन तथा 20 तारीख को 3.5 बिलियन यूरो की किस्त भी चुकानी है. फिलहाल यूरोपीय संघ और यूनान में कर्ज आदायगी, मोहलत और आर्थिक सुधार की शर्तो पर मतभेद है.

लेकिन यूनानी सरकार द्वारा लेनदारों की शर्तो पर जनमत संग्रह कराने के निर्णय तथा यूरोपीय संघ की इस पर नाराजगी से पैदा हुई स्थिति ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. भारत में कुछ जानकार यह भरोसा दिलाने की कोशिश में हैं कि यूनान और भारत के बीच व्यापार बहुत सीमित होने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारभूत मजबूती के चलते इस संकट का बहुत प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर नहीं होगा.

हालांकि, ऐसे दावों की हकीकत तो शेयर बाजार की अफरातफरी से ही साफ हो गयी है, भारत के वित्त सचिव ने भी माना है कि यूनान के आर्थिक संकट से उत्पन्न स्थितियों के कारण भारत से भारी मात्रा में पूंजी का बहिर्गमन हो सकता है. सरकार ऐसी किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए रिजर्व बैंक के साथ रणनीति तैयार कर रही है.

निवेश, चुनिंदा मुद्राओं की प्रमुखता और आयात-निर्यात पर आधारित होने के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के तार लगभग हर छोटे-बड़े देश की आर्थिक स्थिति से जुड़े हैं. भारत पिछले कुछ वर्षो से रोजगार और उत्पादन के मोर्चे पर समस्याओं से घिरा है. कृषि क्षेत्र में संकट जारी है, जो हमारी वित्तीय व्यवस्था का आधार है.

ऐसी स्थिति में किसी सामान्य झटके के भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं. आर्थिक संकट से जूझने और उसे टालने के उपायों को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं. इसलिए किसी एक राय पर आगे की राह तय करने के बजाय सरकारों और केंद्रीय बैंकों को व्यापक और सुविचारित अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने की रघुराम राजन की सलाह पर ध्यान देना चाहिए. यूरोपीय संघ, मुद्रा कोष, अमेरिकी वित्तीय संस्थाएं आदि की मांग है कि उत्तरोत्तर मुक्त बाजार और आसान श्रम कानूनों को लागू कर उदारीकरण की प्रक्रिया तेज तथा सामाजिक योजनाओं में भारी कटौती की जाये. लेकिन विकासशील और अविकसित देशों में कल्याणकारी योजनाओं के न रहने से आबादी का बड़ा हिस्सा तबाह हो सकता है तथा ऐसे देश अराजकता, हिंसा और गरीबी के भंवरजाल में फंस सकते हैं.

दरअसल यूनान, लातिनी अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों में यही हो रहा है. हमारे देश में भी आर्थिक सुधार और सामाजिक योजनाओं में कमी को अक्सर पर्यायवाची मान लिया जाता है, जबकि आवश्यकता दोनों ही कारकों को संतुलित करने की है. भारत में कुछ समय से चीन के विकास से तुलना की प्रवृत्ति उभरी है और अक्सर हमारी विकास दर के चीन से आगे निकल जाने के दावे किये जाते हैं.

वैसे तो यह रवैया गलत नहीं है, लेकिन हमें तथ्य भी ध्यान में रखना होगा कि चीन की विकास दर में आयी कमी का एक मुख्य कारण उसका सामाजिक खर्च को बढ़ाना और ऊर्जा आयात में कमी करना भी है. यूनान के संकट का बड़ा कारण निवेश और कर्ज पर निर्भरता तथा कल्याणकारी योजनाओं में सरकारी खर्च की कमी रही है.

अंतरराष्ट्रीय वित्त के निर्देश पर देश की आर्थिक नीतियों को तय कर सांठगांठ से चलनेवाले भ्रष्ट पूंजीवाद के हाथों राष्ट्रीय हितों और जनता का भविष्य गिरवी रखने की प्रवृत्ति से पहले लातिनी अमेरिका में मंदी आयी, फिर अमेरिका के कामकाजी वर्ग को तबाह होना पड़ा और अब यूरोप के सामने यह संकट है. अगर भारत ने सावधानी नहीं बरती, तो त्रसदी हमारी हकीकत भी बन सकती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel