24.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

पहले पार्टी के बारे में सोचें सोनिया

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया पिछले सप्ताह ऐसी खबरें फिर से सुर्खियां बनीं कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपी जायेगी. राहुल इस वक्त 45 साल के हैं और पिछले कम-से-कम एक दशक से भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं. ऐसे में उनके समर्थकों की यह इच्छा स्वाभाविक ही कही जायेगी कि राहुल […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
पिछले सप्ताह ऐसी खबरें फिर से सुर्खियां बनीं कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपी जायेगी. राहुल इस वक्त 45 साल के हैं और पिछले कम-से-कम एक दशक से भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं. ऐसे में उनके समर्थकों की यह इच्छा स्वाभाविक ही कही जायेगी कि राहुल को अब आधिकारिक रूप से पार्टी की कमान सौंप दी जाये. हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उनकी मां सोनिया गांधी उनके लिए क्यों रास्ता बनाना चाहेंगी.
कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर बदलाव की मांग के दो कारण महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं. पहला, यह जरूरी है कि एक समय के बाद बुजुर्ग पीढ़ी युवाओं के लिए जगह खाली करें. सोनिया गांधी भी देर-सबेर रिटायर होने ही वाली हैं.
ऐसे में वे भी चाहेंगी कि समय रहते नये नेतृत्व को कमान सौंप दी जाये. दूसरा कारण, जो अपेक्षाकृत कम स्पष्ट है, यह है कि सोनिया गांधी की तबीयत जब-तब खराब रहती है. पिछले दिनों में ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि उन्हें इलाज के लिए विदेश जाने की जरूरत है. हालांकि, इसका आधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है. क्या यह भी उनके द्वारा बेटे को कमान सौंपने का एक कारण हो सकता है?
शायद नहीं, क्योंकि पिछली बार विदेश में उनका इलाज काफी पहले हुआ था और हाल के दिनों में वे पूरी तरह स्वस्थ दिखी हैं. तब राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने में इतनी जल्दबाजी क्यों? हो सकता है कि इसे लेकर पार्टी में अंदरूनी दबाव हो.
कांग्रेस पार्टी की साख तेजी से गिर रही है, जिसे लेकर कांग्रेसीजन परेशान हैं और इसलिए वे शीर्ष नेतृत्व में कुछ बदलाव चाहते हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लेकर कोई ठोस और नाटकीय कदम नहीं उठाया गया, तो कांग्रेस जल्दी ही खत्म हो जायेगी. एक जमाने में कांग्रेस के 200 लोकसभा सांसद थे, जो अब करीब 45 रह गये हैं. बीते लोकसभा चुनाव में तकरीबन डेढ़ सौ कांग्रेसीजन बुरी तरह से हार गये थे, जिसके लिए उन्होंने करोड़ों रुपये खर्च किये होंगे. इनमें से कई ऐसे कांग्रेसी हैं, जो दशकों से पार्टी के लिए काम करते आ रहे हैं.
यह उनकी व्यक्तिगत जमा-पूंजी है और इसके बरबाद होने का अर्थ है कि उनकी जिंदगी भर की कमाई और उनका भविष्य बरबाद हो गया है. यही वजह है कि इनमें से बहुत से कांग्रेसीजन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लेकर स्पष्टता चाहते हैं. केंद्र की सत्ता गंवाने के बाद से ही लगातार कई महत्वपूर्ण राज्यों में कांग्रेस पार्टी की हार का मतलब है कि पार्टी खुद को फिर से खड़ा करने के लिए पैसे का इंतजाम करने में जुटी हुई है. पार्टी में तुरंत बदलाव चाहने का यह भी एक कारण हो सकता है.
अब सवाल उठता है कि क्या ऐसे किसी बदलाव से कांग्रेस पार्टी को मजबूती मिल सकती है? पार्टी का नेतृत्व संभालने को लेकर सोनिया गांधी का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है. गौरतलब है कि बरसों पहले सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान ऐसी ही स्थिति में संभाली थी, जैसी स्थिति कांग्रेस की आज है.
जब भी कांग्रेस केंद्र की सत्ता में रही है (गांधी परिवार के किसी सदस्य के प्रधानमंत्री पद पर न रहने के दौर में), तब वह कई घोटालों में शामिल रही है या उस पर घोटालों के आरोप लगते रहे हैं. कांग्रेस के ही पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव तो खुद एक मामले में शामिल पाये गये थे और इसके लिए उन्हें अदालत में पेश भी होना पड़ा था.
यह वही दौर था जब भारतीय जनता पार्टी को सत्ता पर काबिज होने का मौका मिला और इसके करिश्माई और बेहद सम्मानित नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे. उस दौर में भारतीय जनता पार्टी एक सशक्त पार्टी थी और कांग्रेस एक पराजित पार्टी, तब सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली. सोनिया ने पार्टी को उस मुश्किल दौर से उबारा और 2004 में वापसी करते हुए कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में पहुंचा दिया.
अपने अच्छे कानूनों जैसे सूचना का अधिकार और उच्च विकास दर की बदौलत कांग्रेस दोबारा 2009 में भी सरकार बनाने में कामयाब रही. इस ऐतबार से सोनिया गांधी का रिकॉर्ड बेहतरीन रहा है. हालांकि, वह पिछला चुनाव हार गयीं, लेकिन वह जानती हैं और उन्हें इस बात का अनुभव भी है कि घायल हो चुकी कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह से स्वस्थ बनाने के लिए क्या करने की जरूरत है. क्या राहुल गांधी ये सब कर सकते हैं? नहीं.
जब मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे, तब राहुल गांधी के पक्ष में आवाज उठनी शुरू हुई. राहुल के पार्टी का उपाध्यक्ष बनने ने उनके लिए आगे का रास्ता खोल दिया था. वजह चाहे जो भी रही हो, राहुल इस पद पर काम करने योग्य नहीं थे. उनके दौर में कांग्रेस कई राज्यों की चुनाव हार गयी और जब साल 2014 के चुनाव प्रचार में वे पार्टी के मुख्य चेहरे के रूप में उभरे, तो उन्हें बहुत बुरी हार मिली.
लोगों को लगता है कि राहुल गांधी में दूरदृष्टि, ऊर्जा और जोश की बहुत कमी है. वे उम्र में नरेंद्र मोदी से लगभग 20 बरस छोटे हैं, लेकिन यह भी लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी से उनकी तुलना कहीं भी नहीं ठहरती.
वहीं सोनिया गांधी अभी सत्तर की भी नहीं हैं. वे पूरी तरह से फिट हैं और उन्हें कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं है, इसलिए उनके अभी कुछ साल और सक्रिय रहने की उम्मीद है. बेटे राहुल से ज्यादा उनकी विश्वसनीयता है. अपनी खराब हिंदी के बावजूद जब वे किसी मुद्दे पर बोलती हैं, तो उनका बयान राहुल के बयानों से ज्यादा ध्यान खींचता है.
अस्सी के दशक के अंत में जब राहुल के पिता राजीव गांधी संघर्षरत थे, तब अरुण शौरी हमारे कॉलेज बड़ौदा आये थे और भाजपा व वीपी सिंह के गंठबंधन के लिए कहा था कि जब किसी के घर में आग लगी हो, तो उसे बुझाने के लिए गंगाजल की ओर नहीं देखना चाहिए. श्रोताओं में से एक छात्र उठा और शौरी से कहा कि उस आग में किसी को पेट्रोल भी नहीं फेंकना चाहिए. ऐसे में मुझे लगता है कि राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपना झुलस रही कांग्रेस पर पेट्रोल फेंकने जैसा होगा.
यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिजाबेथ ने अपने 67 वर्षीय बेटे प्रिंस चार्ल्स के लिए सत्ता त्यागने से इनकार कर दिया (क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका बेटा अच्छा राजा नहीं बन पायेगा), सोनिया गांधी को भी ऐसा ही करना चाहिए. हो सकता है राहुल को यह अच्छा न लगे, लेकिन सोनिया को सबसे पहले पार्टी के बारे में सोचना चाहिए.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel