बिजली की बर्बादी रोकने और स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम को कम करने के लिए सरकार अगर एसी (एयर कंडीशनर) के तापमान को नियंत्रित करना चाहती है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने संकेत दिये हैं कि सरकार एसी का तापमान तय करने से संबंधित नियम लाने की तैयारी में है, जिसके तहत तापमान 20 डिग्री से कम और 28 डिग्री से ज्यादा नहीं किया जा सकेगा. दरअसल ज्यादा एसी चलने और इसके तापमान को 16 डिग्री पर सेट करने के कारण बिजली की खपत तेजी से बढ़ रही है. इससे बिजली का बिल तो ज्यादा आता ही है, कई बार ज्यादा ठंड से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी बढ़ जाती हैं. एक अध्ययन बताता है कि एसी के तापमान को 18 डिग्री से थोड़ा बढ़ाकर 20 डिग्री कर देने पर बिजली की खपत 12 प्रतिशत तक कम की जा सकती है. ऐसे में, नियम तय किया ही जाना चाहिए. तब तो और भी, जब जापान, इटली, दक्षिण कोरिया और स्पेन जैसे देशों में एसी के तापमान से संबंधित सख्त नियम पहले से बने हुए हैं.
लेकिन नियम बनाने के साथ-साथ कुछ और चीजों पर भी ध्यान देना जरूरी है. जिन देशों में एसी के तापमान से संबंधित नियम बने हुए हैं, वहां भवन निर्माण से जुड़े नियम भी हैं, जिसके तहत मकानों को ठंडा बनाये रखने पर जोर दिया जाता है. चूंकि भारत में तापमान तुलनात्मक रूप से ज्यादा है, ऐसे में, हमारे यहां भवन निर्माण में ठंडक बनाये रखने से संबंधित नियम लागू होने ही चाहिए. फिर एसी का तापमान तय करना जितना आवश्यक है, उतना ही जरूरी लोगों को पर्यावरण के बारे में सजग करना भी है. आज एसी को भले ही 55 डिग्री तक के तापमान में चलने के लिए बनाया जाता हो, लेकिन वह सही कूलिंग तभी कर पाता है, जब बाहर का तापमान 38 डिग्री के आसपास हो. इसका मतलब यह है कि अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो भविष्य में एसी शायद गर्मी से राहत देने में कामयाब न रहें. इसलिए एसी के तापमान से जुड़े नियम बनाने के साथ-साथ नागरिकों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाने का काम भी करना होगा. बिजली और बिजली का बिल बचाने के साथ-साथ पर्यावरण को बचाना भी आवश्यक है. पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाकर ही लोगों को एसी के विवेकपूर्ण इस्तेमाल के बारे में समझाया जा सकता है.