ट्रंप प्रशासन अपने दूसरे कार्यकाल में टैरिफ और ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ की नीतियों पर दोगुना जोर दे रहा है. वह अतीत के गठबंधनों को फिर से परिभाषित करने का काम भी कर रहा है, जिसकी गूंज यूरोप और एशिया में उनके सहयोगियों द्वारा महसूस की जा रही है. इन कदमों का उद्देश्य व्यापार संतुलन में सुधार और सार्वजनिक व्यय को कम कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है. अमेरिका ने पेरिस समझौते व विश्व स्वास्थ्य संगठन से खुद को अलग कर लिया है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से भी वह पहले ही अलग हो चुका है. ये कदम वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था में एक शून्य पैदा कर रहे हैं. यह शून्य लंबे समय तक नहीं रहेगा- इसे प्रतिस्पर्धी शक्तियों द्वारा भरा जायेगा. हम फिर एक बहुध्रुवीय दुनिया का उदय देख रहे हैं. विखंडित वैश्वीकरण, तकनीकी वर्चस्व की लड़ाई, ऊर्जा की भू-राजनीति और ढहता वैश्विक शासन विश्व को नया आकार देने वाले प्रमुख भू-राजनीतिक रुझान हैं, जिनसे भारत को निपटना होगा.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के युग में हमने वैश्वीकरण का जो युग देखा था, वह समाप्त होने वाला है. वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से हमने वैश्वीकरण का विखंडन देखा है. व्यापार युद्धों ने इस विखंडन को और तेज किया है. कोविड-19 महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारी व्यवधान पैदा किया. ट्रंप प्रशासन द्वारा फिर से टैरिफ लगाने के साथ व्यापार युद्धों का दूसरा युग हमारे सामने है. व्यापार युद्ध विश्व व्यापार को बहुत ज्यादा बाधित करेंगे. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अधर में लटके होने के साथ देश द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. यह भारत के लिए अवसर प्रस्तुत करता है. हम सही नीतियों, रणनीतिक द्विपक्षीय व्यापार सौदों और व्यापार सुगमता पर ध्यान केंद्रित कर विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश को आकर्षित कर सकते हैं. प्रथम औद्योगिक क्रांति से लेकर चौथी तक वैश्विक शक्ति गतिशीलता को आकार देने में प्रौद्योगिकी प्रमुख प्रेरक शक्ति रही है. आज सेमीकंडक्टर, एआइ और उभरती हुई प्रौद्योगिकियां प्रमुख प्रेरक शक्ति हैं. राष्ट्र तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए चिप निर्माण में अरबों रुपये डाल रहे हैं. एआइ में देशों और कंपनियों से समान रूप से बड़े पैमाने पर निवेश हो रहा है. साथ ही, साइबर युद्ध और एआइ द्वारा उत्पन्न जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. साइबर युद्ध पूरे ऊर्जा ग्रिड को बाधित कर सकता है या भुगतान और बैंकिंग प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है.
एआइ को दुनियाभर के समुदायों द्वारा आकार दिया जाना चाहिए. हमें कुशलता से नवाचार करना चाहिए, ओपन सोर्स और सरल इंजीनियरिंग को बढ़ावा देना चाहिए और बहुभाषी व मल्टीमॉडल मॉडल बनाना चाहिए. वैश्विक समुदाय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी, नुकसान को सीमित करते हुए समावेशी हो. भारतीय मॉडल, जिसमें प्रौद्योगिकी का उपयोग विभाजन को बढ़ाने के बजाय उसे पाटने के लिए किया जाता है, दुनिया के लिए आदर्श हो सकता है. स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव शक्ति गतिशीलता को फिर से परिभाषित कर रहा है. महत्वपूर्ण खनिजों से समृद्ध राष्ट्र या इन महत्वपूर्ण खनिजों के प्रसंस्करण को नियंत्रित करने वाले देश अधिक प्रभावशाली बन रहे हैं. आज, लगभग 70-80 प्रतिशत दुर्लभ मृदा तत्वों का निष्कर्षण और प्रसंस्करण चीन द्वारा नियंत्रित किया जाता है. दुनिया के 80 प्रतिशत सौर सेल चीन द्वारा उत्पादित किये जाते हैं, लगभग 70 फीसदी इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी भी चीन द्वारा उत्पादित की जाती है. चीन पहले से ही तकनीकी अपनाने के मामले में आगे है. ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हो गया है और वह जीवाश्म ईंधन विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. यह वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन के लिए जोखिम पैदा करता है. विकसित राष्ट्र पहले ही वैश्विक कार्बन बजट का 80 फीसदी हिस्सा खर्च कर चुके हैं और जी-7 देशों से कोयले का चरणबद्ध तरीके से उन्मूलन अब 2030 के बजाय 2035 तक होगा. विकसित राष्ट्र विकासशील देशों को जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी में विफल हो रहे हैं. इससे विकासशील देशों के लिए अपनी विकास महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बहुत कम जगह बचती है. स्वच्छ ऊर्जा की ओर हमारी दौड़ को वैश्विक गठबंधनों के नये रूपों की जरूरत है. देशों को अगली पीढ़ी के सौर पैनल, इलेक्ट्रोलाइजर और वैकल्पिक सेल केमिस्ट्री बैटरी जैसी तकनीक पर सहयोग करना चाहिए. भारत को ग्रीन हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में अपने घरेलू इकोसिस्टम का निर्माण जारी रखना चाहिए. हमें प्रसंस्करण और शोधन के लिए क्षमताओं का विकास करते हुए महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए व्यापार साझेदारी भी सुरक्षित करनी चाहिए. जब वैश्विक सहयोग की सबसे अधिक जरूरत है, तब हमारे पास जो संरचनाएं हैं, वे विफल हो रही हैं. संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर चुका है. ग्लोबल साउथ अपने प्रतिनिधित्व और प्राथमिकताओं के मामले में हाशिये पर है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गतिरोध बना हुआ है, विश्व व्यापार संगठन में विवाद समाधान तंत्र का अभाव है और कॉप29 बहुत जरूरी जलवायु वित्त पोषण प्रदान करने में विफल रहा है. यूक्रेन से लेकर गाजा और सूडान तक संघर्ष बढ़ रहा है. जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है, जलवायु परिवर्तन, महामारी और वित्तीय अस्थिरता की आज की चुनौतियां राष्ट्रीय सीमाओं को नहीं देखती हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि हम पुरानी संस्थाओं के साथ 21वीं सदी की चुनौतियों से नहीं लड़ सकते.
एक नये वैश्विक शासन ढांचे की आवश्यकता है, जो ग्लोबल साउथ को अपने केंद्र में रखे और स्वीकार करे कि दुनिया अब कुछ चुनिंदा शक्तियों का क्षेत्र नहीं है. यह क्षण भारत के लिए एक वैकल्पिक वैश्विक आर्थिक मॉडल को आकार देने और अधिक समावेशी वैश्विक प्रणाली की वकालत करने का एक अवसर है. आने वाला दशक वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के भविष्य को आकार देगा. भारत उभर रहा है और वैश्विक मंच पर एक व्यावहारिक नेता के रूप में अपनी स्थिति बना रहा है. प्रधानमंत्री के हालिया बयान ने, कि हमें मतभेद के बजाय संवाद पर जोर देना चाहिए, वैश्विक स्तर पर एक गूंज पैदा की है. भारत का कूटनीतिक संतुलन इस युग की एक परिभाषित विशेषता बन रहा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)