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कीटनाशकों का प्रकोप

कीटनाशकों का प्रकोप

आंध्र प्रदेश का ईलुरु शहर इन दिनों एक रहस्यमय बीमारी की चपेट में है. बीते कुछ दिनों में पांच सौ से अधिक लोग बीमार हो चुके हैं. इसके लक्षण मिरगी से मिलते जुलते हैं. कारणों का पता लगाने के लिए गठित चिकित्सा विज्ञान के अनेक उत्कृष्ट संस्थानों के विशेषज्ञों की टीम का मानना है कि यह बीमारी या तो किसी वायरस की वजह से फैली है या किसी कीटनाशक दवा से या फिर इसके लिए ये दोनों कारण संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं.

विभिन्न प्रयोगशालाओं की रिपोर्टों में मरीजों में कीटनाशक रसायनों समेत शीशे और निकेल जैसे तत्व भी मिले हैं. इस शहर के पेयजल में भी अधिक मात्रा में कीटनाशक पाये गये हैं. कुछ रोगियों ने यह भी बताया है कि घरों में आपूर्ति होनेवाले जल का रंग और स्वाद कुछ बदल गया था. इस शहर के पास परस्पर जुड़े हुए दो नहर हैं, जिनमें खेती में इस्तेमाल होनेवाले कीटनाशक और सब्जियों व मछलियों को ताजा रखनेवाले रसायन अलग-अलग इलाकों से बहकर आते हैं.

हजारों गांवों तथा ईलुरु शहर के लोगों के लिए पीने का पानी के स्रोत भी ये नहर हैं. हालांकि अभी निश्चित रूप से कारणों के बारे कह पाना मुश्किल है, लेकिन लोगों के खून में घातक रसायन और भारी धातु की मौजूदगी बेहद चिंताजनक है. देशभर में कम दाम पर और आसानी से मिलनेवाले खतरनाक कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है. पाबंदी के बावजूद घातक रसायनों से बने कीटनाशकों की खरीद-बिक्री धड़ल्ले से होती है.

मानव स्वास्थ्य पर इनके दुष्प्रभावों के बारे में दशकों से शोध हो रहा है तथा इनके असर के बारे में ढेरों जानकारियां उपलब्ध हैं. मनुष्य के अलावा ये जानवरों में भी कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं. पक्षियों के लिए भी ये रसायन जानलेवा हैं. ये पानी को दूषित करने के साथ भूमि क्षरण में भी योगदान देते हैं. बीच-बीच में देश के अलग-अलग हिस्सों से इन रसायनों से किसानों के मरने या बीमार होने की खबरें आती रहती हैं.

खेतिहर इलाकों में महिलाओं और बच्चों में गंभीर बीमारियां होने के बारे में भी अध्ययन हैं. भारत में कुछ रसायनों के इस्तेमाल पर रोक तो है, पर उन्हें कड़ाई से लागू नहीं किया जाता है. इसके अलावा कई देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों पर हमारे यहां कोई रोक नहीं है. पैदावार बढ़ाने तथा उसे संरक्षित रखने के लिए खाद और दवाइयों के बेतहाशा इस्तेमाल के बारे में ठोस नियमन करने और खेती के लिए वैकल्पिक व पारंपरिक उपायों पर जोर देने की जरूरत है.

वैसे तो कीटनाशक उद्योग के बारे में दिशानिर्देश हैं तथा किसानों को जागरूक करने के कार्यक्रम भी हैं. लेकिन अधिकतर किसान स्थानीय दुकानदारों की सलाह पर ही छिड़काव करते हैं. ऐसे में अनावश्यक कीटनाशकों के प्रयोग की आशंका बढ़ जाती है. देश के स्वस्थ भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए सरकार व उद्योग को प्राथमिकता से पहल करनीचाहिए.

posted by : sameer oraon

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