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उम्मीद है कि नियुक्ति की सिफारिश वापस लेने से समूची न्यायपालिका को यह संदेश मिलेगा कि कानूनी प्रावधानों के अनुरूप और समुचित संवेदनशीलता के साथ न्याय किया जाना चाहिए.

कुछ दिन पहले बंबई उच्च न्यायालय की न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने दो विवादित फैसले देते हुए बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के दोषियों को बरी कर दिया था. ये फैसले न केवल संबंधित कानूनी प्रावधानों के विपरीत थे, बल्कि असंवेदनशील भी थे. एक फैसले पर तो सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत रोक लगा दी है और उम्मीद है कि दूसरे फैसले पर भी जल्दी कार्रवाई होगी.

गनेडीवाला फिलहाल बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में अतिरिक्त न्यायाधीश हैं. उनके एक फैसले के अगले ही दिन यानी 20 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने सरकार से उन्हें इस पीठ का स्थायी न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी, किंतु विवादित फैसलों के बाद इस सिफारिश को वापस ले लिया गया है. रिपोर्टों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि उक्त न्यायाधीश को अभी और अनुभव व प्रशिक्षण की आवश्यकता है. उम्मीद है कि नियुक्ति की सिफारिश वापस लेने से समूची न्यायपालिका को यह संदेश मिलेगा कि कानूनी प्रावधानों के अनुरूप और समुचित संवेदनशीलता के साथ न्याय किया जाना चाहिए.

इससे पहले शायद ही सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कदम उठाया होगा. नागरिकों को भी इससे संतोष मिलेगा कि न्यायपालिका अपनी खूबियों और खामियों को बखूबी समझती है. यह एक भयावह सच्चाई है कि हमारे देश में हर रोज एक सौ से अधिक बच्चों का यौन शोषण होता है. यह आंकड़ा केवल वैसे मामलों का है, जिनकी शिकायत की जाती है. ऐसे में वास्तव में यह संख्या बहुत अधिक हो सकती है. बच्चों को ऐसी प्रताड़ना से बचाने तथा अपराधियों को दंडित करने के उद्देश्य से 2012 में विशेष कानून लागू किया गया था.

उस कानून में अपराधों के बारे में पूरी स्पष्टता है. बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा उनके लिए बेहतर माहौल बनाने के लिए प्रयासरत संगठन, विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता भी समय-समय पर रिपोर्ट, निर्देश और प्रशिक्षण द्वारा जागरूकता का प्रसार करते रहते हैं.

दुष्कर्म या अन्य कोई अपराध से बच्चे के मन व मस्तिष्क पर गंभीर असर होता है तथा पूरी जिंदगी ये अपराध किसी भयानक सपने की तरह उसका पीछा करते हैं. ये अपराध उसके व्यक्तित्व निर्माण पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. न्याय व्यवस्था का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपराधियों को दंडित करे, ताकि बच्चों की सुरक्षा हो सके. केवल कानून बनाना काफी नहीं होता है, पुलिस और अदालत का उन कानूनों के अनुरूप काम करना भी जरूरी है.

उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश ही कानूनी प्रावधानों और उद्देश्यों के प्रति गंभीर नहीं होगा, तो फिर न्याय की उम्मीद किससे की जायेगी? यही अपेक्षा की जा सकती है कि न्यायाधीश गनेडीवाला आत्ममंथन करेंगी और अन्य न्यायाधीश भी सचेत होंगे. कई बार तो बच्चों को ही नहीं पता होता है कि उनके साथ अपराध हो रहा है. बच्चों को सुरक्षित और सुंदर माहौल देना सभी की जिम्मेदारी है. देश का भविष्य हमारे बच्चे ही हैं. यौन अपराधों के बारे में व्यापक जागरूकता का प्रसार आवश्यक है.

Posted By : Sameer Oraon

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