Income Tax Slab : आगामी वित्तीय वर्ष के लिए मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट के बाद अब हर तरफ चर्चाएं सिर्फ आयकर में दी गयी छूट के इर्द-गिर्द ही हैं. पर क्या सरकार का यह कदम आने वाले समय में आर्थिक विकास में तेजी दिखायेगा या इसे ऐसी आर्थिक नीतियों के तौर पर जाना जायेगा, जिसमें राजनीतिक दृष्टिकोण बड़ा रुख रखता था, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
प्रारंभिक तौर पर इसमें यह देखने को मिलता है कि आयकर की छूट से व्यक्तियों के पास वित्तीय तरलता में बढ़ोतरी होने के साथ ही प्रत्यक्ष रूप से दो लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था में देखने को मिलेंगे. पहला, लोगों की क्रय क्षमता बढ़ेगी और दूसरा, उनकी बचत बढ़ेगी. तीसरा लाभ यह भी हो सकता है कि कुछ व्यक्तियों को इस वित्तीय बचत से अपने आर्थिक ऋण के भुगतान में भी सहायता मिले, जो पिछले कुछ अरसे से अपने पास कम वित्तीय तरलता से जूझ रहे थे.
इस पक्ष को कुछ आंकड़ों से समझते हैं. आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सामान्य विकास की दर को 10 प्रतिशत के आसपास प्रस्तावित किया है और महंगाई को पांच प्रतिशत से कम. इससे स्पष्ट है कि जीडीपी की वास्तविक विकास दर के छह से सात प्रतिशत के बीच ही रहने की संभावना है. इसलिए मोटे तौर पर यह बात समझ आती है कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की दर को बनाये रखने के लिए क्रय क्षमता में तेजी रखना सरकार की पहली प्राथमिकता है. उधर तस्वीर का दूसरा पक्ष बताता है कि भारत में आयकर देने वालों की संख्या मात्र आठ करोड़ के आसपास है जो कुल जनसंख्या का मात्र पांच प्रतिशत है.
पूर्व में आयकर से कर मुक्त सीमा सात लाख रुपये थी जिसे सरकार ने इस बजट में बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया. परंतु इस आयकर सीमा के अंतर्गत आने वाले करदाता तीन करोड़ या उससे कम ही हैं. उन्हें ही इस कर मुक्त सीमा का लाभ मिलेगा. तो क्या 140 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में आर्थिक विकास की जिम्मेदारी, चाहे क्रय क्षमता बढ़ाने के संदर्भ में हो या आर्थिक बचत के हिसाब से हो, इस छोटे से तबके पर देना तर्कसंगत है? भले ही भारत जीडीपी के हिसाब से विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, परंतु प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से विश्व में बहुत पीछे है. कर मुक्त सीमा में वृद्धि के प्रावधान 2025-26, जो अप्रैल से शुरू होगा, तब से लागू होंगे. आगामी वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों तक इस प्रावधान के सकारात्मक असर देखने को नहीं मिलेंगे, क्योंकि दिवाली तीसरी तिमाही में आती है और भारत में क्रय क्षमता का असली शक्ति प्रदर्शन उसी दौरान होता है.
यह भी जानना जरूरी है कि भारत में मध्यवर्गीय व्यक्ति जनसंख्या का लगभग 60 प्रतिशत से अधिक है, जबकि आयकर की इस कर मुक्त सीमा में वृद्धि का लाभ मात्र तीन करोड़ परिवारों को ही होने वाला है. इसलिए इस कर मुक्त सीमा के प्रावधान को पूर्ण रूप से मध्यवर्गीय व्यक्ति के साथ जोड़ना गलत है, क्योंकि यह प्रावधान उच्च मध्यवर्गीय व्यक्ति को ही प्रभावित करते हैं. वर्ष 2017-18 से 2024-25 तक वेतनभोगी व्यक्तियों की वित्तीय आय में छह प्रतिशत से अधिक की कमी देखी गयी है, जबकि स्व-नियोजित रोजगार वेतनभोगी व्यक्तियों की आय में नौ प्रतिशत से अधिक की. जिन आयकर दाताओं को इस आयकर सीमा के प्रावधानों से लाभ होगा, वे कुल वेतनभोगियों का मात्र 25 प्रतिशत हैं. बाकी बचा 75 प्रतिशत वह वेतनभोगी तबका है, जिसके वेतन में पिछले छह-सात वर्षों में बहुत अधिक वृद्धि दर्ज नहीं हुई है.
इसके अतिरिक्त, महंगाई की दर का चार से पांच प्रतिशत के बीच में बने रहना, तथा खाद्य पदार्थ की महंगाई का आठ प्रतिशत के स्तर पर पहुंचना कष्टदायक है, क्योंकि जीएसटी की दरों में परिवर्तन की कोई आशा अभी नहीं दिखती है. सरकार ने बजट प्रस्तुत करते समय आयकर की इस प्रमुख सीमा के प्रावधान में वृद्धि से तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये के आर्थिक नुकसान को भी प्रस्तावित किया है. ज्ञात रहे कि तीन-चार वर्ष पूर्व जब सरकार ने कंपनियों की करों की दर में कमी की थी, तब उसे डेढ़ लाख करोड़ के घाटे को प्रस्तावित किया था, जबकि वित्तीय नुकसान उससे दोगुना हुआ था. इस आयकर की सीमा में वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय और न्यूनतम आयकर की सीमा के बीच का अंतर छह गुना से अधिक हो गया है. क्या यह पक्ष भारत में गरीबों के पैमाने को अत्यंत प्रभावित नहीं करेगा? आर्थिक विषमता को और अधिक गहरा नहीं करेगा?
फिर भी इस कदम के बहुत सकारात्मक पक्ष दिखेंगे. इससे निजी आर्थिक निवेश को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि यह व्यक्ति की आर्थिक क्षमता को बढ़ायेगा. लोगों की इससेे बढ़ने वाली बचत का लाभ भी आने वाले दिनों में भारतीय पूंजी बाजार, बैंकिंग सेक्टर, रियल एस्टेट सेक्टर आदि में देखने को मिलेगा. विभिन्न वैश्विक परिस्थितियों में हो रहे बदलाव के चलते भी भारत के घरेलू बाजार में आर्थिक तरलता में वृद्धि अत्यंत आवश्यक थी, जिसे मोदी सरकार ने समय रहते भांप लिया. उन अप्रत्याशित वैश्विक कदमों से निपटने के लिए इसे सरकार का एक मास्टर स्ट्रोक भी समझा जा सकता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)