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खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ता भारत

भारत की सभी पहलें और उपलब्धियां, विशेषकर खेल आयोजनों में देश के जनजातीय लोगों को शामिल करना, खेलों के प्रति भारत के विकास को दर्शाता है. इसके बावजूद, इन खिलाड़ियों के लिए बचपन से ही जो पोषण की जरूरत है, वह नहीं मिल पा रहा है.

प्रो टीवी कट्टीमनी

भारत नियमित तौर पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में हिस्सा लेता आया है. कबड्डी, खो-खो, मल्लखंब, तीरंदाजी और कुश्ती जैसे स्वदेशी खेल अब अंतरराष्ट्रीय खेल क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं. शिक्षा और प्रशिक्षण के सभी क्षेत्रों में खेल और शारीरिक शिक्षा को मजबूत करने का प्रयास निरंतर चल रहा है. इस क्षेत्र में उठाया गया पहला कदम प्री-प्राइमरी से परास्नातक तक शिक्षा के मुख्य पाठ्यक्रम में खेल व शारीरिक शिक्षा को शामिल करना है. एनइपी 2020 ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान और भाषा शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा पर भी जोर दिया है. यह भारतीय युवाओं को फिट और स्वस्थ बनाने की प्रक्रिया में गेम चेंजर साबित होगा.
एनइपी 2020 की वजह से कोई भी खेल में करियर का सपना देख सकता है. क्रिकेट को एक पेशे के रूप में चुनना हमेशा से हम भारतीयों का शौक रहा है. फुटबॉल भी एक महत्वपूर्ण पेशे के रूप में उभर रहा है. पैरा एशियाई गेम्स 2023 में, भारत ने 29 स्वर्ण, 31 रजत और 51 कांस्य के साथ अभियान समाप्त किया और कुल 111 पदक के साथ चौथा स्थान प्राप्त किया. यह भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. इसी तरह हॉकी हमारा स्वदेशी खेल है. वर्ष 1928 में बर्लिन ओलिंपिक में प्रतिष्ठित आदिवासी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में भारत ने हॉकी में स्वर्ण पदक जीता था. उसी ओलिंपिक ने मेजर ध्यानचंद को हॉकी के ‘जादूगर’ के रूप में प्रतिष्ठित किया. इन दिनों भारतीय हॉकी टीम में ओडिशा और झारखंड के आदिवासी खिलाड़ियों की बड़ी हिस्सेदारी है.

पद्मश्री दिलीप तिर्की ओडिशा के जनजाति हैं. वह 1928 में जयपाल सिंह मुंडा के बाद ओलिंपिक में भारतीय कप्तान बनने वाले दूसरे आदिवासी खिलाड़ी हैं. इसी तरह कोमलिका बारी झारखंड के जमशेदपुर की हैं. उन्होंने मैड्रिड में विश्व तीरंदाजी युवा चैंपियनशिप के महिला कैडेट रिकर्व वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है. मणिपुर की मैरी कॉम क्रमशः 2005, 2006, 2008, 2010, 2012 और 2018 में छह बार मुक्केबाजी में विश्व चैंपियन रह चुकी हैं. वह पद्म विभूषण के लिए नामांकित होने वाली पहली महिला एथलीट हैं. इस श्रेणी में दुती चंद के पास वर्तमान में महिलाओं की 100 मीटर राष्ट्रीय चैंपियन का खिताब है. वह ओलिंपिक ग्रीष्मकालीन खेलों के महिला 100 मीटर फाइनल में जगह बनाने वाली तीसरी भारतीय महिला हैं.
बाइचुंग भूटिया भारतीय फुटबॉल के अग्रदूतों में से एक है. सिक्किम के बाइचुंग को ऐसे खिलाड़ी के रूप में माना जा सकता है जिन्होंने फुटबॉल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने 2011 में फुटबॉल छोड़ने से पहले लगातार 16 वर्षों तक भारतीय फुटबॉल टीम के लिए खेला और कप्तान रहे. वर्ष 2018 में महिला हॉकी विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली 18 सदस्यीय टीम में शामिल 19 वर्षीय लालरेम्सियामी देश में चयनित होने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी रही हैं. बिना अधिक महत्व, समर्थन, मार्गदर्शन और वित्तीय स्थिरता के अभाव में भी हमारे देश के आदिवासी युवा हॉकी, फुटबॉल, लंबी कूद, ऊंची कूद, तैराकी, साइकिलिंग और एथलेटिक्स में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. इसे देखते हुए केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कुछ समय पहले ‘सीआरआइआइआइओ 4 गुड’ लॉन्च किया. यह जीवन कौशल सीखने का मॉड्यूल है, जिसमें आठ क्रिकेट आधारित एनिमेशन फिल्मों की एक शृंखला शामिल है, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, लड़कियों को जीवन कौशल से परिचित कराने और स्कूलों में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है. ‘सीआरआइआइआइओ 4 गुड’ के माध्यम से खेल की शक्ति और क्रिकेट की लोकप्रियता का उपयोग बालिकाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता फैलाने के माध्यम के रूप में किया जा सकता है. इस मॉड्यूल के माध्यम से देश के लोग देशज खेलों की शक्ति से परिचित हो रहे हैं. यह पहल लड़कियों को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ क्रिकेट की लोकप्रियता को उभारने की रणनीति भी है. इसके जरिये महिला क्रिकेटरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण और अनुभव मिलेगा, जो उनका आत्मविश्वास बढ़ायेगा. कोई भी सीआरआइआइआइओ 4 गुड मॉड्यूल का उपयोग कर सकता है. विशेष रूप से उच्च शिक्षण संस्थान युवा पीढ़ी को स्वस्थ बनाने के लिए इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं. इन परियोजनाओं द्वारा हम लड़कियों के मानस को मजबूत करने जा रहे हैं.


मातृभाषा पृष्ठभूमि, पहाड़ी पृष्ठभूमि, दलित व आदिवासी छात्र ‘सीआरआइआइआइओ 4 गुड’ का लाभ उठा सकेंगे. सरकार की यह क्रांतिकारी पहल शिक्षार्थी समुदाय के तनाव और सामाजिक असमानता को कम करने के साथ-साथ समानता का भी प्रसार करेगी. यह कार्यक्रम तीन भाषाओं- अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती में निशुल्क है. हमें इसे अन्य भारतीय भाषाओं में भी बनाने की जरूरत है, विशेषकर हमें आदिवासी और अल्पसंख्यक भाषाओं का भी ध्यान रखना होगा. वर्ष 2024 के बजट में खेलों के विकास से संबंधित कई अन्य योजनाओं की भी घोषणा की गयी है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अंतरिम केंद्रीय बजट में खेल मंत्रालय को 3,442.32 करोड़ रुपये आवंटित किये गये, जो पिछले वर्ष की तुलना में 45.36 करोड़ रुपये अधिक है. वर्तमान सरकार के तत्वाधान में ग्वालियर में दिव्यांग खेल प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गयी है. इसी तरह जून, 2023 में पहली खेलो इंडिया ट्राइबल गेम्स नेशनल चैंपियनशिप ओडिशा के भुवनेश्वर में आयोजित की गयी. भारत की ये सभी पहलें और उपलब्धियां, विशेषकर इन खेल आयोजनों में देश के जनजातीय लोगों को शामिल करना, खेलों के प्रति भारत के विकास को दर्शाता है. इसके बावजूद, इन खिलाड़ियों के लिए बचपन से ही जो पोषण की जरूरत है, वह नहीं मिल पा रहा है. आदिवासी बच्चे खेलकूद में अपनी अंतर शक्ति के कारण आगे आ रहे हैं. देश में केंद्रीय खेलकूद और शारीरिक शिक्षण विश्वविद्यालय खोलने की जरूरत है. झारखंड के युवा खेलकूद में अन्य राज्य से बहुत आगे हैं. एेसे में झारखंड में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए जिससे ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गुजरात के आदिवासी बच्चों को बचपन से प्रशिक्षण और मार्गदर्शन मिले. ताकि 2047 तक प्रधानमंत्री का विकसित भारत का सपना साकार हो सके.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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