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विभिन्न बोर्डों के पाठ्यक्रमों में अंतर की वजह से राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं जैसे सीयूइटी, जेइइ आदि में राज्यों के बोर्डों से पढ़े छात्रों के सामने बाधाएं आती हैं.

भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों से पढ़ाई कर देश से लेकर विदेशों तक कामयाबी का झंडा गाड़ने वाले भारतीयों की बदौलत शिक्षा को लेकर भारत की एक सम्मानजनक छवि बनी है. पर उच्च शिक्षा हासिल कर पाना कितना आसान या मुश्किल है, इसका अहसास कराती है शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट. भारत में स्कूली शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों के लिए अवसरों और सुविधाओं की असमानता एक बड़ी चुनौती रही है.

इसी असमानता को समझने और उसका समाधान खोजने के इरादे से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक अध्ययन करवाया. इसमें देश के विभिन्न बोर्डों में पढ़ाई करने वाले छात्रों के वर्ष 2022 के दसवीं और बारहवीं की परीक्षा के परिणामों का विश्लेषण किया गया. अध्ययन से यह बात सामने आयी कि छात्रों की सफलता का पैमाना इस बात पर निर्भर करता है कि वो किस बोर्ड से पढ़े हैं. जैसे, बारहवीं की परीक्षा में जहां राज्य बोर्डों में पढ़ने वाले औसतन 86.3 प्रतिशत छात्र पास हुए, वहीं केंद्रीय बोर्डों से पढ़े 93.1 प्रतिशत छात्र सफल रहे.

रिपोर्ट से देश के अलग राज्यों के लगभग 60 बोर्डोंं के परिणामों में अंतर का भी अंदाजा मिलता है. जैसे दसवीं की बोर्ड परीक्षा में केरल के 99.85 और पंजाब के 97.8 बच्चे सफल रहे, तो मेघालय में केवल 57 और मध्य प्रदेश में 61 प्रतिशत बच्चे पास हो सके. अध्ययन का कहना है कि इस फर्क की वजह विभिन्न बोर्डों के पाठ्यक्रमों और परीक्षा पद्धति में अंतर हो सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि इस वजह से राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में भी, जैसे सीयूइटी, जेइइ, नीट आदि में राज्यों के बोर्डों से पढ़े छात्रों के सामने बाधाएं आती हैं.

इसमें खास तौर पर फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के पाठ्यक्रम में अंतर पर चिंता जतायी गयी. रिपोर्ट में राज्य के बोर्डों को अपने पाठ्यक्रम को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसइ) के अनुरूप करने का सुझाव दिया गया है. शिक्षा मंत्रालय के इस अध्ययन में एक बात और सामने आयी कि 2021-22 में दसवीं कक्षा के 35 लाख छात्र पढ़ाई जारी नहीं रख सके.

इनमें से 27.5 लाख छात्र दसवीं पास नहीं कर सके और 7.5 लाख छात्र परीक्षा में बैठे ही नहीं. वर्ष 2020 में आयी नयी शिक्षा नीति में विभिन्न बोर्डों के परीक्षा परिणामों में एकरूपता कायम करने का भी प्रस्ताव रखा गया था. शिक्षा मंत्रालय ने विभिन्न बोर्डों के परीक्षा परिणामों का अध्ययन उसे ही ध्यान में रखते हुए करवाया है. मंत्रालय बोर्ड परीक्षाओं का मापदंड तय करने के लिए एक राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी- परख- का भी गठन कर रहा है.

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