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नकली दवाओं पर कड़ाई से रोकथाम जरूरी

नकली और खराब दवाओं को रोकने में डॉक्टरों को अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है. यदि डॉक्टर को जरा-सा भी ऐसा लगता है कि दवा बेअसर है या मरीज को फायदा नहीं हो रहा है, तो उसे तुरंत शिकायत दर्ज करानी चाहिए

डॉ रोहन कृष्णन
राष्ट्रीय अध्यक्ष, एफएआइएमए डॉक्टर्स एसोसिएशन

पिछले दिनों दिल्ली और आसपास के इलाकों में कैंसर की नकली दवा के बड़े रैकेट का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें कुछ अस्पतालों के कर्मी, दवा दुकानदार, मेडिकल टूरिज्म से जुड़े लोगों आदि की गिरफ्तारी हुई है. जांच पूरी होने के बाद ही पूरे रैकेट के बारे में पता चल सकेगा, पर यह साफ हो गया है कि यह रैकेट देश के अनेक हिस्सों में सक्रिय था. यह एक भयानक खबर है, लेकिन यह ऐसी पहली खबर नहीं है. कुछ दिन पहले एक घटना सामने आयी थी, जिसमें सरकारी अस्पताल में एक्सपायर हो चुकी दवाएं मरीजों को दी जा रही थीं. कुछ देशों में भारत से निर्यात होने वाली दवाओं की गुणवत्ता को लेकर जांच चल रही है. लंबे समय से नकली दवाओं का ऐसा कारोबार चल रहा है, जिस पर प्रभावी तरीके से नकेल कसने की जरूरत है.

इस संबंध में सबसे जरूरी बात यह है कि दवाओं की गुणवत्ता की जांच की जो सरकारी प्रक्रिया है, वह लगातार चलने वाली प्रक्रिया नहीं है. एक बार किसी दवा और उसके दाम को मंजूरी मिल जाती है, तो कई दवा कंपनियां उस दवा की गुणवत्ता को कम कर देती हैं. ड्रग कमिटी ऑफ इंडिया हो या अन्य एजेंसियां हों, वे नियमित रूप से जांच और शोध नहीं करती हैं. रिसर्च प्रयोगशालाओं के साथ भी यही समस्या है. बहुत से राज्यों में तो ऐसी प्रयोगशालाएं हैं ही नहीं. ऐसे में होता यह है कि सैंपल को लेकर दूसरे राज्य में भेजा जाता है, जिसमें बहुत देर लगती है. इन कमियों को दूर करने पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. दूसरी समस्या यह है कि गुणवत्ता जांच से जुड़ी जो विभिन्न समितियां हैं, उनमें विशेषज्ञों का अभाव रहता है. अक्सर ऐसा होता है कि कैंसर की दवा की जांच करने वाली समिति का प्रमुख किसी अन्य बीमारी का विशेषज्ञ होता है. ऐसी समितियों की गठन प्रक्रिया में भी पारदर्शिता की कमी है. इस तरह की अव्यवस्था से आपराधिक गठजोड़ के लिए भी आधार बनता है.

यह भी चिंता की बात है कि नकली या बेअसर दवाओं के रैकेट में शामिल लोगों को गंभीर दंड नहीं दिया जाता है. जब किसी गलत दवा का पता चलता है, तो उसे बनाने वाली कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है. कंपनी चलाने वाले कुछ समय बाद दूसरी कंपनी बना कर वही कारोबार करने लगते हैं. अगर ऐसी कंपनियों के प्रबंध निदेशकों या बड़े अधिकारियों को दंडित किया जाए, तो रोकथाम में मदद मिल सकेगी. इसका दूसरा पहलू है ऐसी आपराधिक गतिविधियों में अस्पतालों के बड़े पदाधिकारियों की मिलीभगत. नकली या खराब दवाओं के कारोबारी अस्पतालों के अधीक्षक या निदेशक स्तर के कुछ लोगों को अपने साथ मिला लेते हैं.

इस तरह उनका कारोबार निर्बाध रूप से चलता रहता है. याद किया जाना चाहिए कि कुछ समय पहले ही कुछ बड़े प्रतिष्ठित अस्पतालों पर बहुत अधिक दाम पर दवाओं को बेचने का मामला सामने आया था. यदि जांच का काम लगातार चले और प्रभावी ढंग से चले, तो इस तरह के गठजोड़ को रोका जा सकता है. यह खेल केवल दवाओं में ही नहीं, अस्पतालों में या रोगियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली दूसरी चीजों के साथ भी होता है. मसलन, मंजूरी के लिए जो गाउन या दस्ताना सैंपल के रूप में लाया जाता है, वह अच्छी क्वालिटी का होता है, लेकिन बाद में ऐसी चीजों की जो खेप आती हैं, वे खराब होती हैं. आज मेडिकल क्षेत्र की हर चीज को नेशनल मेडिकल काउंसिल पर छोड़ दिया जाता है, जिसके पास जांच-पड़ताल की कमिटी तक नहीं है.

हर राज्य सरकार को अपनी सक्षम कमिटी बनानी चाहिए. राज्य स्तर पर जो कमेटियां हैं, वे बेअसर हैं. अगर कहीं भी कोई समिति कारगर होती, तो कैंसर की नकली दवा बेचने का यह मामला बहुत पहले संज्ञान में आ जाता. नकली और खराब दवाओं को रोकने में डॉक्टरों को अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है. यदि डॉक्टर को जरा सा भी ऐसा लगता है कि दवा बेअसर है या मरीज को फायदा नहीं हो रहा है, तो उसे तुरंत शिकायत दर्ज करानी चाहिए और दवा को जांच के लिए भेजना चाहिए. डॉक्टरों को मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से दूरी बनाकर चलना चाहिए. स्वास्थ्य सेवा संरचना पूरी तरह से चिकित्सकों पर निर्भर होती है.

इसलिए उनकी ईमानदारी बनी रहनी चाहिए. इस संबंध में मरीजों और उनके परिजनों को भी सचेत रहना चाहिए. डॉक्टर का सबसे महत्वपूर्ण सूचक मरीज होता है. जब हम कोई नयी दवा देते हैं, तो रोगी ही हमें बताता है कि पहले वाली दवा का असर बेहतर था या नयी दवा अच्छा काम कर रही है. नकली दवाओं के कारोबार को रोकने के लिए सरकारों, अस्पतालों, डॉक्टरों और मरीजों को एक साथ आने की आवश्यकता है. जांच प्रक्रिया को अधिक सक्रिय और सक्षम बनाना बहुत जरूरी है. राज्य सरकारें अगर अपना बंदोबस्त बेहतर कर लें, तो खराब दवाओं पर रोक लगाने और नकली दवाओं के प्रसार पर प्रभावी रोक लगायी जा सकती है. अगर डॉक्टर को संदेह है, तो उसे जांच के लिए जोर लगाना चाहिए. मरीजों और उनके परिजनों को भी शिकायत करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए. साथ ही, दोषियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar Digital Desk
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