26.7 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

विश्व का सबसे प्राचीनतम क्षेत्र है ‘राढ़’ यानी अबुआ झारखंड

झारखंड का एक बड़ा भूभाग राढ़ भूमि का एक हिस्सा है और यहां के मूल में भी राढ़ी सभ्यता-संस्कृति का इतिहास रहा है.

दीपक सवाल

राढ़ क्षेत्र विश्व के अति प्राचीनतम क्षेत्रों में एक है. ‘राढ़’ शब्द को लेकर सामान्य जनमानस में कई तरह की भ्रांतियां हैं. जबकि, इसका अर्थ बहुत स्पष्ट है. प्राचीन आष्ट्रिक भाषा में ‘राढ़’ या ‘राढ़ी’ शब्द का अर्थ है- रक्त मृत्तिका का देश. लाल मिट्टी का देश. पश्चिमी राढ़ क्षेत्र में बहने वाली राढ़ नदी भी राढ़ शब्द के औचित्य को दर्शाती है. इस सभ्यता सिद्धांत का प्रतिपादन वर्ष 1981 में हुआ है. महान दार्शनिक व मैक्रो हिस्टोरियन प्रभात रंजन सरकार इसके प्रतिपादक हैं. यह मानव सभ्यता के विकास से संबंधित नवीनतम सिद्धांत है.

बताया गया है कि ‘राढ़’ अथवा ‘राढ़ी’ प्राचीन और मध्य काल में (विशेषकर सेनवंशीय नरेशों के शासन काल में) बंगाल के चार प्रांतों में से एक था. ये प्रांत थे- ‘वरेंद्र’, ‘बागरा’, ‘बंग’ और ‘राढ़’. वरेंद्र उत्तर बंगाल का प्राचीन व मध्य युगीन नाम था. वंग या ‘बंग’ बंगाल का प्राचीन नाम है. राढ़ क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया- पूर्वी राढ़ और पश्चिमी राढ़.

पूर्वी राढ़ के अंतर्गत पश्चिमी मुर्शिदाबाद, बीरभूम जिले का उत्तरी भाग, पूर्वी बर्धमान, हुगली, हावड़ा क्षेत्र, पूर्वी मेदिनीपुर तथा बांकुड़ा जनपद का इंदास थाना क्षेत्र आते हैं. पश्चिमी राढ़ में संथाल परगना, बीरभूम के अन्य क्षेत्र, बर्धमान का पश्चिमी भाग, बांकुड़ा (इंदास थाना क्षेत्र को छोड़कर), पुरुलिया, धनबाद, बोकारो व हजारीबाग के कुछ इलाके, रांची के कुछ इलाके, सिंहभूम तथा मेदिनीपुर के कुछ क्षेत्र सम्मिलित हैं. मोटे तौर पर कहें तो झूमर और भगता (चड़क, गाजान) परब जहां तक मूल रूप से प्रचलित है, वह राढ़ क्षेत्र है.

झारखंड का एक बड़ा भूभाग भी उसी राढ़ भूमि का एक हिस्सा है और यहां के मूल में भी राढ़ी सभ्यता-संस्कृति का इतिहास रहा है. प्रभात रंजन सरकार ने भी ‘सभ्यता का आदि बिंदु राढ़’ समेत अपनी अन्य कृतियों में इस क्षेत्र के राढ़ भूमि होने का वर्णन किया है. उनकी पुस्तकों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि लाखों वर्षों बाद सम्राट समुद्रगुप्त के समय में राढ़ मगध के अधीन हो गया.

सप्तम शताब्दी में गौड़ीय के राजा शशांक ने राढ़ के विस्तीर्ण भू-भाग को जीत कर अपने विशाल साम्राज्य में मिला लिया. अनुमान है कि सम्राट शशांक की मृत्यु के पश्चात् बंगाल में अन्य कोई बड़ा राजा नहीं जन्मा. अंततः पश्चिम राढ़ कुछ क्षमता लोभी स्थानीय भूस्वामियों के हाथों में चला गया.

मुगलों के जमाने में समग्र राढ़ कई स्वशासित जनपदों में विभक्त हो गया. उनमें वीरभूम, गोपभूम, सामंतभूम, शेखरभूम, मल्लभूम, सोनभूम, सिंहभूम, धवलभूम, भज्जभूम, सप्तमी परगना, भूरिश्रेष्ठ या भूरशूट परगना, बराहभूम तथा पंचकोट या पांचेट या मानभूम का नाम शामिल है. वीरभूम राज्य पूर्व में सौंताल परगना जनपद के पाकुड़ और राजमहल महकमा, वर्तमान वीरभूम जनपद के रामपुर हाट महकमा, मुर्शिदाबाद जनपद के कांदी महकमा और भागीरथी नदी के पश्चिमवर्ती अंश को लेकर बना था.

1856 में जब सौंताल परगना जनपद बना, तब वीरभूम से पाकुड़ और राजमहल महकमा को काट कर सौंताल परगना तथा कांदी महकमा को मुर्शिदाबाद को दे दिया गया. पंचकोट या पांचेट या मानभूम में वर्त्तमान पुरुलिया जनपद, दामोदर का दक्षिणांश (चास, चंदनकियारी, बोकारो), पूर्व हजारीबाग जनपद (वर्त्तमान बोकारो जनपद) का जरीडीह, पेटरवार, कसमार तथा रांची का रामगढ़ अंचल शामिल था.

ऐसी मान्यता है कि राजा मानसिंह देव के नाम पर इस राज्य का नामकरण मानभूम हुआ था. इसकी राजधानी मानबाजार थी. इस राज्य के उत्तर में दामोदर, दक्षिण में बराहभूम, पूरब में शुशुनिया पहाड़ तथा पश्चिम में चुटिया-नागपुर था. अंगार के समीप जहां पर पहाड़ शेष होकर रांची का समतल प्रारंभ होता है, वही मानभूम की पश्चिम दिशा थी.

राढ़ क्षेत्र में ही मानव सभ्यता के विकास की बातों को स्वीकारने के लिए कुछ लोग ठोस तथ्य अथवा आधार का सवाल खड़ा कर सकते हैं. उन पाठकों के लिए यहां विशेष तौर पर यह बताना जरूरी है कि श्री सरकार के कथन के करीब चार दशक बाद दिसंबर 2021 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित जर्नल ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस’ ने कई वर्षों की शोध और छह माह की जांच के बाद इस बात को सत्यापित किया है कि इसी राढ़ भूमि का सिंहभूम क्षेत्र समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा है.

उससे पहले जमीन का अस्तित्व समुद्र के अंदर हुआ करता था. लेकिन, धरती के 50 किलोमीटर भीतर हुए एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट के कारण पृथ्वी का यह हिस्सा अर्थात सिंहभूम क्रेटोन (महाद्वीप) समुद्र से बाहर आ गया. अब-तक यही माना जाता रहा है कि सबसे पहले अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया समुद्र से बाहर आए थे.

रिसर्च के नतीजों के अनुसार, सिंहभूम आज से लगभग 320 करोड़ साल पहले बना था. रिसर्च टीम ने यह पाया है कि सिंहभूम क्षेत्र अफ्रीका और आस्ट्रेलिया से भी 20 करोड़ साल पहले बाहर आया था. रिसर्च का यह खुलासा इसी राढ़ क्षेत्र में मानव सभ्यता के जन्म और उसके विकास की बातों को अधिक बल देता है. सिंहभूम से संबंधित शोध आलेख को ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और अमेरिका के आठ शोधकर्ताओं ने लंबे रिसर्च के बाद लिखा है. इनमें से चार विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के हैं.

इसके प्रमुख लेखक ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित मोनाश विश्वविद्यालय के रिसर्च फेलो डॉ प्रियदर्शी चौधुरी हैं, जो वहां के स्कूल ऑफ अर्थ एटमॉस्फ़ेयर एंड इनवायरमेंट से जुड़े हैं. भारतीय मूल के डॉ प्रियदर्शी के अनुसार, ‘सिंहभूम क्षेत्र में ढाई साल तक चले ग्राउंड रिसर्च और बाद में किए गए तकनीकी शोधों के बाद यह दावे के साथ कह सकते हैं कि सिंहभूम ही दुनिया का पहला क्रेटोन था.

सिंहभूम का मतलब सिर्फ झारखंड का सिंहभूम न होकर एक विस्तृत इलाका है. इसमें ओडिशा के धालजोरी, क्योंझर, महागिरि और सिमलीपाल जैसी जगहें भी शामिल हैं’. उन्होंने यह भी कहा है कि ‘यहां मिले खास तरह के अवसादी चट्टानों से उनकी उम्र का पता लगाकर यह जाना जा सका है कि ये 310 से 320 करोड़ साल पुराने हैं. यहां मिले बलुआ पत्थर से शोध में मदद मिली.

डॉ प्रियदर्शी के अनुसार, सिंहभूम में मिले चट्टानों पर समुद्री लहरों के निशान देखे जा सकते हैं. ये सालों तक समुद्र से टकराने के कारण बने होंगे, जो जाते-जाते इन पर अपना निशान छोड़ गए. सिंहभूम के चाईबासा और सारंडा के जंगलों में ऐसी चट्टानें मिलती रही हैं, लेकिन इन पर ऐसा शोध पहली बार हुआ है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel