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डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रांसजेंडर की मान्यता की खत्म, सेना में LGBTQ समुदाय के लोगों की भर्ती बंद, जानें आगे क्या होगा

US Army Transgender : एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के लोगों को अधिकार देने की मांग के दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वे अपने देश में सिर्फ दो ही जेंडर को मान्यता देंगे स्त्री और पुरुष को. इस आदेश के बाद अमेरिका में ट्रांसजेंडर्स की सेना में बहाली पर रोक लगा दी गई है. इन हालात में ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों पर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई है.

US Army Transgender : अमेरिकी सेना ने ट्रांसजेंडर के सेना में शामिल होने पर अधिकारिक रोक लगा दी है. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक एग्जीक्यूटिव आदेश पारित कर ट्रांसजेंडर विचारधारा पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए हैं. उन्होंने 20 जनवरी को शपथ लेने के बाद ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वे देश में सिर्फ दो ही लिंग को मान्यता देंगे स्त्री और पुरुष. उसी विचार को सामने रखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने सेना में ट्रांसजेंडर्स की भर्ती को रूकवा दिया है.

अमेरिकी सेना में कब मिली थी ट्रांसजेंडर्स को जगह

25 जनवरी 2021 से अमेरिकी सेना में ट्रांसजेंडर्स की भर्ती की शुरुआ हुई थी. हालांकि 2015 में सबसे पहले यह विचार सामने आया था कि सरकार ट्रांसजेडर्स की सेना में बहाली की जाएगी. उससे पहले सेना में ट्रांसजेडर्स की बहाली पर पूरी तरह से रोक दी थी. बाद के वर्षों में कई संगठनों ने इसके लिए अभियान चलाया और सरकार से इस संबंध में विचार करने का आग्रह किया था. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल

 में रक्षा सचिव ऐश कार्टर ने 2015 में यह घोषणा की थी कि वे अमेरिकी सेना में ट्रांसजेंडर की बहाली प्रक्रिया को शुरू करेंगे. डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस प्रक्रिया की शुरुआत की. हालांकि 2013 से ही कई ट्रांसजेंडर अमेरिकी सेना में अपनी सेवा दे रहे थे. लेकिन उनकी गिनती एक ट्रांसजेंडर के तौर पर नहीं की जाती थी.

अमेरिकी सेना में कितने ट्रांसजेंडर्स ने दी सेवा

अमेरिकी सेना में अबतक 15 हजार से अधिक ट्रांसजेंडर्स ने अपनी सेवा दी है. https://williamsinstitute.law.ucla.edu के अनुसार ये 15 हजार लोग वो हैं, जो अभी सेवा दे रहे हैं और या फिर जो रिटायर भी हो चुके हैं. इस वेबसाइट के अनुसार अमेरिकी सेना में जो ट्रांसजेंडर हैं उनमें से 32.5 प्रतिशत ऐसे हैं, जो जन्म के वक्त पुरुष थे, जबकि वैसे 5.4 प्रतिशत वैसे लोग थे जिन्हें जन्म के वक्त महिला बताया गया था. अमेरिकी सेना में सेवा देने वाले ट्रांसजेंडर 18 से 65 साल तक के थे. इन ट्रांसजेंडर्स की शैक्षणिक योग्यता हाई स्कूल से ग्रेजुएट लेवल तक की थी.

सेना में बहाली पर बैन के बाद क्या होगा इन ट्रांसजेंडर्स का?

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ट्रांसजेंडर समुदाय

सेना में बहाली पर तो अमेरिकी सरकार ने बैन लगा दिया है,ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जो लोग पहले से ही सेना में हैं, उनका क्या होगा? इसके बारे में अभी विस्तार से बहुत जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन अमेरिकी सेना की ओर से एक्स पर पोस्ट करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अब किसी ट्रांसजेंडर की सेना में भर्ती नहीं होगी और ना किसी को लिंग बदलने के लिए सर्जरी की इजाजत दी जाएगी. कुछ जानकारी जो सामने आई है, उसके अनुसार जो लोग अभी सेना में कार्यरत हैं, वे अपने पसंद का लिंग चुनकर सेवा जारी रख सकते हैं. यह भी स्पष्ट है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सिर्फ दो लिंग को ही मान्यता देने से ट्रांसजेंडर्स की सामाजिक स्थिति पर असर पड़ेगा और उन्हें अपने अधिकारों के लिए एकबार फिर संघर्ष करना पड़ेगा.

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भारत और अन्य देशों में ट्रांसजेंडर्स को लेकर क्या है नीति

भारत में ट्रांसजेंडर्स की सेना में बहाली नहीं होती है. कुछ देशों ने खुले तौर पर अपनी सेना में ट्रांसजेडर्स की बहाली की अनुमति दी है. नीदरलैंड पहला देश था जिनसे अपने यहां ट्रांसजेंडर्स को सेना में अवसर दिया. इसके अलावा भी लगभग 29 देश हैं जिन्होंने खुले तौर पर अपने देश में ट्रांसजेंडर्स की सेना में बहाली की है. उनमें प्रमुख हैं–

  • नीदरलैंड
  • अर्जेंटीना
  • ऑस्ट्रेलिया
  •  ऑस्ट्रिया 
  • बेल्जियम
  •  बोलीविया
  •  ब्राज़ील
  •  कनाडा
  •  चिली
  •  चेकिया
  •  डेनमार्क 
  • एस्टोनिया
  •  फिनलैंड
  •  फ्रांस
  •  जर्मनी
  •  ग्रीस
  •  आयरलैंड
  • इजराइल
  •  जापान
  •  मैक्सिको
  •  न्यूजीलैंड
  •  नॉर्वे
  •  स्पेन
  •  स्वीडन
  •  स्विटजरलैंड
  •  यूक्रेन 

LGBTQ समुदाय में कौन लोग हैं शामिल

एलजीबीटीक्यू समुदाय में समलैंगिक लोग आते हैं, जिनमें लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वियर आते हैं. इस समुदाय के लोगों का मानना है कि वे स्त्री और पुरुष नहीं हैं इनकी अपनी पहचान है. इन लोगों में से ज्यादातर लोग जिस लिंग के साथ पैदा होते हैं, उससे वे खुद को अलग मानते हैं और उसी के अनुसार आचरण भी करते हैं.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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