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रक्षाबंधन आज : कलयुग में कृष्ण जैसे भाई की दरकार

स्वाति सिंह [email protected] वन के मौसम की सबसे अच्छी बात यह है कि यह अपने संग रक्षाबंधन का त्योहार लेकर आता है. किसी भी लड़की के लिए बड़ी ही मुश्किलों से गुजरता है यह एक साल का लंबा इंतजार. पिछले कुछ समय से मेरे मन में कुछ सवाल लगातार उमड़-घुमड़ रहे हैं…. क्या मैं अपने […]

स्वाति सिंह

[email protected]

वन के मौसम की सबसे अच्छी बात यह है कि यह अपने संग रक्षाबंधन का त्योहार लेकर आता है. किसी भी लड़की के लिए बड़ी ही मुश्किलों से गुजरता है यह एक साल का लंबा इंतजार.

पिछले कुछ समय से मेरे मन में कुछ सवाल लगातार उमड़-घुमड़ रहे हैं…. क्या मैं अपने भाई की कलाई पर यह रक्षा सूत्र इसलिए बांध रही हूं, ताकि वह मेरी रक्षा करें? क्या उसकी कलाई पर इस राखी को बांधे बिना मैं उससे अपनी रक्षा की उम्मीद नहीं कर सकती?

क्या भाईयों को बहनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और उत्तरदायित्व को समझने के लिए किसी विशेष दिन की जरूरत है ? क्या यह ‘रक्षा का बंधन’ भाई-बहन के बीच मात्र एक स्वार्थ का बंधन बन कर रह गया है? वगैरह-वगैरह…

मेरे मन में उठ रहे इन सभी सवालों का जवाब शायद ‘हां’ ह, वरना आज राखी का त्योहार खत्म होते, अगले दिन से ही बहनों को भाईयों से अपनी इज्जत की रक्षा की गुहार लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. ऐसा महसूस होता है कि रक्षा की यह डोरी अब कमजोर पड़ने लगी है.

भाइयों के लिए इनका मोल अब पहले जैसा नहीं रहा, शायद इसीलिए अब वे बहनों को महंगे-महंगे उपहार देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं. क्या अपनी जिम्मेदारियों को बोझ समझ कर उन्हें पैसों के तराजू में तोलना सही है? क्या सचमुच आज समाज इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है या कहें कि बढ़ चुका है कि इस स्नेह का यह बंधन मात्र एक ‘औपचारिक बंधन’ बन कर रह गया है?

कहने को तो हम आधुनिक युग में जी रहे हैं, लेकिन इस आधुनिकीकरण ने लोगों में एक-दूसरे को पछाड़ कर सबसे आगे निकलने की होड़ मचा दी है. सबको पछाड़ कर सबसे आगे निकल जाने की इस होड़, जिसमें रिश्ते-नाते, भावनाएं…. सब कहीं कोसों दूर पीछे छूटते जा रहे हैं.

आज यह देख-सुन कर बेहद दुख होता है कि अपनी बहनों के लिए जान की बाजी लगा देनेवाले भाई आज दूसरों की बहनों की इज्जत से खिलवाड़ करने से नहीं चूकते. पता नहीं आखिर कमी कहां रह गयी? हम बहनों के प्यार में, उस रक्षा की डोरी की ताकत में या फिर भाईयों के जज्बे में? कैसे वे इतने निर्दयी और स्वार्थी बन गये हैं? हम बहनों ने तो अपनी तरफ से कभी कोई कमी नहीं की.

सचमुच कलयुग आ गया है. आज इस कलयुग में हर बहन को कृष्ण जैसे एक भाई की तलाश है, जो वक्त पड़ने पर अपनी बहन सुभद्रा की तरह उसके मन की बात समझ जाये. जब कोई दुस्साशन उसकी लाज को कलंकित करे, तो वह आकर उसकी लाज बचाये. कितने भोले, निस्वार्थ, सच्चे और अच्छे थे श्रीकृष्ण!

द्रौपदी ने तो मात्र उनकी उंगली पर लगे जख्म पर अपने आंचल का एक टुकड़ा फाड़ कर लपेट दिया था, लेकिन यह श्रीकृष्ण की महानता ही थी, जो उन्होंने द्रौपदी द्वारा किये गये इस साधारण से कार्य को भी अपने ऊपर कर्ज समझा और सही वक्त पर द्रौपदी की इज्जत की रक्षा करके एक भाई होने का फर्ज निभाया, जो वहां मौजूद उसके पांच पति भी नहीं कर पाये.

भाई-बहन का रिश्ता रक्त संबंधों का मोहताज नहीं है. यह तो स्नेह और विश्वास का बंधन है, जो कई बार परायों से भी मिल जाता है. ऐसे रिश्ते दिल से जुड़े होते हैं.

कई बार तो ये रिश्ते खून के रिश्ते से भी ऊपर हो जाते हैं और हम जिंदगी भर उन्हें भूल नहीं पाते. ऐसे कई भाइयों के उदाहरण हमें अपने इतिहास के पन्नों को खंगालने पर मिल जायेंगे, जिन्होंने अपनी मुंहबोली बहनों के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. कंस ने अपनी सगी बहन देवकी के कोख से पैदा हुई संतान द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी के बारे में जान कर उसे और उसके पति को कारावास में डाल दिया.

उसके सात पुत्रों की हत्या कर दी. वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी मानस बहन (सगी नहीं, बल्कि मानी हुई) के लाज की रक्षा के लिए हमेशा खड़े रहे.

आज रक्षाबंधन के मौके पर इसी उम्मीद के साथ मैं भी अपने भाई की कलाई पर राखी बांधना चाहती हूं कि वह कलयुग का कृष्ण बन कर मेरी लाज की रक्षा करें, न कि अपनी चाहतों में अंधा होकर कंस बन जाये. सभी बहन-भाइयों को राखी मुबारक!

Prabhat Khabar Digital Desk
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