Annaprashan ka Khana: हिंदू धर्म में अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashan Sanskar) शिशु के जीवन का एक अहम पड़ाव होता है. यह संस्कार तब किया जाता है जब बच्चा पहली बार मां के दूध के अलावा ठोस भोजन (अन्न) ग्रहण करता है, आमतौर पर यह 6 से 8 महीने की आयु में होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन बनने वाला विशेष भोजन केवल शिशु के लिए नहीं, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी शुभता और सौभाग्य लेकर आता है?
माता-पिता के लिए क्यों है खास?
अन्नप्राशन के दिन माता-पिता को विशेष पुण्यफल मिलता है. उनके शिशु का नया अध्याय शुरू होता है, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि का संकेत माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन अन्न ग्रहण करने से माता-पिता को मानसिक शांति और ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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दादा-दादी और नाना-नानी के लिए शुभ संकेत
परिवार के बुजुर्ग जैसे दादा-दादी, नाना-नानी यदि इस संस्कार में भोजन करते हैं, तो उन्हें आध्यात्मिक तृप्ति और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. यह भोजन उनके लिए प्रसाद के समान होता है.
अन्य रिश्तेदार और मेहमानों के लिए भी लाभकारी
इस विशेष अवसर पर घर आए मेहमानों व रिश्तेदारों को भी यह भोजन पवित्र प्रसाद के रूप में परोसा जाता है. मान्यता है कि इसे ग्रहण करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य और शांति का प्रवेश होता है.
धार्मिक दृष्टिकोण से अन्नप्राशन का भोजन क्यों होता है महत्वपूर्ण
इस दिन देवी अन्नपूर्णा और गृहदेवताओं की विशेष पूजा की जाती है. भोजन को मंत्रों के साथ पवित्र किया जाता है, जिससे यह केवल शारीरिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक पोषण भी प्रदान करता है.
अन्नप्राशन का भोजन न सिर्फ शिशु के लिए, बल्कि माता-पिता, बुजुर्गों और मेहमानों के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है. यह संस्कार पूरे परिवार में शुभता, सुख और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. अगर आपके घर में अन्नप्राशन होने वाला है, तो इसे केवल रस्म न समझें—यह एक पवित्र पर्व है जिसमें सभी को भागीदारी करनी चाहिए.