Sutak Kaal: हिंदू धर्म में परंपराओं और रीति-रिवाजों का गहरा महत्व है. इन्हीं परंपराओं में से एक है “सूतक” की मान्यता, जो बच्चे के जन्म या मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए मानी जाती है. जब किसी घर में नवजात शिशु का जन्म होता है, तो कुछ दिनों तक पूजा-पाठ, मंदिर जाना, हवन या किसी धार्मिक क्रिया में भाग लेने से परहेज किया जाता है ऐसा क्यों किया जाता है? इसके पीछे क्या धार्मिक और सांस्कृतिक तर्क हैं? आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
क्या होता है सूतक?
सूतक को अपवित्रता की एक अवस्था माना गया है, जो किसी विशेष घटना — जैसे जन्म या मृत्यु — के बाद लगती है. शास्त्रों के अनुसार, नवजात शिशु के जन्म के समय एक विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसे स्थिर और संतुलित बनाए रखने के लिए कुछ नियमों का पालन जरूरी होता है. सूतक इन्हीं नियमों का एक हिस्सा है.
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पूजा-पाठ से परहेज क्यों?
बच्चे के जन्म के समय माँ और शिशु दोनों बेहद संवेदनशील स्थिति में होते हैं.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय शरीर से निकलने वाले रक्त और अन्य जैविक प्रक्रियाएं वातावरण की पवित्रता को प्रभावित कर सकती हैं. ऐसे में धार्मिक अनुष्ठानों से कुछ समय के लिए दूरी बनाना पूजा की पवित्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक माना गया है.
धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक नजरिए से सूतक एक शुद्धिकरण की प्रक्रिया है, जो घर और परिवार को आध्यात्मिक रूप से तैयार करती है. वहीं, वैज्ञानिक रूप से देखें तो यह समय मां और नवजात को विश्राम देने और संक्रमण से बचाने के लिए बहुत आवश्यक होता है. प्राचीन समय में जब सफाई और चिकित्सा की सुविधाएं सीमित थीं, तब यह नियम और भी ज्यादा जरूरी थे.
सूतक केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और स्वास्थ्य-संवेदनशील व्यवस्था भी है. यह मां और शिशु की सुरक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक शांति सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई एक संतुलित परंपरा है, जिसे आज भी श्रद्धा और समझदारी के साथ निभाया जाता है.