पुण्यतिथि 19 जून विशेष
डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
Devraha Baba Death Anniversary: भारतवर्ष, जो कि आध्यात्म, तपस्या और साधना की भूमि रहा है, उसमें एक-से-एक महान संत, महात्मा और साधक हुए हैं जिन्होंने अपने तप और जीवन मूल्यों से समाज को दिशा दी. ऐसे ही विलक्षण और पूजनीय संतों में एक हैं देवराहा बाबा, जिन्हें संतों का संत यानी ‘महासंत’ कहा जाता है.
दिव्य उपस्थिति और चमत्कारी प्रभाव
देवराहा बाबा को देश-विदेश में एक अप्रतिम गुरु के रूप में जाना जाता है, जिनके दर्शन, स्पर्श और आशीर्वाद से अनगिनत लोगों ने अपने जीवन में चमत्कारी सकारात्मक परिवर्तन अनुभव किए. यद्यपि 19 जून 1990 को योगिनी एकादशी के दिन बाबा ने वृंदावन में यमुना तट पर समाधि ली, फिर भी भक्तों का विश्वास है कि वे आज भी सूक्ष्म रूप में अपने भक्तों के साथ हैं.
उनके प्रमुख शिष्यों में देवदास जी और रामसेवक दास जी को उन्होंने दिव्य ज्ञान से अभिसिंचित किया. देवराहा बाबा भारतीय संस्कृति का सजीव स्वरूप थे—करुणा, ममता और कल्याण के प्रतीक. उनकी वाणी मंत्रवत प्रभाव छोड़ती थी और हर व्यक्ति के हृदय को छू जाती थी.
अष्टांग योग में निपुण और विलक्षण संत
अष्टांग योग में पारंगत देवराहा बाबा एक सिद्ध पुरुष थे, जिनके लिए मन की बात जानना सहज था. उनका आश्रम आज भी देवरिया जिले की बरहज तहसील के मइल गांव में सरयू नदी के किनारे स्थित है. यह भी मान्यता है कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा, जो उनकी समाधि के 33 वर्षों बाद साकार हुआ. उन्हें आचार्य रामानुज के बाद ग्यारहवां ऐसा महामानव संन्यासी माना जाता है जिन्होंने आध्यात्मिक चेतना से जनकल्याण किया.
तपस्वी जीवन और दिव्य व्यवहार
देवराहा बाबा का जीवन सादगी और कठोर तप का उदाहरण था. उन्होंने कभी किसी वाहन का उपयोग नहीं किया और न ही किसी भवन में निवास किया. वे पेड़ों के बीच या चार खंभों वाले मचान पर निवास करते थे. कहा जाता है कि उन्होंने कभी अन्न का सेवन नहीं किया और दूध, शहद तथा श्रीफल का रस ही उनका प्रिय आहार था. उनका कहना था कि गौ सेवा मनुष्य का प्रमुख धर्म है और गौ माता के प्रति उन्होंने विशेष भक्ति प्रकट की.
वैश्विक ख्याति और राष्ट्रपुरुषों से संबंध
उनकी ख्याति ऐसी थी कि ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम भी उनके दर्शन हेतु आये थे. डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय, जयप्रकाश नारायण, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे राष्ट्रपुरुषों ने भी उनसे आशीर्वाद लिया. देवराहा बाबा का संदेश था कि ईश्वर के दर्शन प्रेम से होते हैं, और वे चमत्कारों के दिखावे से दूर रहते थे. वे मानते थे कि प्रकृति ही सबसे बड़ा औषधालय है, और वे धूप, मिट्टी, जल और वायु के माध्यम से लोगों का उपचार करते थे.
जन्म और साधना का आरंभ
उनकी जन्मतिथि और आयु आज भी रहस्य हैं. कुछ मानते हैं कि वे 200 वर्ष तक जीवित रहे, तो कुछ 800-900 वर्ष भी बताते हैं. उनका मूल नाम जनार्दन दत्त दुबे था और देवरिया क्षेत्र में साधना करने के कारण उन्हें देवराहा बाबा कहा गया. बाल्यकाल में ही दिव्य अनुभूति होने के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और साधना-पथ पर चल पड़े. बाद में ब्रजभूमि, मथुरा में उन्होंने यमुना तट पर कठोर योग-साधना की.
यह भी मान्यता है कि बाबा खेचरी मुद्रा जैसे कठिन योग सिद्ध कर चुके थे, जिससे वे भूख, मृत्यु और शरीर की सीमाओं को नियंत्रित कर पाने में सक्षम थे