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Garud Puran: मासूम जीवों की हत्या का फल जानकर कांप उठेंगे आप

Garud Puran : निर्दोष प्राणियों को कष्ट देना केवल पाप ही नहीं, आत्मा के पतन का मार्ग है. इसलिए धर्म यही सिखाता है – "अहिंसा परम धर्मः"जितना हो सके, जीवों की रक्षा करें, सेवा करें, और प्रभु की कृपा के पात्र बनें.

Garud Puran : सनातन धर्म के महान ग्रंथों में से एक गरुड़ पुराण न केवल मृत्यु के बाद की यात्रा का वर्णन करता है, बल्कि यह भी बताता है कि जीवात्मा को उसके कर्मों के अनुसार किस प्रकार के फल भोगने पड़ते हैं. इस ग्रंथ में स्पष्ट उल्लेख है कि जो मनुष्य बेजुबान जीवों (जैसे गाय, कुत्ता, पक्षी, मछली आदि) को अनावश्यक रूप से कष्ट या मृत्यु देते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद यमलोक में अत्यंत भयानक और पीड़ादायक दंड भुगतना पड़ता है:-

– तामिस्र नरक

जो मनुष्य लोभ या स्वाद के लिए निर्दोष जानवरों की हत्या करता है, उसे मरने के बाद तामिस्र नरक में भेजा जाता है. यहां आत्मा को अंधकारमय गुफा में बंद कर, लोहे की छड़ों से लगातार पीटा जाता है. उसे कोई शांति नहीं मिलती, केवल तड़प ही उसका भाग्य होता है.

– काकोलूकीय नरक

इस नरक में वे लोग जाते हैं जिन्होंने पक्षियों या छोटे जीवों को बिना कारण मारा हो. यहां पर नरक यातना में उन पर कौवे और उल्लू जैसे भयावह पक्षी लगातार हमला करते हैं और शरीर को नोचते रहते हैं. यह दंड इस बात का प्रतीक है कि जिसने जैसा कष्ट दिया, वही उसे चुकाना पड़ेगा.

– कृमिभोज्य नरक

जो लोग जलचरों जैसे मछलियों, मेंढकों आदि की हत्या करते हैं, उन्हें इस नरक में फेंका जाता है. वहां उनका शरीर हजारों कीड़ों द्वारा खाया जाता है. यह दंड इतने भयंकर रूप में होता है कि आत्मा बार-बार तड़पती है परंतु मृत्यु नहीं आती.

– सूलप्रोत नरक

जो मनुष्य गौहत्या या किसी बेजुबान पालतू जीव की हत्या करता है, उसे गरुड़ पुराण के अनुसार सूलप्रोत नरक में भेजा जाता है. वहां उसे लोहे के तीखे शूलों में बार-बार घोंपा जाता है, जिससे आत्मा असहनीय पीड़ा झेलती है.

– महापाचक नरक

यह नरक उन लोगों के लिए आरक्षित है जो जानबूझकर क्रूरता के साथ जीवों को मारते हैं. इस नरक में अग्नि की ज्वालाओं में डाला जाता है, जहाँ आत्मा जलती रहती है पर भस्म नहीं होती. यह दंड चेतावनी है कि प्रकृति और भगवान के बनाए जीवों को पीड़ित करने की कीमत अत्यंत भारी है.

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गरुड़ पुराण हमें यह सिखाता है कि हर जीव में परमात्मा का अंश है. निर्दोष प्राणियों को कष्ट देना केवल पाप ही नहीं, आत्मा के पतन का मार्ग है. इसलिए धर्म यही सिखाता है – “अहिंसा परम धर्मः”जितना हो सके, जीवों की रक्षा करें, सेवा करें, और प्रभु की कृपा के पात्र बनें.

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