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Holi 2025: भारत में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ होली का पर्व नहीं मनाया जाता. आज हम आपको इन स्थानों के बारे में जानकारी देने वाले हैं.

Holi 2025: रंगों का पर्व होली पूरे देश में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व हर व्यक्ति के मन में उमंग और उत्साह का संचार करता है. कहा जाता है कि होली के दिन शत्रु भी मित्र बन जाते हैं. बच्चे से लेकर वृद्ध तक सभी इस पर्व के रंगों में रंगे हुए नजर आते हैं. जहां एक ओर भारत के हर कोने में लोग होली का बेसब्री से इंतजार करते हैं, वहीं कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां इस त्योहार का कोई विशेष उत्साह नहीं होता, क्योंकि वहां होली का आयोजन नहीं किया जाता. आइए, इन स्थानों के बारे में जानकारी प्राप्त करें.

गुजरात के रामसन में होली पर प्रतिबंध

गुजरात के रामसन नामक स्थान पर पिछले 200 वर्षों से होली का पर्व नहीं मनाया जाता है. यहां के निवासियों का विश्वास है कि भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में इस क्षेत्र का दौरा किया था, जिसके कारण इसे रामसन कहा जाता है, जिसे रामेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. होली न मनाने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं. कहा जाता है कि 200 वर्ष पूर्व होलिका दहन के समय इस गांव में एक भयंकर आग लग गई थी, जिससे कई घर जलकर राख हो गए थे, जिसके बाद से यहां के लोगों ने होली मनाना बंद कर दिया. इसके अतिरिक्त, यह भी माना जाता है कि साधु संत इस गांव के निवासियों से किसी कारणवश नाराज हो गए थे और उन्होंने श्राप दिया था कि यदि इस गांव में होलिका दहन किया गया, तो पूरे गांव में आग लग जाएगी.

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झारखंड के दुर्गापुर गांव में नहीं मनाया जाता होली का पर्व

झारखंड के बोकारो जिले के कसमार प्रखंड स्थित दुर्गापुर गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि होली के दिन राजा और रानी का निधन हो गया था. इस दुख के कारण ग्रामीण होली का उत्सव नहीं मनाते हैं और होली के रंगों को अशुभ मानते हैं. दुर्गा पहाड़ी के आसपास बसे आदिवासी, अल्पसंख्यक और महतो समुदाय के दुर्गापुर गांव में लगभग एक दर्जन टोले के करीब 10 हजार लोग निवास करते हैं. 300 वर्षों के बाद भी, इन लोगों में अपने राजा के प्रति गहरी श्रद्धा है, या दूसरे शब्दों में, अंधविश्वास के चलते ये लोग अब भी होली का आयोजन नहीं करते हैं.

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के इस गांव में होली नहीं मनाते

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में दो गांव हैं, जहां होली का पर्व नहीं मनाया जाता. ये गांव खुरजान और क्विली के नाम से जाने जाते हैं. इन गांवों में पिछले 150 वर्षों से होली का आयोजन नहीं किया गया है. यहां के निवासियों का मानना है कि उनकी कुल देवी को शोर-शराबा पसंद नहीं है. इसलिए, वे यह मानते हैं कि यदि वे होली मनाएंगे, तो देवी उनसे नाराज हो जाएंगी, जिससे गांव में संकट आ सकता है.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

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