Premanand Ji Maharaj Tips : धर्म, योग और भक्ति मार्ग में मौन का अत्यंत महत्व है. श्री प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मौन केवल शब्दों का त्याग नहीं, बल्कि आत्मा से संवाद का एक माध्यम है. जब हम बोलना छोड़ते हैं, तभी ईश्वर को भीतर से सुन सकते हैं. आज के समय में जहां हर कोई बोलने की होड़ में है, वहां मौन साधना आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि “मौन में वह शक्ति है जो बड़े-बड़े प्रवचनों में भी नहीं होती” आइए जानें मौन रहने के प्रमुख लाभ:-
– आत्मचिंतन का द्वार खोलता है मौन
मौन रहने से व्यक्ति स्वयं के भीतर झांकने लगता है. यह आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण का सर्वोत्तम साधन है. जब मन चंचल नहीं रहता, तब आत्मा की आवाज़ स्पष्ट सुनाई देती है. प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं – “जो भीतर की यात्रा करना चाहता है, उसे बाहर की आवाज़ों को शांत करना होगा”
– वाणी पर नियंत्रण और पाप से मुक्ति
हिंदू धर्म में वाणी से उत्पन्न पापों को गंभीर माना गया है। निंदा, झूठ, अपशब्द — ये सब कर्म बंधन का कारण बनते हैं. मौन रहने से वाणी पर नियंत्रण आता है और अनावश्यक पापों से बचाव होता है. यह एक प्रकार का ‘वाणी तप’ है, जो साधक को पवित्रता की ओर ले जाता है.
– मानसिक शांति और एकाग्रता की प्राप्ति
प्रेमानंद जी बताते हैं कि मौन मन की चंचलता को समाप्त करता है. जब हम मौन होते हैं, तब विचारों की गति धीमी होती है और मन एकाग्र होता है. यह ध्यान और भजन में गहराई लाने में अत्यंत सहायक है.
– ब्रह्मचर्य और ऊर्जा की रक्षा
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि मौन रहने से ऊर्जा का संरक्षण होता है. वाणी से निकली शक्ति यदि भीतर ही बनी रहे तो वह ब्रह्मचर्य, ओज और तेज में परिवर्तित हो जाती है. यह योग और साधना के मार्ग पर चलने वालों के लिए अमूल्य साधन है.
– ईश्वर से सहज संवाद
जब व्यक्ति मौन होता है, तब वह अपने भीतर बसे परमात्मा की अनुभूति करता है. प्रेमानंद जी कहते हैं, “प्रभु बाहर नहीं, भीतर है. मौन होकर बैठो, वह स्वयं बोलेगा” मौन ध्यान में ईश्वर से आत्मिक संबंध गहराता है.
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मौन कोई कमजोरी नहीं, बल्कि वह साधना है जो साधक को आत्मा, परमात्मा और सत्य से जोड़ती है. प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, मौन ही वह मार्ग है जो शांति, संयम और समर्पण का साक्षात्कार कराता है. यदि आप भी जीवन में शांति चाहते हैं, तो प्रतिदिन कुछ समय मौन साधना अवश्य करें.