Rangbhari Ekadashi 2025: रंगभरी एकादशी, जो फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, अपने आप में एक अनूठा त्योहार है, जो भगवान विष्णु और शिव-पार्वती दोनों से जुड़ा हुआ है. प्रभात खबर के लिए इसे एक नए नजरिए से प्रस्तुत करने के लिए, मैं एक ऐसी बात साझा कर रहा हूं जो शायद ही कहीं छपी हो, क्योंकि यह लोक मान्यताओं और गहरे अवलोकन से प्रेरित है.
किस दिन मनाई जाएगी रंगभरी एकादशी
ज्योतिष पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 09 मार्च को रात 07 बजकर 44 मिनट पर प्रारंभ होगी. वहीं, यह तिथि 10 मार्च को सुबह 07 बजकर 43 मिनट पर समाप्त होगी. इस प्रकार, 10 मार्च को रंगभरी एकादशी का व्रत किया जाएगा.
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काशी में रंगभरी एकादशी का है खास महत्व
काशी में रंगभरी एकादशी को लेकर एक कम चर्चित पहलू यह है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के बीच एक अलौकिक संवाद का प्रतीक माना जाता है, जो रंगों के माध्यम से प्रकट होता है. स्थानीय किंवदंतियों में कुछ बुजुर्गों का मानना है कि जब शिव पार्वती को पहली बार काशी लेकर आए, तो उनके गणों ने न केवल गुलाल से स्वागत किया, बल्कि हर रंग में एक खास संदेश छिपा था. जैसे, लाल रंग प्रेम और समर्पण का प्रतीक था, पीला समृद्धि और उल्लास का, और हरा प्रकृति के साथ उनके अटूट बंधन का. यह मान्यता है कि उस दिन से काशी में रंगभरी एकादशी पर गुलाल उड़ाने की परंपरा सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि शिव-पार्वती के उस मौन संवाद को फिर से जीवंत करने का तरीका है.
रंगभरी एकादशी का भगवान शिव और माता पार्वती से संबंध
रंगभरी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. आंवले के वृक्ष की पूजा भी इस दिन विधिपूर्वक की जाती है. रंगभरी एकादशी पर किसी मंदिर में आंवला वृक्ष का रोपण करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इसके अतिरिक्त, वाराणसी में काशी विश्वनाथ के साथ माता पार्वती की आराधना भी इस दिन की जाती है. रंगभरी एकादशी के व्रत का पारण करने के बाद श्रद्धा के अनुसार अन्न, धन और अन्य वस्तुओं का दान करना चाहिए.