Sawan 2025: हिंदू धर्म में सावन का महीना अत्यंत पवित्र और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ माना जाता है. यह समय भगवान शिव की उपासना का होता है, जब भक्त विशेष पूजा, व्रत और उपवास के माध्यम से शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. खासतौर पर महिलाओं के लिए यह महीना भक्ति, सौभाग्य और श्रद्धा से भरा हुआ होता है. इस दौरान हरी चूड़ियां पहनना एक ऐसी परंपरा है जो न केवल आकर्षक लगती हैं, बल्कि गहरे धार्मिक और मानसिक महत्व से भी जुड़ी हुई हैं.
हरा रंग: प्रकृति और समृद्धि का संदेश
हरा रंग जीवन, हरियाली और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है. सावन के मौसम में जब पूरी प्रकृति हरियाली में डूबी होती है, तब महिलाएं भी हरे वस्त्र, गहने और चूड़ियां पहनकर उसी ऊर्जा को आत्मसात करती हैं. यह न केवल सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि मन में नवीनता, सकारात्मकता और सौभाग्य की भावना भी लाता है.
सुहाग और वैवाहिक सुख की रक्षा
भारतीय संस्कृति में चूड़ियां सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं. विशेष रूप से सावन के सोमवार को जब महिलाएं भगवान शिव का व्रत रखती हैं, उस दिन हरी चूड़ियों का पहनना शुभ और मंगलकारी माना गया है. मान्यता है कि इससे पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.
पौराणिक आस्था
पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था. तप के दौरान उन्होंने हरे वस्त्र और हरी चूड़ियां धारण की थीं. इसी श्रद्धा और परंपरा को आज की महिलाएं भी अपनाती हैं, ताकि उन्हें भी पार्वती जैसी अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त हो.
मानसिक संतुलन और ऊर्जा
हरी चूड़ियों की खनक न केवल मन को प्रसन्न करती है, बल्कि यह शरीर की नाड़ियों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है. आयुर्वेद और एक्यूप्रेशर के अनुसार, इससे मानसिक तनाव कम होता है और व्यक्ति को शांति मिलती है. हरे रंग की चूड़ियां मन की ताजगी और स्थिरता का भी प्रतीक मानी जाती हैं.
सावन में हरी चूड़ियों का पहनना केवल एक पारंपरिक सौंदर्य की बात नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक आस्था, मानसिक शांति और वैवाहिक सौभाग्य का गहरा प्रतीक है. यह परंपरा महिलाओं के श्रद्धा, प्रेम और आत्मिक संतुलन को दर्शाती है, जिसे हर वर्ष सावन में पूरे भाव से निभाया जाता है.