Terhavin ka khana : मृत्यु के बाद की धार्मिक प्रक्रियाओं में तेरहवीं का अत्यंत महत्व होता है. यह दिन मृत आत्मा की शांति और उसकी अगली यात्रा की सिद्धि हेतु समर्पित होता है. इस दिन सात्विक भोजन तैयार कर ब्राह्मणों को आमंत्रित कर भोज कराया जाता है. इसके पीछे गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक कारण हैं:-

– पिंडदान और ब्राह्मण का धार्मिक महत्व
गरुड़ पुराण, वायु पुराण एवं मनुस्मृति में वर्णित है कि ब्राह्मण को भोजन कराना स्वयं भगवान को अर्पण करने के समान होता है. ब्राह्मण वेदों के ज्ञाता होते हैं और वे यज्ञ, मंत्र-जाप तथा श्रद्धा से जुड़ी क्रियाओं के योग्य माने जाते हैं. जब ब्राह्मणों को पिंडदान या भोजन कराया जाता है, तो वह भोजन पितरों को तर्पण के रूप में स्वीकार्य होता है.
– ईश्वर का प्रतिनिधि
सनातन धर्म में ब्राह्मण को “देवता-स्वरूप” माना गया है. “ब्राह्मणो मुखं अस्य” – वे ईश्वर के मुख हैं. तेरही भोज में ब्राह्मण को बुलाकर उसे श्रद्धापूर्वक भोजन कराने से वह भोजन मृतात्मा के लिए पुण्य फलदायी होता है.
– श्रद्धा और दान की पूर्णता
तेरही का भोज सिर्फ एक सामाजिक आयोजन नहीं, बल्कि धार्मिक दान का स्वरूप होता है. ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र, दक्षिणा, और यथाशक्ति दान देकर श्राद्धकर्ता अपना कर्तव्य पूर्ण करता है, जिससे पितरों को संतोष प्राप्त होता है और उन्हें स्वर्गगमन का मार्ग मिलता है.
– मंत्रोच्चार और शुद्धता की उपस्थिति
ब्राह्मणों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रों के साथ भोज संपन्न होता है, जिससे वातावरण पवित्र होता है. यह शुद्ध वातावरण मृतात्मा की यात्रा को शांतिपूर्ण और सरल बनाता है. साथ ही, यह जीवित लोगों के लिए भी पुण्य और आत्मिक शांति का कारण बनता है.
– पितृ ऋण से मुक्ति का मार्ग
हिंदू धर्म में तीन ऋण बताए गए हैं: देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. तेरही भोज ब्राह्मणों को कराकर व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है. यह भोज आत्मा की तृप्ति और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है.
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तेरही का भोज केवल रीति नहीं, यह धर्म और श्रद्धा का अद्भुत संगम है. ब्राह्मणों को आदरपूर्वक बुलाकर उन्हें भोजन कराने से मृत आत्मा को शांति और परिवार को आशीर्वाद प्राप्त होता है.