28.7 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Bihar election 2020 : बैलगाड़ी से निकला चुनाव प्रचार अब वर्चुअल तक आ पहुंचा, जानें कैसा रहा सफर

पहले पैदल फिर बैलगाड़ी, बड़ी रैलियां और अब वर्चुअल संवाद. चुनाव को लेकर पिछले सात दशकों में राज्य की जनता के सामने राजनेता इन उपायों से पहुंचते रहे हैं. 1960 के दशक में उम्मीदवार साइकिल से ही पूरे क्षेत्र को नाप देते थे. इससे गांवों के मतदाता तक उनका संवाद होता था, पर धीरे -धीरे सुविधा बढ़ती गयी, तो नेताओं से मतदाता भी दूर होने लगे.

पटना : पहले पैदल फिर बैलगाड़ी, बड़ी रैलियां और अब वर्चुअल संवाद. चुनाव को लेकर पिछले सात दशकों में राज्य की जनता के सामने राजनेता इन उपायों से पहुंचते रहे हैं. 1960 के दशक में उम्मीदवार साइकिल से ही पूरे क्षेत्र को नाप देते थे. इससे गांवों के मतदाता तक उनका संवाद होता था, पर धीरे -धीरे सुविधा बढ़ती गयी, तो नेताओं से मतदाता भी दूर होने लगे. इस बार के चुनाव में मतदाताओं को नेताओं से शायद ही आमने-सामने होने का मौका मिल पाये. इसलिए जदयू, भाजपा,कांग्रेस,राजद और वाम दलों समेत तमाम पार्टियां कोरोना के चलते वर्चुअल संवाद का सहारा ले रही हैं. वह आजादी के बाद का जमाना था, चुनाव की घोषणा हुई तो नेताओं की टोली पैदल ही प्रचार के लिए निकल पड़ी. पांव-पैदल थके तो बैलगाड़ी निकाली गयी. युवा पैदल चलते थे और बुजुर्ग नेता बैलगाड़ी पर चढ़ लेते थे. बहुत हुआ तो उम्मीदवार ने साइकिल की सवारी कर ली. साइकिल खरीदना भी उन दिनों आसान नहीं था. इसके लिए भी चंदे का सहारा लेना पड़ता था. बैलगाड़ी थोड़ा और सुलभ हुआ, तो उसे टायरगाड़ी में बदल दिया गया. बैलगाड़ी की लकड़ी का पहिया हवा भरी टायरों में बदल गया. यह कच्ची -पक्की सड़कों पर सरपट चलती थी.

साठ के दशक में चुनाव प्रचार में शामिल होने लगी जीप

गांवों में हुजुम लगता था, बड़े नेता आये हैं, उनको सुनने चौपाल व मैदानों में भीड़ उमड़ती. धीरे -धीरे जमाना बदलता गया,अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती गयी. साठ के दशक में चुनाव प्रचार मेंजीप शामिल होने लगी. दो -चार बड़े नेताओं ने जीप खरीदी, तो कुछको देश के दूसरे प्रांतों के बड़े नेताओं ने चुनाव प्रचार में जीपभिजवाया. हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से बड़े पैमाने पर चुनावप्रचार के लिए जीप भिजवाने का किस्सा आम रहा. 1990 के दशक में जो चुनाव हुए उसमें बड़ी रैलियों का महत्व रहा. 1980 के दशक में बड़ी रैलियों की शुरुआत हो चुकी थी. जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद इंदिरा गांधी ने देश भर में कई रैलियां कीं. बिहार में भीबड़ी रैलियां हुई. बड़े नेताओं को सुनने के लिए लोग ट्रेनों पर लद करशहरों तक पहुंचते रहे.

बड़ी रैलियों का गांधी मैदान रहा है गवाह

1990 के दशक में लालू प्रसाद जब सत्ता पर काबिज हुए तो चुनाव केपहले बड़ी रैलियों का पटना का एेतिहासिक गांधी मैदान गवाहबनता रहा. पिछले 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले भी जदयू,राजद और कांग्रेस की साझा चुनावी रैली हुई. इस रैली में बिहार में एक नये समीकरण की गांठ पड़ी, जिसने दिल्ली की हुकुमतको भी परास्त कर दिया.

फिल्मी सेट की तरह बनने लगा चुनावी मंच

इसके पहले जब भाजपा में एक नये शाषक वर्ग का उदय हुआ तो देश अमेरिका जैसे महादेशों में चुनाव प्रचार की नयी विकसित रैली से रू-ब-रू हुई. बड़े बड़े स्क्रीन, मेगा साउंड, बड़े मैदानों में फिल्मी सेट के आकार के चुनावी मंच सजाकर जनता के सामने भाजपा आयी. यह प्रयोग सफल रहा और 2014 में देश की सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ आयी. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. कोरोना काल में चुनाव आयोग ने सौ से अधिक लोगों का मजमा लगाने से मना कर रखा है. राजनीतिक रूप से जागरूक बिहार में यह कितना संभव हो पायेगा, यह आने वाला समाय बतायेगा. पर, पार्टियों ने इसकी मुक्कमल इंतजाम कर रखा है.

posted by ashish jha

Prabhat Khabar News Desk
Prabhat Khabar News Desk
यह प्रभात खबर का न्यूज डेस्क है। इसमें बिहार-झारखंड-ओडिशा-दिल्‍ली समेत प्रभात खबर के विशाल ग्राउंड नेटवर्क के रिपोर्ट्स के जरिए भेजी खबरों का प्रकाशन होता है।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel