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सतयुग में गया के तीर्थ स्थल पर ब्रह्माजी ने किया था पिंडदान, महाभारत के ‘वन पर्व’ में भी की गयी है चर्चा

जब भगवान श्रीराम आये तब उनको विश्वास नहीं हुआ, तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया. फल्गु नदी, गाय व केतकी फूल ने झूठ बोल दिया

गयाजी तीर्थ राजधानी पटना से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. स्थानीय पंडों का कहना है कि सबसे पहले सतयुग में ब्रह्माजी ने यहां पिंडदान किया था. महाभारत के ‘वन पर्व’ में भीष्म पितामह व पांडवों की गया यात्रा की चर्चा है. श्रीराम ने महाराजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था. यहां के पंडों के पास मौर्य व गुप्त राजाओं से लेकर कुमारिल भट्ट, चाणक्य, रामकृष्ण परमहंस व चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों का भी गया में पिंडदान करने का प्रमाण उपलब्ध है.

झूठ बोलने पर माता सीता ने फल्गु को दिया था शाप :

भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीताजी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने यहां पहुंचे थे. श्रीराम श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लाने चले गये. तब तक राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी. सीताजी ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष व केतकी के फूल को साक्षी मानकर दशरथ जी को पिंडदान दिया. जब भगवान श्रीराम आये तब उनको विश्वास नहीं हुआ, तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया. फल्गु नदी, गाय व केतकी फूल ने झूठ बोल दिया, जबकि अक्षयवट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली. क्रोधित होकर सीताजी ने फल्गु नदी को अतः सलिला का शाप दे दिया.

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पौराणिक मान्यता : गयासुर ने मांगा था वर

ब्रह्माजी ने सृष्टि रचते समय गयासुर को उत्पन्न किया. गयासुर का हृदय भगवान विष्णु के प्रेम में ओतप्रोत रहता था. उसने भगवान विष्णु से वरदान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था. विष्णु के प्रसन्न होने पर उसने वरदान मांगा कि श्रीहरि स्वयं उसके शरीर में वास करें और उसे कोई भी देखे, तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं, उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो. भगवान विष्णु ने गयासुर की यह इच्छा पूरी की थी और इसके बाद उसके शरीर के ऊपर यह महातीर्थ स्थापित हुआ. पौराणिक कथा के अनुसार, विष्णु के कहने पर ब्रह्मा ने यज्ञ के लिए गयासुर से उसकी देह की याचना की. उन्होंने कहा-पृथ्वी के सब तीर्थों का भ्रमण कर देख लिया, विष्णु के वर के फलस्वरूप तुम्हारी देह सबसे पवित्र है. मेरे यज्ञ को पूर्ण करने के लिए अपनी देह मुझे दो. गयासुर ने अपनी देह को दान कर दिया. उसके मस्तक के ऊपर एक शिलाखंड स्थापित कर यज्ञ संपन्न हुआ. असुर की देह हिलती देख विष्णु ने अपनी गदा के आघात से देह को स्थिर कर दिया और उसके मस्तक पर अपने ‘पादपद्म’ स्थापित किये. साथ ही उसे वर दिया कि जब तक यह पृथ्वी, चंद्र व सूर्य रहेंगे, तब तक इस शिला पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश रहेंगे. पांच कोस गयाक्षेत्र, एक कोस गदासिर गदाधर की पूजा द्वारा सबके पापों का नाश होगा. यहां जिनका पिंडदान किया जायेगा, वे सीधे ब्रह्मलोक जायेंगे.

Prabhat Khabar News Desk
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