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Holi 2023 : काहे भौजी जाअ-लु नइहरवा, छोड़ के होली के बहार… ‘फगुआ’ बिना अधुरी है बिहार की होली

बिहार के ग्रामीण इलाकों में फगुआ के बिना होली अधूरी है. भारतीय हिंदी कैलेंडर में फाल्गुन के महीने में होली का त्योहार आता है. रंगों के त्योहार होली पर फाल्गुन महीने में जो गीत गाए जाते हैं उसे ही फगुआ कहते हैं.

फागुन की मदमस्त हवाओं में मतवाले, अपने रंग में झूमते-गाते, ताली बजाते, रंग-गुलाल से दमकते लोगों के उल्लास को ही बसंतोत्सव कहा जाता है, इसकी सोंधी महक शहर से ले कर गांवों तक में महसूस होती है. रंग-गुलाल के साथ ही लजीज पकवानों के त्योहार होली में लोगों का उत्साह देखने को मिलता है. होली में गाने-बजाने की भी परंपरा रही है. हालांकि, आज के वक्त शहरी परिवेश में पारंपरिक होली गायन (फगुआ) की जगह डीजे ने ले ली है. लेकिन, गांवों में लोग आज भी एक जगह एकत्रित होकर ढोल मंजीरे की ताल पर होली गीत गाते हैं. फगुआ गाने का यह दौर बिहार के कई गांवों में वसंत पंचमी के बाद से ही देखने को मिलने लगता है.

फगुआ बिना अधुरी है बिहार की होली

काहे भौजी जाअ लु नइहरवा, छोड़ के होली के बहार…, बंगला में उड़ेला अबीर हरे लाला, बंगला में उड़ेला अबीर…, रघुबर से खेलब हम होली सजनी… रघुबर से… जैसे होली गीत जब ढोल और मंजीरे की धुन पर बजते हैं तो लोग झूमने लगते हैं. इस तरह के होली गीतों का गायन अकसर गांवों में ही सुना जाता है. शाम के वक्त ग्रामीण अपने काम खत्म कर ढोल – मंजीरे लेकर निकलते हैं. इसके बाद गांव वाले एक जगह बैठ कर चौपाल लगाते हैं और फिर शुरू हो जाता है फगुआ गाने का दौर. यह कार्यक्रम इस तरह हर शाम वसंत पंचमी से होली तक चलता है.

क्या होता है फगुआ 

बिहार के ग्रामीण इलाकों में फगुआ के बिना होली अधूरी है. भारतीय हिंदी कैलेंडर में फाल्गुन के महीने में होली का त्योहार आता है. रंगों के त्योहार होली पर फाल्गुन महीने में जो गीत गाए जाते हैं उसे ही फगुआ कहते हैं. बिहार में होली के दिन सुबह रंग खेलते हैं और शाम के वक्त अबीर-गुलाल लगाते हैं. कई क्षेत्रों में यह होली अगले दिन भी चलती है जिसे बसीऔरा कहते हैं. रंगों के दौरान या शाम के वक्त भी लोक गीत गाने का दौर चलता रहता है. इसी लोकगीत को फगुआ कहा जाता है. फगुआ की परंपरा बिहार के अलावा झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी है.

Also Read: बुढ़वा होली से कुर्ता फाड़ होली तक, जानिए बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में लोग कैसे खेलते हैं रंग

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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