25.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

बिहार: कदमकुंआ कांग्रेस मैदान का इतिहास गौरवशाली, तो जानें कौन से जेल में क्रांतिकारियो ने गुजारी कई रात

Independence Day: बिहार का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है. यहां से कई लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ी और पूरे देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान कोई साधारण मैदान नहीं है. इसका अतीत गौरवशाली है.

Independence Day: बिहार का इतिहास बढ़िया रहा है. यहां से कई क्रांतिकारी योद्धा हुए. कई महान लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. राजधानी पटना के कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान कोई साधारण मैदान नहीं है. इसका अतीत गौरवशाली रहा है. स्वतंत्रता संग्राम के जमाने में यह आजादी के स्वतंत्रता सेनानियों का एक मुख्य केंद्र रहा है. यह जगह डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह की कर्मभूमि रही है.

आंदोलनकारियों का मुख्य केंद्र था कांग्रेस मैदान

कांग्रेस मैदान जगत नारायण लाल और उनकी पत्नी राम प्यारी देवी की युद्ध भूमि रही है. यह वही स्थान है जहां 1921 में असहयोग आंदोलन के प्रारंभ होने पर कदमकुआं के निवासी अधिवक्ता सिहेंश्वर प्रसाद की पटना नगर स्वराज्य तिलक फंड कमेटी के नेतृत्व में काम हुआ था. जगत नारायण लाल इस क्षेत्र के ऐसे देश भक्त हुए, जिनके नेतृत्व में सन 1921 के असहयोग आंदोलन के समय रचनात्मक समितियां गठित हुई थीं. 1930 से 1947 तक नेशनल हॉल में पटना जिला कांग्रेस कमिटी कार्यालय रहा है. कांग्रेस मैदान पार्क एक एकड़ से अधिक भूमि में फैला है. सन 1974 के जेपी आंदोलन में कांग्रेस मैदान में लगी अनुग्रह नारायण सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर छात्रों ने मौन जुलूस की अगुवाई की थी.

दीघा जेल से बांकीपुर जेल लाये गये थे 556 कैदी

पटना के कमिश्नर सैमुअल्स को सूचना मिली कि विद्रोही बिहार से गुजर रहे हैं. यह सूचना मिलते ही दो घंटे के अंदर दीघा जेल को खाली करा दिया गया. वह घटना 25 जून 1858 की है. दीघा से कैदी मीठापुर (बांकीपुर) जेल लाये गये. उनके लिए शेड बनाया गया. कैदियों के मीठापुर आने के बाद वहां कैदियों की संख्या आठ सौ से ज्यादा हो गयी. मीठापुर जेल में पहले से ही 204 कैदी थे. दीघा जेल से 556 कैदी लाये गये. अंडर ट्रायल कैदी 31 थे. मामला बंगाल के गवर्नर जनरल तक गया और यह फैसला हुआ कि तीन साल से ज्यादा सजा पाये वैसे कैदी जिन्हें दो साल सजा काटनी बाकी है, उन्हें अलीपुर जेल भेजा जाए और वैसे कैदियों को जिनकी सजा छह माह से कम हो उन्हें शेड में रखा जाए.

Also Read: बिहार: स्वतंत्रता दिवस पर कड़ी सुरक्षा, पटना में तैनात रहेंगे ग्यारह सौ सुरक्षाकर्मी, जानें और क्या होगा खास
राजेंद्र प्रसाद को भेजा गया था बांकीपुर सेंट्रल जेल

पटना जंक्शन स्थित स्मृति पार्क बनने से पहले यहां ऐतिहासिक बांकीपुर सेंट्रल जेल था, जिसका ऐतिहासिक महत्व है. आनेवाली पीढ़ियों को अपने महापुरुषों और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद दिलाने के लिए इस जेल के एक वॉच टावर और दीवार के एक हिस्से को सुरक्षित रखा गया है. बांकीपुर जेल को पहले मीठापुर जेल कहा जाता था. कुछ इतिहासकार का कहना है कि 1780 के आसपास लार्ड कार्नवालिस के समय यह जेल बना. हालांकि, बांकीपुर जेल का सबसे पहले उल्लेख 1895 में आता है. जब यह गया केंद्रीय कारागार के तहत अनुमंडल कारागार के रूप में था. 1907 में इसका उल्लेख जिला कारागार के रूप में है, जो 1967 में केंद्रीय कारागार बना. इस ऐतिहासिक जेल में कई स्वतंत्रता सेनानी बंदी के रूप में रखे गये थे, जिनमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरूल हक, अनुग्रह नारायण सिंह, बाबू श्री कृष्ण सिंह, ब्रज किशोर प्रसाद, जगजीवन राम, जय प्रकाश नारायण मौलवी खुर्शीद हसनैन, सैयद महमूद, मौलना मंजूद जैसे लोगों ने देश की आजादी की खातिर न जाने कितनी रातें इस जेल में गुजारीं. कांग्रेस ने आठ अगस्त 1942 को बांबे में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया, परिणामस्वरूप कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई. राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया और पटना के सदाकत आश्रम से बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया. लगभग तीन साल जेल में रहने के बाद आखिरकार उन्हें 15 जून 1945 को रिहा कर दिया गया.

Also Read: PHOTOS: पटना के गांधी मैदान में 15 अगस्त की तैयारी जोरों पर, परेड रिहर्सल व झांकी की देखिए खास तस्वीरें…
पटना के गांधी मैदान के पास चिल्ड्रेन पार्क में दी गयी थी पीर अली को फांसी

आजादी के मतवाले स्वतंत्रता संग्राम के वीर सपूत शहीद पीर अली की शहादत को हर साल याद किया जाता है. जिस स्थान पर पीर अली को फांसी दी गयी थी, उस स्थान पर शहीद पीर अली पार्क (पूर्व नाम चिल्ड्रेन पार्क, गांधी मैदान ) बनवाया गया. हालांकि पीर अली सहित अन्य लोगों को फांसी दिये जाने के स्थान के बारे कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है. ‘1857 : बिहार में महायुद्ध’ पुस्तक के लेखक श्रीकांत और प्रसन्न कुमार सिंह के अनुसार जंगे आजादी में मुसलमानों का हिस्सा नामक किताब के अनुसार पीर अली को बांकीपुर लॉन के दक्षिण- पश्चिम कोने पर फांसी दी गयी थी. वहीं बिहार राज्य अभिलेखागार के निदेशक सुमन कुमार बताते है कि इतिहास में उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्तमान गांधी मैदान के कोने पर अनुग्रह नारायण संस्थान के पास वाली जगह पर पीर अली और सहयोगियों के मुकदमे की सुनवाई हुई थी. गांधी मैदान जिसे अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बांकीपुर लॉन कहा जाता था, के उत्तरी और पश्चिमी कोने पर स्वतंत्रता के मतवालों को पेड़ से लटका कर मौत की सजा दी गयी. सात जुलाई 1857 को 13 क्रांतिकारियों के साथ पीर अली को यहीं फांसी दी गयी. सजा सुनाये जाने के दौरान वे खून से लथपथ थे और जंजीरों में जकड़े थे. उनके कपड़े फटे थे.

Sakshi Shiva
Sakshi Shiva
Worked as Anchor/Producer from March 2022 to January 2023 at DTV Bharat TV channel. Have worked with Sixth Sense weekly newspaper from August 2021 to January 2022. Have done 21 days internship at Clinqon India as a Social media intern. Post Graduated in Journalism and Mass Communication from Central University of South Bihar, Gaya. Graduated in English from Purnea Mahila College, Purnea.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel