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Kaimur News : सरकार का आदेश बेअसर, खेतों में पुआल जलाने से झुलस रहे हरे पेड़

खेतों में आग लगाये जाने से बढ़ा रहा तापमान, घरों में भी राहत नहीं

मोहनिया सदर. तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण को कम करने लिए सरकार ने किसानों को हार्वेस्टर से गेहूं की कटाई के बाद डंठल को खेतों में नहीं जलाने का सख्त आदेश दिया है. इसके बावजूद आदेश की अवहेलना की जा रही है. कुछ किसान खेतों में पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे है. इस कारण दुर्गावती मुख्य नहर के किनारे लगे हरे पेड़ भी झुलस रहे है. किसानों को कानून व प्रशासन का तनिक भी भय नहीं है. और नहीं पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की तनिक भी चिंता है. खेतों में डंठल जलाने का परिणाम ही है कि शाम में भी धरती दहक रही है.

पराली जलाने से बंजर हो जायेगी भूमि

यदि इसी तरह किसान खेतो में हार्वेस्टर से काटे गये गेहूं की पराली जलाने से बाज नहीं आये, तो वह दिन दूर नहीं, जब आग से जलकर उपजाऊ भूमि बंजर हो जायेगी. फसल की पैदावार समाप्त हो जायेगी. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि भूमि की ऊपरी सतह की दो से तीन इंच तक की ही मिट्टी उपजाऊ होती है. इससे फसल की पैदावार अच्छी होती है. लेकिन खेतों में पराली जलाने से ऊपरी सतह की उपजाऊ मिट्टी जलकर कंकरीली हो जाती है. इससे उसकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है. इतना ही नहीं मिट्टी के कंकरीली होने से उसमें पानी सोखने की क्षमता भी समाप्त हो जाती है और फसल की पैदावार प्रभावित होते-होते एक समय ऐसा आयेगा जब भूमि बंजर हो जायेगी.

प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है खाद व कीटनाशक की मांग

एक तरफ विभाग जैविक खाद का अधिक उपयोग करने व पैदावार बढ़ाने के लिए केंचुआ पालन पर बल दे रही है. वहीं, भूमि की उपजाऊ शक्ति कमजोर पड़ने से किसानों को अधिक पैदावार के लिए प्रत्येक वर्ष यूरिया, डीएपी सहित कीटनाशक दवाओं पर अधिक रुपये खर्च करना पड़ रहे हैं. इसके बावजूद अधिकांश किसान भूमि के उपजाऊ शक्ति के कमजोर पड़ने का कारण नहीं समझ पा रहे है. वहीं, जो पढ़े लिखे जागरूक किसान है, वे यह जानते है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति के कमजोर पड़ने या उसके नष्ट होने का एक सबसे बड़ा कारण खेतों में पराली का जलाया जाना है.

पुआल व भूसा बिक रहा मोतियों के भाव

सितंबर व अक्त्तूबर का महीना पशु पालकों के लिए बेहद कठिनाई भरा होता है. उस समय भूसा 1100 रुपये प्रति कुंटल तक लोग खरीद करते है. इसका सबसे बड़ा कारण खेतों में पराली को जलाने से भूसा व पुआल के कुट्टी की होने वाली कमी है. पराली व गेहूं के डंठल को खेतों में जलाने से खासतौर पर छोटे पशु पालकों के सामने भूसा की कमी भयावह रूप धारण कर लेती है.

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