उदाकिशुनगंज.
बंदों पर रहमत की बारिश करने वाला माहे रमजान का पहला अशरा मंगलवार को खत्म हो गया. मुकद्दस महीने रमजान में रोजेदारों पर शुरुआत के 10 रोजे में अल्लाह की खूब रहमत बरसी. मंगलवार के शाम रमजान महीने का पहला अशरा खत्म होते ही बुधवार से दूसरे अशरे की शुरुआत हो चुकी है, जहां दूसरे अशरे में रोजेदार मगफिरत के लिए अल्लाह से दुआ मांगेगे. क्योंकि रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का है. मान्यता है कि इसमें अल्लाह मरहूमों पर मगफिरत फरमाता है और रोजेदारों को गुनाहों से आजादी मिलती है. जामा मस्जिद सिंगारपुर के इमाम मुजक्किर हसन नदवी ने बताया कि रमजान माह के दूसरे असरे को मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का अशरा कहा जाता है. इसमें अल्लाह अपने बंदों को खास इनआमात से नवाजता है. उन्होंने बताया कि माहे रमजान में अल्लाह ताला अपने बंदों को रहमतों से जहां मालामाल करता है वहीं उसे गुनाहों से नजात व जहन्नम से आजादी देता है. इसके लिए रमजान को तीन अलग-अलग अशरों (भाग) में बांटा गया है. पहला अशरा रहमत का है जो रमजान के चांद से शुरू होकर दसवें रोजे तक जारी रहता है. दूसरा अशरा मगफिरत (क्षमा) का है. इस अशरे में इन्सान को अपने रब से गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ करनी चाहिए. इसी तरह आखिरी अशरा जहन्नम से नजात दिलाने वाला होता है. जो बेहद अहम माना जाता है. उन्होंने बताया कि आखिरी अशरे तक रोजा व इबादत का सिलसिला कायम रखना बड़ी बात होती है. यही वजह है कि आखिरी अशरे में इबादत करने वालों को अल्लाह ताला इनाम के तौर जहन्नम से नजात यानी मुक्ति देने का वादा किया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है