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आस्था और मोक्ष की भूमि गयाजी और विष्णुपद मंदिर, यहां पिंडदान करने से मिलती है मुक्ति, जानिए किसने की शुरुआत?

गयाजी में श्राद्ध कार्य व पिंंडदान-तर्पण करने से प्राणी को जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल जाती है. उसे विभिन्न योनियों में भटकना नहीं पड़ता और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. धार्मिक नगरी गया में कब से पिंडदान किया जा रहा है और इसकी शुरुआत किसने की थी. जानिए...

बिहार के गयाजी तीर्थ को पितरों की मोक्षस्थली भी कहा जाता है. गरुड़ पुराण, पद्म पुराण, कूर्म पुराण, वायु पुराण, नारदिया पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में गयाजी की महत्ता का वर्णन मिलता है. गयाजी में श्राद्ध कार्य व पिंंडदान-तर्पण करने से प्राणी को जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल जाती है. उसे विभिन्न योनियों में भटकना नहीं पड़ता और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. सनातन धर्म में भगवान की पूजा-अर्चना के लिए कई त्योहार है, किंतु पितरोपासना के लिए वर्ष में 15 दिनों के लिए विशेष पर्व की व्यवस्था की गयी है, जिसे ‘पितृपक्ष ’ के रूप में जाना जाता है और गया क्षेत्र के लिए प्रभास क्षेत्र, पुष्कर क्षेत्र, गयाधाम, कुरुक्षेत्र, प्रयाग व बद्रिकाश्रम जैसे कुछ विशेष तीर्थों की महिमा है.

इन तीर्थों पर पिंडदान का विधान

शास्त्रीय मान्यता और लोक आस्था के अनुसार, ‘सर्व विष्णुमयं जगत’ में गयाजी में भगवान नारायण के चरण, प्रयागराज (वेणीमाधव) तीर्थ में भगवान नारायण का हृदय व बदरीकाश्रम (ब्रह्मकपाली) तीर्थ में भगवान नारायण का सिर विद्यमान है. ये तीनों ही तीर्थों में पितरों के श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान का विधान है. इसमें भी गयाधाम की महत्ता सर्वाधिक बतलायी गयी है. इसे इस रूप में कि किसी का आशीर्वाद लेना हो, तो उसके चरण छूकर ही लेना श्रेयस्कर है.

विशाल शालिग्राम शिला पर विद्यमान है भगवान विष्णु का चरण चिह्न

देश के 52 शक्तिपीठों में तीन की महिमा तो अपरंपार बतलायी जाती है. इनमें कामाख्या (असम) के जननपीठ, मां मंगलागौरी (गया) के पालनपाठ व ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश) के संहार पीठ के रूम में शास्त्र, पुराणों में वर्णित है. गयाधाम में गयासुर नामक दैत्य के तारक, उद्धारक के रूप में पालक ब्रह्म भगवान विष्णु का अवतार भी गयासुर के साथ-साथ समस्त प्राणियों के उद्धार के लिए हुआ, जिनका चरण चिह्न गयाधाम के विष्णुपद मंदिर में अब भी विशाल शालिग्राम शिला पर विद्यमान है, जिनके दर्शन, स्पर्श व चरणामृत पान से पापियों को भी मोक्षफल की प्राप्ति सुलभ हो जाती है. यहां पितरों का श्राद्धकर्म करने से जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल जाती है.

किसने की पिंडदान की शुरुआत

गरुड़ पुराण के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने गयाजी तीर्थ में पिंडदान करने की शुरुआत की थी. मान्यताओं के अनुसार राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए भगवान राम, सीता और लक्ष्मण गयाजी आए थे. गयाजी धाम पर पितृपक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

100 फिट ऊंचा है विष्णुपद मंदिर

विष्णुपद मंदिर के निर्माण के संदर्भ में कहा जाता है कि इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने वर्ष 1766-1787 में गया के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. इससे पहले भगवान विष्णु का चरण चिह्न विद्यमान था, जहां छोटा सा मंदिर था. विष्णुपद मंदिर की ऊंचाई 100 फुट है, जिसमें 58 वर्ग फुट का मंडप है. मंदिर के शीर्ष पर स्वर्ण ध्वज कलश के साथ है, जिसे हम दूर से ही देख सकते हैं. भगवान विष्णु का चरण चिह्न 13 इंच लंबा है, इसी से इस मंदिर का नाम विष्णुपद मंदिर है.

गया में गयासुर व पिंडदान की कथा

ब्रह्मजी ने सृष्टि रचते समय गयासुर को उत्पन्न किया. इससे इनका हृदय भगवान विष्णु के प्रेम में ओतप्रोत रहता था. गयासुर ने भगवान विष्णु से वरदान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया था. भगवान विष्णु के प्रसन्न होने पर गयासुर ने यह वरदान मांगा कि श्री हरि स्वयं ही उसके शरीर में वास करें. उसे कोई भी देखे तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाये व उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो. भगवान विष्णु ने गयासुर की यह इच्छा पूरी की थी. इसके बाद इनके शरीर के ऊपर यह महातीर्थ स्थापित हुआ. इसी कारण इस पुण्यभूमि का नाम गया धाम पड़ा.

पौराणिक कथा के अनुसार गयासुर ने कोलाहल पर्वत पर सहस्रों वर्ष तक कुम्भक-समाधियोग से तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रश्न किये थे. इससे भगवान इंद्र का सिंहासन हिलने लगा. इसके बाद विष्णु के निर्देश पर ब्रह्मा ने यज्ञ के लिये गयासुर से उसकी देह की याचना की. उन्होंने कहा- पृथ्वी के सब तीर्थो का भ्रमण कर देख लिया, विष्णु के वर के फलस्वरूप तुम्हारा ही देह सबसे पवित्र है. मेरे यज्ञ को पूर्ण करने के लिए अपना देह मुझे दो. तब गयासुर ने समग्र जगत के कल्याण के लिए अपने देह को दान कर दिया. उन्होंने कहा, ब्रह्म मैं धन्य हुआ. सबके उपकार के लिए मेरा देह यज्ञ के काम आएगा. उनके मस्तक के ऊपर एक शिलाखंड स्थापित कर यज्ञ सम्पन्न हुआ. असुर की देह को हिलता देख विष्णु ने अपनी गदा के आघात से देह को स्थिर कर दिया और उसके मस्तक पर अपने ‘पादपद्म’ स्थापित किया. साथ ही उसे वर दिया कि जब तक यह पृथ्वी चन्द्र, सूर्य रहेंगे तब तक इस शिला पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश रहेंगे. पांच कोस गयाक्षेत्र, एक कोस गदासिर गदाधर की पूजा द्वारा सबके पापों का नाश होगा. जिनका जिनका पिंडदान किया जायेगा वे सीधा ब्रह्मलोक जायेंगे.

Also Read: गया में पितृपक्ष मेला को लेकर बनाया गया कंट्रोल रूम, पिंडदानियों की सुविधा के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी

28 सितंबर से शुरू हो रहा पितृपक्ष मेला

गयाजी में इस वर्ष पितृमुक्ति का विश्वविख्यात महापर्व पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू हो रहा है. जो 14 अक्टूबर 2023 तक चलेगा. मेला को लेकर जिला प्रशासन जोर शोर से तैयारियों में जुटा हुआ है. बिजली से लेकर स्वच्छता तक हर तरह की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध हो इसलिए डीएम त्यागराजन तैयारियों को लगातार जायजा ले रहे हैं और अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं.

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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