23.2 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Azadi Ka Amrit Mahotsav: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले ‘बाल योद्धा’ थे काशीनाथ मुंडा व काशीनाथ मांझी

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी की लड़ाई को परवान चढ़ाने के लिए गांव-गांव से जवान, बूढ़े और महिलाएं समेत हर वर्ग के लोग सड़कों पर निकल पड़े थे. किशोरवय लड़के भी कहां पीछे रहने वाले थे. बोकारो के पेटरवार निवासी काशीनाथ मुंडा और काशीनाथ मांझी भी दो ऐसे ही ‘बाल योद्धा’ थे, जिन्होंने किशोरावस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दिया था. यह अलग बात है कि इन आदिवासी बंधुओं को वह नाम-सम्मान व पहचान नहीं मिल सकी, जिसके वे हकदार थे. काशीनाथ मुंडा पेटरवार गांव के मठ टोला तथा काशीनाथ मांझी पेटरवार प्रखंड की बुंडू पंचायत स्थित कोनारबेड़ा गांव के निवासी थे. 14 वर्ष की उम्र में जब दोनों पेटरवार मध्य विद्यालय में सातवीं कक्षा के छात्र थे, अंग्रेजों के खिलाफ भिड़ गये. दोनों अंग्रेज सिपाहियों को जब भी देखते, उन्हें ललकारते. ‘वंदे मातरम’ व ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते.

तेवर देख अंग्रेजों ने कई बार चेताया

छोटी-सी उम्र में ही इस बगावती तेवर को देख अंग्रेजों ने दोनों को कई बार चेताया, पर उनकी गतिविधियां वैसी ही रहीं. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दोनों ने पेटरवार डाकखाना में आग लगा दी. चूंकि उस समय पेटरवार में ही अंग्रेजों का बार (न्यायालय) चलता था, इसलिए इस घटना से अंग्रेज बौखला गये. अंग्रेज सिपाहियों ने दोनों को गिरफ्तार कर पटना जेल भेज दिया. नौ माह जेल में रहे. लौटने के बाद भी आजादी की लड़ाई में दोनों की सक्रियता जारी रही. दोनों ने आगे की पढ़ाई करनी चाही, पर अंग्रेजों ने इसकी अनुमति नहीं दी. अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण इनके लिए विद्यालय के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिये गये थे. परिणामतः सातवीं के बाद दोनों की पढ़ाई नहीं हो सकी.

गर्दिश में है काशीनाथ मुंडा का परिवार

काशीनाथ मुंडा स्व. मोहन मुंडा के दो पुत्रों में छोटे थे. बड़े भाई का नाम देवकी मुंडा था. उनका निधन 12 फरवरी 2009 को हुआ. आजादी के बाद इन्हें सिंचाई विभाग तेनुघाट में चतुर्थवर्ग में नौकरी मिली. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बुलावे पर दिल्ली गये, जहां इन्हें ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया गया. काशीनाथ मुंडा का परिवार इन दिनों गर्दिश में है. अभाव और गरीबी घर-परिवार में साफ तौर पर देखी जा सकती है. इस मामले में काशीनाथ मांझी की स्थिति तो और भी बुरी कही जा सकती है. बोकारो-रामगढ़ उच्च पथ संख्या-23 से करीब पांच किमी दूर आदिवासी बहुल कोनारबेड़ा गांव में इनका जन्म हुआ था. वह खारा मांझी के एकलौते पुत्र थे. काशीनाथ मांझी को एक बेटी हुई. लेकिन सात वर्ष की उम्र में ही ईश्वर ने उसे छीन लिया. इनकी पत्नी भी इनसे अलग हो गयी. इस सदमे से काशीनाथ उबर नहीं पाये. अपना घर छोड़कर बहन के घर एटके में रहने लगे. इनका जीवनवृत्त सुनाते हुए चचेरा भाई बुधु मांझी की आंखें छलक पड़ती हैं. कहा : देश के लिए काशीनाथ लड़े तो जरूर, पर भगवान ने इनके साथ न्याय नहीं किया. इनका निधन 90 के दशक में हुआ.

Prabhat Khabar News Desk
Prabhat Khabar News Desk
यह प्रभात खबर का न्यूज डेस्क है। इसमें बिहार-झारखंड-ओडिशा-दिल्‍ली समेत प्रभात खबर के विशाल ग्राउंड नेटवर्क के रिपोर्ट्स के जरिए भेजी खबरों का प्रकाशन होता है।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel