26.9 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

मनसा पूजा : सांप-बिच्छू व बरसाती कीड़ों से बचने की लोक परंपरा, जानें क्यों देते हैं बत्तख की बलि

मनसा पूजा का गांवों में विशेष महत्व है, मां मनसा को लेकर कई मान्यताएं हैं. सांप-बिच्छू व बरसाती कीड़ों के विष से बचने के लिए मां मनसा की पूजा लोक परंपरा है. इसमें बकरा व बत्तख की बलि देने की भी परंपरा है. इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व है.

कसमार (बोकारो) दीपक सवाल. सर्पों की देवी मां मनसा की पूजा कसमार प्रखंड समेत पश्चिम बंगाल से सटे झारखंड के अधिकतर गांवों में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में एक है. अमूमन प्रत्येक वर्ष 17 अगस्त को गांवों में जगह-जगह प्रतिमा स्थापित कर धूमधाम से मां मनसा की पूजा की जाती है. लोग कई दिनों पहले से इसकी तैयारी में जुट जाते हैं. प्रतिमा बनाने का दौर करीब 15-20 दिनों पहले शुरू हो जाता है. गांवों में मां मनसा की पूजा पूरे भक्तिभाव से मनाने के पीछे भी अपने कुछ मान्यताएं हैं.

दरअसल, कृषि बहुल क्षेत्र होने के कारण अधिकतर ग्रामीणों व किसानों का नाता सांप-बिच्छुओं के खतरे वाले स्थलों (तालाब, पोखर, नदी-नाला, खेत-खलिहान आदि) से बना रहता है. ऐसी मान्यता है कि मां मनसा की पूजा-अर्चना से सांप-बिच्छुओं के खतरों से उन्हें सुरक्षा मिलती है. इसी कारण गांव के लोग मां मनसा की आराधना पूरे भक्तिभाव से करते हैं. पूजा की रात को बकरा और बत्तख की बलि देने की परंपरा है. अगले दिन पारण के मौके पर इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है. वैसे मां मनसा की पूजा पूरे एक महीने तक होती है.

बारी पूजा के रूप में मनाते हैं कुड़मी समाज के लोग

कुड़मी समुदाय के लोग इसे मूलतः बारी (पानी) पूजा के रूप में मनाते हैं. इनके अनुसार, यह कृषि प्रधान पर्व है. धान की खेती (बुआई) का कार्य खत्म होने के बाद इसे मनाने के पीछे इनका अपना तर्क है और कुछ-कुछ वैज्ञानिक आधार भी. कुड़मी समुदाय का मानना है कि इस पर्व में पूजा के दिन अमूमन शाम को किसी जलाशय से कलश में बारी (पानी) लाकर कृषक अपनी फसल की अच्छी पैदावार के लिए मन-सा, यानी मन की इच्छा के अनुरूप पानी बरसने की कामना करते हैं.

क्यों दी जाती है बत्तख की बलि

मनसा पूजा में बत्तख (गेड़े) की बलि देने के पीछे भी इनका अपना वैज्ञानिक आधार है. इनके अनुसार, इस महीने में सभी कृषक खेतों में जाकर कार्य करते हैं. एक समय था, जब प्रायः कृषक खेतों में कार्य के दौरान अपनी प्यास बुझाने के लिए खेत-डांड़ी का पानी पीते थे. आज भी अधिकतर जगहों पर ऐसी स्थिति है. इनका मानना है कि खेत-डांड़ी का पानी पीने से उसके साथ कई तरह के कीटाणु-विषाणु और कीड़े-मकोड़े भी पेट में चले जाते हैं. बत्तख के मांस व खून में यह खूबी होती है कि वह पेट के वैसे सभी कीटाणुओं को नष्ट कर देते हैं. पुरखों ने उसी को ध्यान में रखते हुए कृषि कार्य के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व में बत्तख खाने की परंपरा शुरू की थी.

मनसा पूजा को लेकर हैं कई मान्यताएं

मनसा पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. उनमें राजा चंद्रधर (चांद राजा) की कथा सर्वाधिक प्रचलित है. कथा के अनुसार, किसी समय माता पार्वती ने काली का भयंकर रूप धारण कर हजारों दैत्यों का संहार किया था. नागलोक के राजा वासुकि की बहन की मौत भी हो गयी. इससे वह काफी दुखी थे. तब भगवान शिव ने मस्तक के प्रभाव से मनसा को जन्म दिया और उसे वासुकि को बहन स्वरूप भेंट किया. वासुकि उसे लेकर नागलोक को निकल पड़े, लेकिन मनसा देवी का जहरीला ताप सहन नहीं कर पाने के कारण आधे रास्ते में अचेत होकर गिर पड़े. चूंकि, शिव ने मनसा के जन्म से पहले विषपान किया था, इसलिए मनसा जन्म से काफी अधिक जहरीली थी. वासुकि ने शिव को पुकारा और कहा कि जब नवजात अवस्था में इसके जहरीले ताप को वह सहन नहीं कर पा रहे तो शिशु अवस्था में यह कन्या कैसे अपना ताप सह सकेगी. तब शिव ने पंचकोश क्रिया से उसे सीधे युवावस्था में पहुंचा दिया.

मनसा में अद्भुत चमत्कारिक शक्तियां थी. उसके आधार पर मनसा ने पाताल लोक में अधिकार जमाना चाहा. वह चाहती थी कि शिव परिवार के गणेश, कार्तिक आदि की तरह उनकी भी पूजा हो. यह बात शिव को पता चलने पर मनसा को धरती पर अपने भक्त चंद्रधर के पास जाने की सलाह दी. कहा कि अगर वह तुम्हारी पूजा कर लेगा तो सभी तुम्हारी पूजा स्वीकार कर लेंगे. मनसा ने राजा चंद्रधर से बलपूर्वक अपनी पूजा करानी चाही, पर वह तैयार नहीं हुए. उन्होंने कहा कि शिव के अलावा इस दुनिया में उनका अन्य कोई भगवान नहीं है. इससे क्रोधित मनसा ने एक-एक कर उनके सातों पुत्रों को मार डाला. उसके बाद चंद्रधर की पत्नी की प्रार्थना पर मनसा के वरदान से एक पुत्र का जन्म हुआ-लक्ष्मी चंद्र (लखिन्द्र). उनकी शादी अखंड सौभाग्यवान महिला बेहल्या से हुई, लेकिन वहां भी मनसा को अपमानित होना पड़ा.

ऐसे शुरू हुई मां मनसा की पूजा

भरपूर प्रयासों के बाद भी जब चंद्रधर पूजा करने को तैयार नहीं हुए तो मनसा ने अपने ही वरदान से जन्मे लक्ष्मीचंद्र को उसके सुहागरात के दिन डस लिया. बेहुल्या महान सती थी. देवताओं की सलाह पर वह केला के थम को नौका बनाकर शिव के पास गयी. शिव ने लक्ष्मीचंद्र को जीवित करने का निर्देश मनसा को दिया, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी. उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ. फिर मनसा के आग्रह पर शिव ने लक्ष्मीचंद्र के अलावा राजा चंद्रधर के अन्य सातों पुत्रों को जीवित कर दिया. इसके बाद शिव ने बेहुल्या की प्रार्थना पर राजा चंद्रधर को आदेश दिया कि वह फूल अर्पित कर मनसा की पूजा करें. साथ ही मनसा को वरदान दिया कि वह जगत में देवी के रूप में पूजी जाएगी और उनकी पूजा करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होगी.

Also Read: बाबा बैद्यनाथ के दर्शन मात्र से मिट जाती है थकान, जानें मलमास में शिव पुराण क्यों सुनते हैं भक्त

Jaya Bharti
Jaya Bharti
This is Jaya Bharti, with more than two years of experience in journalistic field. Currently working as a content writer for Prabhat Khabar Digital in Ranchi but belongs to Dhanbad. She has basic knowledge of video editing and thumbnail designing. She also does voice over and anchoring. In short Jaya can do work as a multimedia producer.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel