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झारखंड : बोकारो में हर साल करीब साढ़े तीन लाख इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स कचरे में हो रहे तब्दील, जानें कारण

बोकारो जिले में हर साल करीब तीन लाख मोबाइल और करीब 50 हजार अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स कचरे में तब्दील हो रहे हैं. कारण है कि साल-दो साल होने के साथ ही लोगों को मोबाइल समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट पुराने लगने लगते हैं और उसे बदल देते हैं.

Jharkhand News: वर्तमान में मोबाइल फोन जीवन का अटूट हिस्सा बन गया है, जिसके न होने से कमी का एहसास होता है. एक शोध से भी यही स्पष्ट होता है कि व्यक्ति अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मोबाइल फोन के साथ ही व्यतीत करते हैं. जिसका दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है. ऐसे में सप्ताह में एक दिन मोबाइल से दूर रहने की सलाह दी जाने लगी है. दूसरी ओर, समय के साथ मोबाइल समेत इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट पर्यावरण के लिए खतरा बनता जा रहा है.

हर साल 2.8 लाख मोबाइल और करीब 50 हजार अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बन रहा कचरा

अनुमान के मुताबिक, बोकारो जिले में हर साल 2.8 लाख मोबाइल और करीब 50-55 हजार अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स कचरे में तब्दील हो रहे हैं. एक कारण यह भी है इलेक्ट्रॉनिक बाजार समय-समय पर खुद को अपग्रेड करता है. इस कारण पिछले वर्जन की कीमत कम हो जाती है. पुराने वर्जन के उपकरण को खुले बाजार में बेचने पर भी अच्छी कीमत नहीं मिलती है. लिहाजा उपकरण धीरे-धीरे कचरा बन जाता है.

पर्यावरण के लिए चुनौती है ई-वेस्ट

मोबाइल रिटेलर्स संगठन ऐमरा के प्रदेश महासचिव किरिट वोरा की मानें, तो जिले में वर्तमान समय में 20-22 लाख मोबाइल इस्तेमाल में है. इनमें से 90 प्रतिशत स्मार्टफोन है. सिर्फ 2022 में रिटेल खरीदारी के अनुसार 1,35,352 मोबाइल अपग्रेड हुए हैं. सिर्फ 2022 में 2.76 लाख लोगों ने नया मोबाइल खरीदा है. वहीं, 2023 में अबतक 65,313 मोबाइल अपग्रेडेशन ऑफलाइन व इससे कहीं अधिक ऑनलाइन हुआ है. हर त्योहार को लोग खरीद का बहाना बना रहे हैं. खरीदे गये मोबाइल में से कुछ प्रतिशत मोबाइल ही रिसाइकिल या अन्य कारणों से रिप्लेस किया गया है. बड़ा हिस्सा कचरा बना है. यह कचरा कुछ दिनों के लिए घर में रहता है. फिर घरेलू कचरा के साथ बाहर फेंक दिया जाता है. इसे ही ई-वेस्ट कहते हैं. यह ई-वेस्ट धीरे-धीरे पर्यावरण के लिए चुनौती बन रही है.

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एक सेंटर में होता है काम, दूसरे को सीटीओ का इंतजार

चंदनकियारी में ई-वेस्ट निस्तारण के नाम पर दो केंद्र प्रदूषण विभाग से चिह्नित किया गया है. लेकिन, वर्तमान समय में वह सिर्फ कलेक्शन सेंटर ही बना हुआ है. झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण (धनबाद परिक्षेत्र) के अधिकारी राम प्रवेश ने बताया कि एक सेंटर काम कर रहा है. जबकि अन्य दूसरे को सीटीओ नहीं मिल है. वहीं, कोलकाता की कुछ कंपनियां ई-कचरा लेकर जाती है. रिसाइकिल करती है. चूंकि, इलेक्ट्राॅनिक उपकरण बनाने में शीशा, पारा, कैडमियम व अन्य रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल होता है, इस कारण इलेक्ट्रॉनिक आइटम का कचरा मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए नुकसानदायक माना जाता है.

बिना मतलब के भी लोग बदल रहे हैं मोबाइल

लोगों के पास मोबाइल बदलने का कोई स्पष्ट कारण नहीं है. साल-दो साल होने के साथ ही लोगों को मोबाइल पुराना लगने लग रहा है. वहीं, कुछ लोग सॉफ्टवेयर इश्यू एवं अपग्रेडेशन के कारण मोबाइल बदल रहे हैं. 2021 में डेफ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलाॅजी के सर्वेक्षण में फोन बदलने का सबसे बड़ा कारण सॉफ्टवेयर का धीमा एवं बैटरी के स्तर में गिरावट रहा. वहीं, दूसरा बड़ा कारण नये फोन के प्रति लोगों का आकर्षण था. कंपनियों की मार्केटिंग व दोस्तों के हर साल फोन बदलने की आदतों से भी प्रभावित होकर भी लोग नया फोन ले लेते हैं.

पांच साल तक चल सकता है मोबाइल

जानकारों की माने, तो सेल फोन की औसतन उम्र तीन से साढ़े तीन साल की होती है. लेकिन, यदि फोन का सावधानी एवं समझदारी से इस्तेमाल किया जाये, तो उसे पांच से छह साल तक आराम से चलाया जा सकता है. फोन को बार-बार बदलने के पीछे कई कारण हैं. विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बनाने वाली कंपनियों के सर्विस सेंटर में गैजेट रि-साईकिल के लिए बॉक्स रखा गया है. बॉक्स सिर्फ रखा गया है, इसकी उपयोगिता बताने के लिए कोई नहीं है. दूसरी ओर आम आदमी भी बॉक्स की तरफ झांकते तक नहीं. पिछले दिनों कोरोना काल में भी जब आम लोगों से जरूरतमंद विद्यार्थी के लिए पुराना मोबाइल दान करने को कहा गया था, तो नाममात्र के लोगों ने ही पुराना मोबाइल दान किया था.

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Prabhat Khabar News Desk
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