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Jharkhand Elections Special: 1977 के चुनाव में पैदल ही 15-20 किमी रोजाना प्रचार करते थे महादेव मरांडी, कर्पूरी ठाकुर सरकार में बनें मंत्री

महादेव मरांडी 1977 के चुनाव में जीत हासिल कर दुमका से विधायक बने और फिर बिहार सरकार में मंत्री बनें.

Jharkhand Elections Special -आनंद जायसवाल, दुमका : 1977 में बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में महादेव मरांडी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने थे. दुमका से विधायक चुने गये महादेव मरांडी बेहद गरीब परिवार से थे. सामाजिक गतिविधियों और रचनात्मक कार्यों में उनकी अभिरूचि थी और इसी वजह से वे सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में बतौर कलाकार सरकारी सेवा में आए थे.

महादेव मरांडी कलाकार होने का मिला फायदा

कलाकार थे, तो स्वभाविक रूप से गीत-संगीत, हास्य-विनोद, संवाद संप्रेषण के जो गुर उनके पास थे. वह उन्हें राजनीति में काम आया. उनकी इस प्रतिभा को देख श्रीराम केशरी, राम रतन सिंह व वंशीधर ओझा सरीखे नेताओं ने उन्हें जनता पार्टी के संगठन से न केवल जोड़ा, बल्कि लग-भिडकर उन्हें टिकट दिलवाया. जिस भरोसे से यह तिकड़ी उनके साथ खड़ी हुई थी, उस भरोसे पर महादेव मरांडी भी खूब खरे उतरे.

रोजाना 15-20 किमी पैदल चलकर करते थे प्रचार

साधन की अनुपलब्धता थी, पर रोजाना 15-20 किमी के इलाके में वे पैदल ही जनसंपर्क करते रहते थे. उस वक्त तक न मोटरकार सबके पास थी, न मोटरसाइकिल. साइकिल भी किसी के पास होना बड़ी बात थी. एक परेशानी यह भी थी कि खुद महादेव मरांडी साइकिल नहीं चलाते थे. ऐसे में कोई साइकिल चलाता था, तो वे पीछे करियर में पटरा (लकड़ी की तख्ती) लगाकर बैठते थे और एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते थे. पैदल या साइकिल से ही गांदो या कुमड़ाबाद तक पहुंचना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. उसी साल बटेश्वर हेंब्रम सांसद बने थे और देश में एक अलग लहर थी. बटेश्वर भी महादेव मरांडी को खूब आदर-स्नेह देते थे. ऐसे में महादेव प्रत्याशी बने तो उन्होंने भी उनके लिए जनसंपर्क करना शुरू किया.

चुनाव जीते तो बिहार सरकार में बने मंत्री

महादेव मरांडी चुनाव जीते तो बिहार सरकार में वे उसी विभाग के मंत्री बन गये, जिसमें लंबे समय तक उन्होंने सेवा दी थी. उस वक्त छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे वरिष्ठ पत्रकार शिवशंकर चौधरी उन दिनों को याद कर बताते हैं कि बहुत सीमित संसाधन में महादेव मरांडी ने अपना चुनाव जीता था. चुनाव के अंतिम समय में बड़ाबांध के पास रहनेवाले व्यवसायी केदार साह ने एक जोंगा गाड़ी उपलब्ध करायी थी. जिसे उन्होंने आर्मी से खरीदा था. इस गाड़ी से महज तीन-चार दिन का ही जनसंपर्क हुआ, बाकि जनसंपर्क पैदल या साइकिल से ही महादेव मरांडी ने किया था.

महादेव मरांडी की पत्नी ने भी दिया उनका साथ

चौधरी बताते हैं कि महादेव मरांडी की पत्नी लखी देवी हांसदा ने भी चुनाव के दौरान शहर व आसपास के इलाके में अपने स्तर से काफी जनसंपर्क किया था. दरअसल वे बंगला व भोजपुरी बहुत अच्छा बोलती थीं. संताल थी, तो संताली की जानकार तो थी हीं. ऐसे मे उनका भी योगदान चुनाव को जीतवाने में रहा था. चौधरी बताते हैं कि महादेव मरांडी के लिए राजनीति में आना, विधायक बनना, उस विभाग का मंत्री बनना, जिसके वे कर्मी रहे, काफी अहम रहा. उन्होंने संताल आदिवासियों के साफाहोड़ अनुयायियों को भी संगठित किया था.

रामचरितमानस का संताली अनुावद किया था शुरू

अनुयायियों ने उन्हें गुरूबाबा का दरजा दे रखा था. उनकी कोशिश रही थी कि श्रीरामचरितमानस का वे संताली में अनुवाद करें, उन्होंने लगभग इस काम को पूरा कर भी लिया था, पर अर्थाभाव में वे इसे प्रकाशित न करा सके थे. ईमानदारी की मिसाल रहे स्व महादेव मरांडी कड़हलबिल मुहल्ले के रहनेवाले थे. आज भी उनका मकान कच्चे का है. परिवार में पतोहु मुन्नी मुर्मू और पोता गुंजन मरांडी हैं, जो पीडीएस की दुकान चलाकर गुजर बसर कर रहे हैं.

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Kunal Kishore
Kunal Kishore
कुणाल ने IIMC , नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा की डिग्री ली है. फिलहाल, वह प्रभात खबर में झारखंड डेस्क पर कार्यरत हैं, जहां वे बतौर कॉपी राइटर अपने पत्रकारीय कौशल को धार दे रहे हैं. उनकी रुचि विदेश मामलों, अंतरराष्ट्रीय संबंध, खेल और राष्ट्रीय राजनीति में है. कुणाल को घूमने-फिरने के साथ पढ़ना-लिखना काफी पसंद है.

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