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गुमनामी के जिंदगी जी रहे हैं वीर बख्तर साय और वीर मुंडल सिंह के परिजन, न मिला सरकारी लाभ न ही नौकरी

Bakhtar Say, Mundal Singh: अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने वाले वीर बख्तर साय और वीर मुंडल सिंह के परिजन आज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं, उनके परिजनों को न ही किसी सरकारी योजना लाभ मिला न ही नौकरी. न ही उनके गांव का सही तरीके विकास हो सका है.

गुमला, दुर्जय पासवान: अंग्रेजों से युद्ध के बाद शहीद हुए वीर बख्तर साय और वीर मुंडल सिंह के परिजन आज भी गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हैं. शहादत के बाद से लेकर आज तक शहीद के परिजनों को शहीद के नाम से ना कोई सरकारी लाभ मिला. ना कोई नौकरी मिली. यहां तक कि गांव का विकास भी सही तरीके से नहीं हुआ है. शहीद के परिजन रायडीह प्रखंड के वासुदेव कोना देवडाड़ गांव में रहकर खेतीबारी कर अपना भरण पोषण व जीविका चला रहे हैं.

वीर शहीद बख्तर साय के परिजन बोले- सरकार ने भुला दिया हमें

वीर शहीद बख्तर साय के वंशजों ने कहा की हमारे पूर्वज वीर शहीद बख्तर साय देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे. पर आज सरकार और प्रशासन वीर शहीद को ही भुला दिये. आज तक शहीद के परिजनों को किसी प्रकार का कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिला और ना ही किसी परिजन को नौकरी मिली. आज हम सभी वंशज बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. सरकार और प्रशासन ने मिलकर पतराटोली रायडीह के चौक में वीर शहीद बख्तर साय व वीर शहीद मुंडल सिंह की मूर्ति स्थापित कर दी.

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परिजन और ग्रामीण आपस में चंदा कर मनाते हैं शहादत दिवस

स्थापना के दो वर्षों तक प्रशासन ने शहीद दिवस मनाने के लिए खर्च मुहैया कराया. इसके बाद से आज तक प्रशासन ने शहादत दिवस मनाने के लिए कुछ भी खर्च नहीं किया. पतराटोली रायडीह में जो शहीद चौक बना है. वह भी जर्जर हो गया है. परिजन व ग्रामीण आपस में चंदा कर शहादत दिवस मनाते हैं.

गढ़ पहाड़ को पार्क मनाने की मांग उठी है

शहीद के वंशजों ने बताया कि गढ़पहाड़ को पार्क बनाने की मांग लंबे अरसे से हो रही है. गुमला विधायक भूषण तिर्की ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन में गढ़पहाड़ का मुददा उठाये हैं. इससे ग्रामीणों में खुशी है. ग्रामीण चाहते हैं कि जल्द गढ़ पहाड़ का विकास हो.

परिजनों की मांग गढ़ पहाड़ के रूप में विकसित हो

यहां बता दें कि देवडांड़ गांव में वीर शहीद बख्तर साय के वंशज रामविलास सिंह, शंकर सिंह, बालक सिंह, नंदलाल सिंह, अकबर सिंह, शंभु सिंह, त्रिलोक सिंह, रोमन सिंह, बलिराम सिंह, भगीरथ सिंह, वकील सिंह, कृति सिंह, भीमकरण सिंह के परिवार रहते हैं जो पूरी तरह से खेती-बारी में आश्रित हैं. परिजनों ने मांग की है कि शहीद की मूर्ति व चौक की मरम्मत की जाये. साथ ही वीर शहीद की कर्मभूमि गढ़ पहाड़ को पार्क के रूप में विकसित किया जाये. इस क्षेत्र को पर्यटक स्थल घोषित किया जाये. साथ ही परिजनों को शहीद के नाम पर सरकारी लाभ दिया जाये.

रूसु भगत को ताम्रपत्र मिला था

रायडीह प्रखंड के रूसु भगत जिन्हें 15 अगस्त 1972 ईस्वी को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रांची दौरा के क्रम में ताम्रपत्र सौंपा था. अब रूसु भगत का निधन हो गया. लेकिन उनके परिवार के पास आज भी ताम्रपत्र साक्षात है. पालकोट, रायडीह, गुमला व चैनपुर प्रखंड में रौतिया जाति की काफी जनसंख्या है.

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गढ़पहाड़ में दो दिनी मेला शुरू

इस वर्ष युद्ध स्थल गढ़पहाड़ में दो दिनी मेला का शुभारंभ किया गया. यह मेला गुरुवार से शुरू हुआ. जिसका समापन शुक्रवार को होगा. अमर शहीद बख्तर साय एवं अमर शहीद मुंडल सिंह स्मारक समिति के महेंद्र सिंह ने बताया कि चार अप्रैल को गढ़पहाड़ के पास मेला लगेगा. गढ़पहाड़ जंगल (कर्मभूमि) में मेला लगाने की तैयारी पूरी हो गयी है. क्योंकि उस जंगल में शहीद की बहुत सारी निशानी है. जिस गुफा में वे रहते थे. वह गुफा है. अंग्रेजों को मारकर जो खून बहा था और खून तालाब का रूप ले लिया था. वह रक्त बांध है. ऐसे कोई ऐतिहासिक निशानी है. इस कारण गढ़पहाड़ जंगल के किनारे मेला लगते आ रहा है

Sameer Oraon
Sameer Oraon
A digital media journalist having 3 year experience in desk

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