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विशिष्ट पुरातात्विक व धार्मिक स्थल है सतगावां का घोडसीमर धाम

अभी पवित्र श्रावण मास चल रहा है और हजारों की संख्या में बाबा भोले के भक्त जल अर्पण के लिए देवघर जा रहे हैं

23कोडपी54 सतगावां स्थित घोड़सीमर धाम. 23कोडपी55 घोड़सीमर मंदिर में स्थापित शिवलिंग. ———————– सैकडों वर्ष प्राचीन काल की मूर्तियों के साथ विशाल शिवलिंग है आस्था का केंद्र दिन भर में कई बार बदलता है शिवलिंग का रंग, भक्त जल अर्पण कर मांगते हैं मन्नत —————————————- सुधीर सिंह, सतगावां. अभी पवित्र श्रावण मास चल रहा है और हजारों की संख्या में बाबा भोले के भक्त जल अर्पण के लिए देवघर जा रहे हैं, पर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि देवघर की तरह ही कोडरमा जिले में एक ऐसी जगह है जो देवघर के समान ही प्रतीत होता है. जी हां, कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर व गया से देवघर जाने वाली रोड पर दुम्मदुमा गांव स्थित सतगावां प्रखंड के सकरी नदी किनारे स्थित घोडसीमर धाम को लेकर ऐसी चर्चाएं कई बार हो चुकी है. यही कारण है कि पुरातत्व विभाग भी यहां के इतिहास को समेटने के लिए प्रयास कर रहा है. वैसे घोड़सीमर धाम अपने आप में विशिष्ट पुरातात्विक व धार्मिक स्थल है. यहां पर सैकडों वर्ष प्राचीन काल की मूर्तियों के साथ-साथ किसी सभ्यता के बसे होने के प्रमाण भी मिले हैं. शिव पुराण में भी घोडसीमर धाम की चौहद्दी बतायी गयी है उसके अनुसार पूरब में शिवपुरी गांव, पश्चिम में दर्शनिया नाला, उत्तर में सकरी नदी, दक्षिण में महावर पहाड है यह चौहद्दी यहां सटीक बैठती है. किवंदतियों के अनुसार लंकापति रावण घोड़सीमर नामक स्थान में विश्राम के बाद भगवान शंकर को जब यहां से ले जाने लगा तो शंकर भगवान ने अपने विभिन्न रूप यहां छोड़ दिए और कालातंर में इसका नाम देवघर धाम पड़ा. यहां सैकड़ों वर्षों से पूजा अर्चना करने की परंपरा चली आ रही है. देवघर धाम जिसे घोड़सीमर धाम से जाना जाने लगा यहां मंदिर के पत्थरों में 1336 ई. अंकित है. इसी से पता चलता है कि यह मंदिर कितना पुराना है. मंदिर में पत्थर का चौखट है जिसका वजन करीब एक सौ क्विंटल बताया जाता है. मंदिर के अंदर पांच फीट गोला आकार में विशाल शिवलिंग है. मंदिर की खासियत यह है कि शिवलिंग पत्थर का रंग बदलते रहता है. शिवलिंग का रंग मंदिर में सूर्य की रोशनी के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है. इसके अलावा देवी-देवताओं की सैकडों प्राचीन मूर्तियां यहां है. लोगों का मानना है कि यहां स्थापित मंदिर व सारी मूर्तियां भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में बनाई थी. शिवलिंग की पूजा लोग दूध चढ़ाकर करते हैं और शिवलिंग को दूध से धोने के बाद शिव जी की तस्वीर उभर जाती है. लोग बताते हैं कि एक समय था जब मंदिर के ऊपर गुंबज में पुजारी रहते थे. मंदिर के नीचे सुरंग हैं जिसमें कई रहस्य दबे हैं. यहां पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस ऐतिहासिक स्थल को राज्य सरकार के कला व संस्कृति विभाग ने खुदाई कर विकसित करने की भी योजना बनायी है. कुछ दिनों पूर्व रांची से पुरातत्व विशेषज्ञ ने यहां आकर स्थल का निरीक्षण भी किया, पर आज तक काम शुरू नहीं हो पाया है. घोड़सीमर में विवाह के दिनों में सैकड़ों शादियां होती है. यहां साफ और स्वच्छ वातावरण होने के कारण महिलाएं व पुरुष हर दिन यहां पूजा अर्चना कर मन्नते मांगते हैं. करीब सौ क्विंटल है मंदिर में पत्थर का चौखट घोड़सीमर धाम मंदिर के पुजारी विवेकानंद पांडेय बताते हैं कि मंदिर में पत्थर का चौखट है जिसका वजन करीब 100 क्विंटल है. मंदिर के अंदर पांच फीट गोलाई आकार में विशाल शिवलिंग है. इसके अलावा अन्य देवी देवताओं की सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां, जो यहां की खुदाई में मिले हैं वह है. यहां शिवरात्रि में विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. मेला में सतगावां, गावां के साथ-साथ पड़ोसी राज्य के नवादा जिले के दर्जनों गांवों से लोग पूजा करने आते हैं. विवेकानंद पांडेय के अनुसार सूर्य की रोशनी के हिसाब से मंदिर के शिवलिंग का रंग बदलता रहता है. सुबह में इसका रंग गहरा चॉकलेटी होता है जैसे ही मंदिर में रोशनी बढ़ती है रंग हल्का होता जाता है और दोपहर होते होते पूरे शिवलिंग एक रंग का हो जाता है. उनकी मानें तो जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से पूजा करता है उसका प्रतिबिंब शिवलिंग पर बनता है.

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