सिर्फ एक सोनम नहीं… बेटियों की परवरिश, मानसिकता और समाज की सोच पर उठते सवाल
रांची(लता और पूजा). प्रेम प्रसंग में सोनम द्वारा अपने पति राजा रघुवंशी की निर्मम हत्या के बाद समाज एक औरत की आपराधिक प्रवृत्ति को लेकर उद्वेलित है. एक नया विमर्श शुरू हुआ है. आखिर ममता से भरी एक स्त्री के अंदर ऐसी प्रवृत्ति क्यों आयी. मीडिया टीआरपी के लिए इसका दूसरे तरीके से विश्लेषण कर रहा है. लेकिन, इसको एक पूरे सामाजिक और भावनात्मक पहलू को भी देखना होगा. बेटियों को भी समझना होगा. पूरी घटना को सही नहीं ठहराया जा सकता है. यह घटना सामाजिक, पारिवारिक और भावनात्मक सोच को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है. यह घटना सवाल खड़े करती है कि क्या एक महिला भी इस स्तर तक गिर सकती है? लेकिन, यह भी है कि एक सोनम से पूरी नारी जाति का चरित्र चित्रण नहीं हो सकता है.परवरिश का प्रभाव, अभिभावकों की चिंता
बेटी मां का ही प्रतिबिंब होती है. एक मां अपनी संतान को अच्छे संस्कार देती है. लेकिन, जब वह ऐसे अपराध की ओर बढ़ती है, तो समाज को अपनी भूमिका पर विचार करना चाहिए. एक महिला अपने पति की कातिल हो सकती है, यह यकीन नहीं होता. स्त्री समाज तो ममता की मिसाल होती है. ऐसे में एक स्त्री के अंदर ऐसी मानसिकता होना हम तमाम स्त्री जाति को सोचने पर विवश करता है. आवश्यकता है अपनी बेटियों को संस्कार शिक्षा देने की.रेणू, करमटोली चौक.
आज की व्यस्त जीवनशैली में माता-पिता बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं. बच्चे वही सीखते हैं, जो घर से मिलता है. मां ही पहली गुरु होती है और संवाद की कमी से बच्चों में असंतुलन पनपता है. बच्चों को समय देना आवश्यक है. एक मां अपने बच्चों को बनाने में पूरी जिंदगी लगा देती है. जरूरत है अभिभावकों को अपने बच्चों को समझने की. यहीं वह समय हाेता है जब बच्चे अपने घर से चीजों को सीखते, समझते हैं.कुमारी खुशबू, कचहरी रोड.
महिलाएं सृजन की प्रतीक मानी जाती हैं. लेकिन, जब वही हिंसा की ओर बढ़े, तो यह मानसिक असंतुलन की ओर इशारा करता है. हमें समझना होगा कि हम कहां चूक रहे हैं. महिलाओं को तो बच्चों को बनाने, संवारने की देवी का दर्जा दिया गया है. फिर समाज में ऐसी घटना ही महिला को सोचने पर विवश करता है कि हमारा समाज कहां जा रहा है.नीलम देवी, धुर्वा.
बच्चों के सामने वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप उनसे अपेक्षा रखते हैं. अभिभावकों को बच्चों के दोस्त की तरह व्यवहार करना होगा, तभी वे खुलकर संवाद कर पायेंगे. एक बच्चे का रिश्ता उसकी मां से उसके गर्भ में ही बन जाता है. मां को अपने बच्चों को समझने की आवश्यकता है. मां बाप अपने बच्चों को सही माहौल दें. बच्चे अपने अभिभावक को दोस्त की तरह ही समझें. अपनी हर बात उनसे साक्षा करें.श्रद्धा वर्मा, किशोरगंज.
बेटियों को समय देना आज की सबसे बड़ी जरूरत है. अभिभावक और बच्चों के बीच संवाद का अभाव ऐसी त्रासदियों का कारण बन सकता है. मैं एक समाज सेविका हूं और समाज में इस तरह की घटना को देख कर मन दुखी होता है. हमारे समाज में बेटियां कहां जा रही हैं. ये कैसी प्रवृत्ति उनमें पनम पर रही है. आज के अभिभावक और बच्चों के बीच संवाद कम हो रहा है. व्यवहार को समझने की जरूरत है.सुमन देवी, नागाबाबा खटाल.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ…मानसिक स्वास्थ्य और स्वतंत्रता पर जोर
यह आवश्यक है कि शादी से पहले रिश्तों में पारदर्शिता हो. जबरन रिश्ते किसी के लिए सुखद नहीं होते. मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवाद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, तभी ऐसी त्रासदियों से बचा जा सकता है. देर से शादी, दुखी विवाह से बेहतर है. यह घटना हमें यह सिखाती है कि हम कुछ उदाहरणों के आधार पर पूरे समाज या किसी एक वर्ग के बारे में राय नहीं बना सकते. यह समय है कि हम मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आपसी संवाद को प्राथमिकता दें.प्रो डॉ अमूल आर सिंह, प्रोफेसर और प्रमुख, क्लिनिकल साइकोलॉजी विभाग.
युवाओं में परिपक्वता की कमी
आज के युवा त्वरित समाधान चाहते हैं. वे समस्याओं को सुलझाने की बजाय प्रतिक्रियात्मक हो जाते हैं. महिलाओं में भी अब आक्रोश और असंतुलन दिख रहा है, जिसका कारण है दबी हुई भावनाएं और सामाजिक दबाव. जब भावनाएं सुनवाई नहीं पातीं, तो उनमें उग्रता जन्म लेती है. सोशल मीडिया में देखने को मिल रही है कि अब महिलाएं भी ऐसी हो रही है. महिलाएं हमारे समाज में आरंभ से दबी हुई रही हैं. वह अपनी बात कहीं नहीं बोल पायीं. उनके अंदर ये परिपक्वता नहीं आ पायी कि वो अपनी बात सामने ला पायें.प्रकृति सिन्हा, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट.B
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