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लोहरदगा के बिरहोर समुदाय की कैसे बदली जिंदगी ? कभी जंगल और पहाड़ों में भटकने को थे विवश

सेमरडीह के बिरहोर समुदाय के लोगों ने बताया कि पहले लोग जंगल-पहाड़ों में भटकते रहते थे. जिन्हें 1997 में सेमरडीह में बसाया गया व जगह का नाम बिरहोर कॉलोनी रखा गया

किस्को प्रखंड क्षेत्र के आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोगों को सरकार द्वारा मिलने वाली सभी सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही है. खरकी पंचायत के सेमरडीह रुगड़ी टोली बिरहोर कॉलोनी में 30 परिवार के 200 जबकि देवदरिया पंचायत के खरचा में छह परिवार के 20 बिरहोर समुदाय के लोग निवास करते हैं. इनका मुख्य पेशा पत्तल व रस्सी बनाकर बाजार में बेचना है. एक रस्सी बेचने पर 40 रुपये की आमदनी होती है.

गांव में बिजली, पानी, सड़क, शौचालय व आवास योजना तक पहुंच चुकी है. एक-दो परिवारों को छोड़ लगभग सभी परिवार को बिरसा व प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्का मकान मिल चुका है. छोटे से गांव में दो जलमीनार लगाये गये हैं. जिसमें एक खराब पड़ा था. जिसे ग्रामीणों ने चंदा जमा कर दुरुस्त कराया. एक जलमीनार का उपयोग लोग सामूहिक रूप से करते हैं. वहीं एक जलमीनार से घर-घर पानी पहुंचाया जा रहा है. प्रशासन द्वारा प्रत्येक परिवारों को शौचालय योजना का लाभ दिया गया है.

लेकिन जागरूकता के अभाव में गांव के अधिकांश लोग खुले में शौच जाते हैं. उपयोग नहीं करने के कारण कुछ शौचालय की स्थिति जर्जर हो गयी है. बिरहोर समुदाय के लोगों के घरों तक प्रशासन द्वारा राशन पहुंचाया जाता है. राशन लेने के लिए इन लोगों को कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है. गांव के सभी परिवारों का राशन कार्ड निर्गत किया गया है. वहीं लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए संस्था की ओर से बकरी पालन, सूकर पालन व अन्य कई योजनाओं का लाभ समय-समय पर दिया जाता है.

गांव का विद्यालय मर्ज होने से परेशानी :

सेमरडीह के बिरहोर समुदाय के लोगों ने बताया कि पहले लोग जंगल-पहाड़ों में भटकते रहते थे. जिन्हें 1997 में सेमरडीह में बसाया गया व जगह का नाम बिरहोर कॉलोनी रखा गया. 1997 में गांव में गुलाम बिरहोर, भैरो बिरहोर व गणेश बिरहोर को बसाया गया था. जिसमें आज सिर्फ गुलाम बिरहोर जीवित है.

ग्रामीण लुकस बिरहोर, गुलाम बिरहोर, पुतरु बिरहोर, भैरव बिरहोर, प्रसाद, जीतराम, जीवन, सिकंदर, रामराम, रतिया बिरसई, प्रकाश, सोहराई व अन्य लोगों ने कहा कि गांव में सभी बुनियादी सुविधा उपलब्ध है. लेकिन गांव में विद्यालय नहीं होने के कारण बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने दूसरे गांव में जाना पड़ता है. गांव में एक विद्यालय था, जिसे दूसरे गांव में मर्ज कर दिया गया. जिससे बच्चों को पढ़ाई के लिए तीन किलोमीटर दूर सेमरडीह जाना पड़ता है.

दूरी के कारण गांव के अधिकांश बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते है. वहीं गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होने से परेशानी होती है. सालों भर रोजगार नहीं मिलने के कारण अधिकांश परिवार रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते हैं. गांव में ही रोजगार उपलब्ध करा दिया जाये, तो पलायन रोकने में मदद मिलेगी. लोगों ने खराब पड़ी पत्तल बनाने की मशीन को दुरुस्त कराने की मांग की है.

Prabhat Khabar News Desk
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