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Ranchi News: बचपन का दर्द भूल अनाथों के लिए फरिश्ता बने भाई-बहन

मतलबी रिश्तों से भरी इस दुनिया में दूसरों के लिए फरिश्ता बनना आसान नहीं होता. सिमडेगा के छोटे से गांव से निकले भाई-बहन आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं.

रांची. मतलबी रिश्तों से भरी इस दुनिया में दूसरों के लिए फरिश्ता बनना आसान नहीं होता. सिमडेगा के छोटे से गांव से निकले भाई-बहन आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं. अनीता मगदली एक्का और उनके छोटे भाई हिलेरियस एक्का आज अनाथ बच्चों और बुजुर्गों का जीवन संवारने की कवायद में जुटे हैं. दोनों का बचपन तंगहाली और संघर्षों में गुजरा, लेकिन जिंदगी जीने के जज्बे ने इन्हें नयी राह दिखायी. दोनों ने दूसरों की ज़िंदगी को संवारने का प्रण लिया. हुलहुंडू स्थित इनका वृद्धाश्रम और अनाथालय उम्मीद का केंद्र बन चुका है. यहां अनाथ बच्चों के लिए स्कूल और हॉस्टल है. वृद्धाश्रम में 10 वृद्ध महिलाएं भी रहती हैं.

बचपन में उठा पिता का साया

अनीता मात्र सात वर्ष की थी, तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया. घर और छोटे भाई की जिम्मेदारी आने पर उन्होंने जिंदगी का डटकर सामना किया. तब इनकी मां दूसरों के घरों में काम करती थीं और उन्हें पारिश्रमिक के रूप में महुआ या माड़ मिलता था. फिर मां घर लौटकर यही महुआ या चावल का माड़ बच्चों को भोजन के रूप में देती थी. ऐसे में दोनों भाई-बहन को कई बार बिना भोजन के ही रातें गुजारनी पड़ीं. इस स्थिति में अनीता को मात्र 10 वर्ष की उम्र में दूसरों के घरों में काम करना पड़ा.

1988 में रांची से मुंबई गयीं, तो मिली

हिम्मत

वर्ष 1988 में अनीता को रांची के पुरुलिया रोड पर एक घर में मेड का काम मिला. ऐसे में उन्होंने रांची में काफी कम पैसे मिलने के कारण 1990 में मुंबई का रुख किया. गार्डन रोड में ब्रिच कैंडी अस्पताल के पास रजत बिल्डिंग में नौकरी मिली. मुंबई में अच्छे पैसे मिलते थे, तो अनीता ज्यादातर पैसे भाई की पढ़ाई और घर के खर्च में लगा देतीं. इससे स्थिति सुधरी और दूसरों के जीवन में परिवर्तन लाने की हिम्मत भी बढ़ी.

भाई ने पढ़ाई पूरी कर शुरू किया अनाथालय

वर्ष 2008 में जब भाई हिलेरियस एक्का की पढ़ाई पूरी हुई, तो उन्होंने बचपन की तकलीफों को याद कर अपनी बहन के साथ अनाथ बच्चों के लिए काम करने का निर्णय लिया. अनीता ने कुछ पैसे दिये, जिससे भाई ने हुलहुंडू में जमीन खरीदी. वहां एक झोपड़ी बनाकर 10 बच्चों से अनाथालय शुरू किया गया. बहन दूसरों के घरों में काम करके भाई को पैसे भेजती रही और भाई पूरी निष्ठा से अनाथ बच्चों और बेसहारा वृद्ध महिलाओं की सेवा में लगे रहे. 2013 में इसे मर्सी ओल्ड एज होम नाम से शुरू किया गया. आज हुलहुंडू स्थित इनका वृद्धाश्रम और अनाथालय अनाथ बच्चों और 10 वृद्ध महिलाओं का सहारा बना हुआ है.

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