मुख्य संवाददाता, रांची. नवी मुंबई से आये सीनियर पैथोलॉजिस्ट डॉ असितावा मंडल ने कहा कि पैथोलाॅजिस्ट बीमारी का पता लगाते है. जब बीमारी की जानकारी हो जाती है, तो वह विशेषज्ञ डॉक्टर के पास मरीज को इलाज के लिए भेजते हैं. जेनेटिक प्रोफाइल और मॉलिक्यूलर प्रोफाइल के साथ-साथ ट्यूमर का फैलाव किस गति से हो रहा है. इससे कैंसर का ट्रीटमेंट सटीक हो जाता है. यानी टारगेटेट थैरेपी द्वारा इलाज संभव है. वह रविवार को रिम्स ऑडिटोरियम में एसोसिएशन ऑफ साइकोलॉजिस्ट एंड हिस्टोपैथोलॉजिस्ट के आठवें वार्षिक सम्मेलन में बोल रहे थे. उन्होंने बताया कि पहले माइक्रोस्कोप से डायग्नोस करके दिया जाता था, जो अब ज्यादा कारगर नहीं है. अब मॉलिक्यूलर पैथाेलॉजी में जाकर जांच की जाती है. अगर यह जानकारी कैंसर विशेषज्ञों को नहीं मिले, तो इलाज के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं दिखेगा. मॉलिक्यूलर पैथाेलॉजी से वह टारगेट ट्रीटमेंट कर पाते हैं. सेमिनार में सूरत से आये डॉ मनोज ए कर, कोटा के डॉ लक्ष्मी अग्रवाल, चेन्नई के डॉ स्वामीनाथन ने अपना व्याख्यान दिया. कार्यक्रम में 185 से अधिक डॉक्टरों ने भाग लिया. वहीं, 52 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये. आयोजन को सफल बनाने में पैथोलॉजी विभाग के डॉ राकेश कुमार ठाकुर सहित कई डॉक्टर शामिल थे. कैंसर के इलाज में पैथोलॉजी की भूमिका बढ़ी : कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए रिम्स निदेशक डॉ राजकुमार ने कहा कि कैंसर के इलाज में अब पैथोलॉजी विभाग की भूमिका बढ़ी है. पैथोलॉजिस्ट की रिपोर्ट के आधार पर सटीक इलाज संभव हो पाया है. रिम्स के पैथोलाॅजी विभाग में अब अत्याधुनिक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है. उम्मीद है कि इस आयोजन से राज्य के पैथोलॉजिस्ट को काफी मदद मिलेगी.
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