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Ranchi News : गुरु व शिष्य को परिवर्तन स्वीकार करते बनना होगा ईमानदार

पहले की शिक्षा या वर्तमान की शिक्षा हो, इसका एक ही उद्देश्य है सोसाइटी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मानव संसाधन का विकास करना होगा.

(गुरु पूर्णिमा विशेष)

पहले की शिक्षा या वर्तमान की शिक्षा हो, इसका एक ही उद्देश्य है सोसाइटी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मानव संसाधन का विकास करना होगा. लेकिन, हमें इस बात का ध्यान रखना होगा, हम पहले की शिक्षा व वर्तमान शिक्षा की तुलना नहीं करें. यह हमारी बेसिक गलती होगी. इस दौर में गुरु व शिष्य दोनों को परिवर्तन स्वीकार करने होंगे. साथ ही दोनों को ईमानदार भी होना होगा. समाज में ऐसे शिक्षक व विद्यार्थी भी हैं. तभी तो वे शिक्षकों को पूजते भी हैं. ऐसा नहीं है कि गुरु शिक्षा नहीं देते हैं, जिसने उनकी शिक्षा देने के महत्व को समझा, वे अच्छा कर रहे हैं. मेहनत कर आगे बढ़ रहे हैं. अपना मुकाम हासिल कर रहे हैं. पहले गुरु अपने विद्यार्थी को कामयाब जिंदगी जीने के लिए शिक्षा प्रदान करते थे. आज की शिक्षा विद्यार्थी को रोजगार के लिए उपलब्ध कराये जा रहे हैं. पढ़ाने का तरीका भी बदला है. हर बार शिक्षा नीति बनती है. नीति बनाने का खास मकसद शिक्षा को आसान करना है. शिक्षक और विद्यार्थी एक नीति से पढ़ाई आरंभ करते हैं, कुछ अंतरालों में ही नीति बदल जाते हैं. तकनीकी शिक्षा में काफी हद तक नये दौर के हिसाब से बदलाव हो जा रहे हैं, लेकिन सामान्य शिक्षा में ऐसी बात नहीं हो रही है. आज भी हम पुराने नोट्स से विद्यार्थियों को शिक्षा दे रहे हैं. ऐसा नहीं चलेगा. हमें गंभीर होना होगा. अप टू डेट रहना ही होगा. नये-नये विषय से विद्यार्थियों को अवगत कराते हुए उन्हें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा देना भी आवश्यक होगा. सिस्टम ऐसा हो गया है कि जैसे हम विद्यार्थियों को आपाधापी में शिक्षा ग्रहण करा रहे हैं. किसी तरह उन्हें डिग्री दिला देना है. ऐसा नहीं होना चाहिए. शिक्षकों के पद रिक्त हैं. कोई सुनने वाला नहीं है. ऐसे में हम विद्यार्थियों की अपेक्षा को कैसे पूरा कर पायेंगे.

प्रो फिरोज अहमद पूर्व कुलपति, नीलांबर-पीतांबर विवि

जिनके पास सात्विक गुण है, वही गुरू है

गुरु की परिभाषा व्यापक है. जब से पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति हुई है, तब से गुरु की महत्ता है. आज भी गुरु की महत्ता है. सात्विक गुण है वही गुरु है. जिनके पास ज्ञान है, लेकिन तमस है. वह सफल नहीं हो सकता. विद्यार्थी भी ऐसे गुरु से परहेज करने लगते हैं. एक समय था, जब गुरु कुछ भी कह दे, विद्यार्थी उसे मानते थे, उसे अपनाते थे. पहले के गुरु और आज के गुरु की तुलना करें, तो समय के साथ-साथ बदलाव आया है. यूं कहें, आज स्थिति पूरी तरह से बदल गयी है. ऐसा नहीं है कि समाज में अच्छे गुरु नहीं हैं. यह सत्य है कि गुरु वही है, जो सामने वाला से ज्यादा जानता हो. बदलते दौर में एआइ, गुगल के जमाने में गुरु की जिम्मेवारी बढ़ गयी है. गुरु को अप टू डेट रहना होगा. विद्यार्थी को बरगला नहीं सकते हैं. अब देखिए, शिक्षकों को वेतन, प्रोन्नति आदि के लिए भी सड़क पर उतरना पड़ता है. ऐसे में विद्यार्थियों के बीच उनकी क्या छवि रह जायेगी. शॉर्टकट में पढ़ाई और जल्दी से जल्दी नौकरी चाहते हैं विद्यार्थी. शिक्षक भी उसी अंदाज में पढ़ाना भी चाहते हैं. आधुनिक दौर में विद्यार्थी कोई भी नौकरी लेने के लिए तैयार हैं. ऐसे में बहुत मायने में हमारी नैतिक शिक्षा विद्यार्थियों से दूर होती जा रही है. समाज के लिए हितकर नहीं है. आनेवाली पीढ़ी अधिक पढ़ने के बावजूद समाज की जिम्मेवारी भूल रहे हैं. रियल (वास्तविक) गुरु का रोल भी टफ (कठिन) हो गया है.

डॉ अमर कुमार चौधरी, विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर वाणिज्य विभाग, रांची विविB

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