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Ranchi News : लाह उत्पादक पेड़ों की होगी जियोटैगिंग

मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने लाह के पेड़ों को चिन्हित करने का निर्देश दिया

मनोज सिंह, रांची. लाह उत्पादक पेड़ों की जियोटैगिंग होगी. इससे यह पता चल पायेगा कि झारखंड में कितने पेड़ों में लाह होता है. इसकी गुणवत्ता क्या है. इससे कितनी उपज होती है. पिछले कुछ वर्षों के उत्पादन की स्थिति भी पता की जायेगी. पेडों के ओनर भी चिन्हित किये जायेंगे. इसका एक रिकार्ड तैयार किया जायेगा. इसके बाद लाह को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार में विधिवत पहुंचाने की कोशिश होगी. कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग की मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने पिछले दिनों कृषि विभाग से जुड़े फे़डरेशनों की बैठक की थी. इसमें लाह के पेड़ों को चिन्हित करने का निर्देश दिया था. इसके बाद विभाग इस पर काम कर रहा है. लाह की खेती में झारखंड विश्व में पहले स्थान पर : लाह की खेती के मामले में झारखंड देश ही नहीं पूरे विश्व में पहला स्थान रहता है. यहां पर सबसे अधिक लाह की खेती और उत्पादन किया जाता है. झारखंड के लाह उत्पादन के आंकड़ों को देखें तो यहां प्रतिवर्ष लगभग 10 से 15 हजार मीट्रिक टन लाह का उत्पादन किया जाता है. इस मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे स्थान पर है. झारखंड में लगभग साढ़े तीन से चार लाख किसान लाह की खेती से जुड़े हुए हैं. 400 से अधिक प्रकार के पेड़ों में लाह के कीट पाये जाते हैं. सिर्फ 30 प्रकार के पेड़ों में ही लाह की कमर्शियल खेती की जाती है. लाह की खेती के लिए कुसुम, बेर, सेमियालता और पलाश सबसे बेहतरीन माने जाते हैं. झारखंड में बहुत कम होती है प्रोसेसिंग : झारखंड के वनक्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लाह की खेती रोजगार का एक बेहतर जरिया बनकर उभर रहा है. लेकिन, यहं प्रोसेसिंग की सुविधा बहुत कम है. कई संस्थाएं भी हैं जो इसकी खेती व प्रंसस्करण पर ध्यान दे रही हैं. साथ ही अब गांवों में महिलाएं लाह की चूड़ी बनाने का काम कर रही हैं. इससे उन्हें अपने गांव में ही बेहतर रोजगार मिल रहा है. रांची स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीक्लचर (पूर्व में भारतीय राल एवं गोंद सस्थान) से राज्य में लाह की खेती करने वाले किसानों को तकनीकी मदद भी दी जाती है. झारखंड में लाह के 19 प्रक्षेत्र हैं जहां पर लाह की खेती की जाती है. क्या कहतै हैं व्यापारी अभी झारखंड में लाह का कोई व्यवस्थित बाजार नहीं है. अभी मध्यस्थों कं माध्यम से लेना पड़ता है. यूरोपियन देशों में इसकी बहुत मांग है. झारखंड में लाह उत्पादन की संभावना बहुत है. अगर व्यवस्थित हो जाये, तो बड़ा कारोबार हो सकता है. बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा भी आ सकती है. संदीप अरोड़ा, लाह कारोबारी

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