रांची. शहर की लाइफ लाइन कांके रोड 2008-09 के दौरान गड्ढों में तब्दील हो गया था. इस सड़क पर चलना मुश्किल था. जिस सड़क से होकर हर दिन मुख्यमंत्री के तौर पर शिबू सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष, न्यायाधीश व अन्य वीवीआइपी और आम जन गुजरते थे, उसकी दशा इतनी खराब देख गुरुजी काफी गंभीर थे. तब पथ निर्माण विभाग उनके ही अधीन था. सड़क क्यों नहीं बन रही है, इसके बारे में पता किया, तो बताया गया कि आठ बार टेंडर कैंसिल हो चुका है. कोई ठेकेदार आ रहा है. कब ठेकेदार मिलेगा, कब काम होगा, यह अनिश्चितता थी. इंजीनियर इसका जवाब नहीं दे पा रहे थे. विभाग को कोई रास्ता दिख नहीं रहा था. तब गुरुजी ने इंजीनियरों से सवाल किया : ठेकेदार नहीं मिल रहा है, तो क्या सड़क ऐसे ही छोड़ दी जाये? इसके बाद विभाग ने उनकी संवेदनशीलता और तत्परता देखी. उन्होंने इस मामले को राज्य की छवि के रूप में लिया और सचिव से लेकर अभियंता प्रमुख सहित अन्य वरिष्ठ इंजीनियरों को बुलाया. इसे मिशन के रूप में ले लिया और इसमें भिड़ गये. तब गुरुजी को पता चला कि पथ निर्माण विभाग का अपना मैकेनिकल विंग भी है, जो खुद सड़क बनवाता है, पर 15 वर्षों से इस विंग ने कोई काम नहीं किया है और उसका नामकुम वाला प्लांट भी बैठ गया है. इसमें एक मशीन है, जो 50 आदमी के बराबर का काम करता है. यह सुनते ही गुरुजी खुद प्लांट देखने की इच्छा जाहिर की और गये भी. फिर मैकेनिकल विंग के इंजीनियरों को बुलाया. उनसे पूछा कि यह रोड (कांके रोड) कितने दिन में बना दोगे. उन्होंने बताया कि पहले प्लांट चालू करना होगा, फिर प्रक्रिया करनी होगी. पैसा मिलेगा, तभी काम हो सकेगा. इसमें काफी समय लग सकता है. गुरुजी ने यह सुनते ही फिर विभाग के सचिव व अभियंता प्रमुख पीएम टोप्पो को बुलवाया. उन्हें कहा : मैकेनिकल विंग और प्लांट को चालू करवा कर काम शुरू कराओ. यह भी कहा कि प्रक्रिया का हवाला न दें. तेजी से इस पर काम करें. आनन-फानन में विभाग में सारी कार्रवाई की. 15 दिनों के अंदर मैकेनिकल विंग को चालू कराया. प्लांट के मशीनों को ठीक करवाया गया और अभियंता प्रमुख पीएम टोप्पो की देखरेख में विंग के प्रभारी कार्यपालक अभियंता समीर लकड़ा, एइ जगदीश मुंडा, जेइ बंधु उरांव, प्रेमचंद राम, विश्वनाथ साह पूरी टीम के साथ लग कर दो माह में ही 10 प्रतिशत कम लागत में सड़क बना दिया.
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